आदि शक्ति दुर्गा के नौ स्वरूपों में से महासरस्वती अवतार की रहस्य गाथा और उनकी प्रसन्नता के मंत्र

0
3019

गवती आदि शक्ति दुर्गा के वैसे तो अनन्त रूप है, अनन्त नाम है, अनन्त लीलाएं हैं। जिनका वर्णन कहने-सुनने की सामर्थ्य मानवमात्र की नहीं है, लेकिन देवी के प्रमुख नौ अवतार है। जिनमें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, शाकम्भरी, श्री दुर्गा, भ्रामरी व चंडिका या चामुंडा है। इन नौ रूपों में से आइये जानते हैं हम महासरस्वती अवतार के बारे में-

महासरस्वती

Advertisment

‘प्रचोदिता येन पुरा सरस्वती
वितन्वताजस्य सतीं स्मृतिं हृदि।
स्वलक्ष्णा प्रादुरभूत किलास्यत:
समे ऋषिणामृषभ: प्रसीदताम।।
अर्थ- जिन्होंने सृष्टिकाल में ब्रह्मा के ह्दय में पूर्व कल्प की स्मृति जागृत ‘जगाने’ करने के लिए अधिष्ठात्री देवी को प्रेरित किया और वे अपने अंगों सहित वेद के रूप में उनके मुख से प्रकट हुईं, वे ज्ञान के मूल कारण मुझ पर कृपा करें और मेरे ह्दय में प्रकट हो।

यह भी पढ़ें –भगवती दुर्गा की उत्पत्ति की रहस्य कथा और नव दुर्गा के अनुपम स्वरूप
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद ब्रह्मा के श्री मुख से उच्चारित हुए और भगवती सरस्वती के रूप में पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हुईं। जिस प्राणी में वेदरूपी ज्ञान विज्ञान को अपनाया उसने देवी सरस्वती को अपने अंदर स्थापित कर लिया। मनुष्य के शरीर में देवी सरस्वती का निवास स्थान कंठ और जिह्वा है। अर्थात शब्द ‘वाणी’ और स्वाद का केन्द्र माता सरस्वती हैं जिनकी कृपा प्राप्त होने से महामूर्ख व्यक्ति भी प्रकाण्ड विद्वान हो जाता है।

यह भी पढ़े- आदि शक्ति दुर्गा के नौ स्वरूपों में से योगमाया अवतार की रहस्य गाथा

समस्त देवता एवं पृथ्वी पर बिचरने वाले प्राणी अनेक नामों से उपासना करते हैं- भारती, गीर्देवी, ब्राह्मी आदि इनके ही नाम हैं-
जीवन के हर क्षेत्र में देवी सरस्वती सहायक हैं। विद्या की देवी कही जाने वाली माता की उपासना विद्याध्ययन कर रहे बालकों को अवश्य करना चाहिए।


‘लक्ष्मी र्मेधा धरा पुष्टि गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।
एताभि पाहि तनुभिरष्टाभिर्मा सरस्वति।।
अर्थात जहां सरस्वती निवास करती हैं वहां उनकी अष्ट विभूतियां लक्ष्मी, मेघा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टी और धृति का निवास होता है। इसीलिए ज्ञान की देवी की उपासना परम आवश्यक है। महर्षि वाल्मीकि पर देवी की कृपा हुई। भगवती ने उन्हें सृजन शक्ति प्रदान की तब उन्होंने ‘रामायण’ की रचना की जो ‘वाल्मीकि रामायण’ के नाम से जगत में विख्यात हुआ।

यह भी पढ़ें –आदि शक्ति दुर्गा के नौ स्वरूपों में से महाकाली अवतार की रहस्य गाथा और माया का प्रभाव

वीणाधारी माता शारदा की विधि पूर्वक आराधना उपासना करने से अष्ट महा सिद्घियां प्राप्त होती हैं- जो निम्रलिखित हैं।
1. अणिमा- जो प्राणी तन्मात्रा रूपी मन को परमेश्वर में स्थापित कर देता है उसे अणिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है।
2. महिमा- महतत्व रूप मन को महतत्व रूपी परमेश्वर में स्थिर करने से महिमा सिद्धि प्राप्त होती है।
3. लघिमा- पंच भूतात्मक स्वारूप का ध्यान करने से लघिमा सिद्धि प्राप्त होती है। इस सिद्धि के प्राप्त होने से प्राणी कोई भी रूप धारण करने में समर्थ हो जाता है।
4. प्राप्ति- ऊँ कार रूप परमात्मा में जब चित्त की वृत्तियां पूर्ण रूप से केन्द्रीत हो जाती हैं तो उसे प्राप्ति कहते हैं। इस सिद्धि के प्राप्त होने से सिद्धि प्राप्त प्राणी संसार की किसी भी वस्तु को अपने पास मंगा सकता है।
5. प्राकाट्य- लौकिक एवं पारलौकिक समस्त पदार्थों का अनुभव इस सिद्धि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति अनुभव कर सकता है।
6. वशिता- वशिता सिद्धि के प्राप्त होने के उपरान्त प्राणी की आशक्ति विषयों से पूर्ण रूप से हट जाती है। इन्द्रियां उसके वश में हो जाती हैं।
7. प्राकाम्य- प्राकाम्य सिद्धि प्राप्त करने के उपरान्त जीव की समस्त कामनाओं का अंत हो जाता है। जन्म मरण के भव बंधन से छूट कर परम पद को प्राप्त करता है। अर्थात उसे मोक्ष गति मिल जाती है। उपरोक्त साधनाओं को किसी रविवार अथवा बसंत पंचमी के दिन प्रात:काल स्थान आदि से निवृत्त होकर, स्वेत वस्त्र धारण कर प्रारम्भ करें। लकड़ी की चौकी पर स्वास्तिक बनाकर ‘अष्ट महा सिद्धि यंत्र की स्थापना करें। यंत्र पर केसर से तिलक करें। तत्पश्चात अक्षत पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करें।

‘ध्यायेद अष्ट सिद्घौ प्रकाम्य।
कार्येत् सदा साधक त्वं प्रपंच।।
तदुपरान्त अष्ट सिद्धि माला से मंत्र का जाप करें-
।।ऊँ अं ई उं एं ओं अ: ऊँ।।
उपरोक्त मंत्र का 11 दिन तक नियमित रूप से जप करें और माता सरस्वती के रूप का ध्यान करें।
8. मेधा- मेधा अर्थात कामना सिद्धि के लिए नीचे लिखे मंत्र का पाठ करें। भगवती की कृपा से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी-
।। ऊँ ह्रीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा।।
प्रतिदिन 11 माला का जप करें और अपनी मनोकामना शब्दों में व्यक्त करें और अष्ट सिद्धि यंत्र एक वर्ष तक स्थापित रखें तत्पश्चात किसी नदी में विसर्जित कर दें।
प्रार्थना
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ वस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डित करा या स्वेत पदमासना।।
या ब्रह्मामाच्युतशंकर प्रभृतिभिदेवै: सदा वंदिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।

यह भी पढ़ें –आदि शक्ति दुर्गा के नौ स्वरूपों में से महालक्ष्मी अवतार की रहस्य गाथा और उनकी प्रसन्नता के मंत्र

यह भी पढ़ें –नवदुर्गा के स्वरूप साधक के मन में करते हैं चेतना का संचार

यह भी पढ़ें – वैदिक प्रसंग: भगवती की ब्रह्म रूपता ,सृष्टि की आधारभूत शक्ति

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here