आस्था का अलौकिक केंद्र है स्वर्ण मंदिर

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सिखों की आस्था का केंद्र है स्वर्ण मंदिर। अपनी सुंदरता और अलौकिकता का अनुभव का कराता है यह पावन स्वर्ण मंदिर। जैसा नाम है, वैसा ही स्वर्णिम स्वरूप भी है, इस स्वर्ण मंदिर का, जो कि सहज की किसी को आकर्षित कर ले। अद्भुत स्वर्णिम छठां बिख्ोरता है। सिखों के इस पवित्र स्थान को हरमंदिर साहिब और गोल्डेन टेम्पल के नाम से भी दुनियाभर में जाना जाता है। विश्वभर में प्रसिद्ध यह मंदिर विश्ोष तौर पर सिखों के आस्था का केंद्र है। हिंदू श्रदालु भी यहां हर दिन दर्शन करने पहुंचते हैं। अरदास कर श्रद्धा का प्रकटीकरण करते हैं। वैसे तो आस्था के इस पावन केंद्र को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई, उतनी ही बार इसका निर्माण कराकर आस्था का प्रकटीकरण भी किया गया है।

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माना जाता है कि अफगान हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसका पुन: निर्माण कराया था। मंदिर को अत्यन्त भव्य रूप दिया गया था। सोने की परत से मंदिर को सजाया गया था। यह पावन स्वर्ण मंदिर अमृतसर में स्थित हैं और अपनी पावनता और सुंदरता के कारण हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। माना तो यह भी जाता है कि इस मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में विदेशी सैलानी आते हैं, जोकि ताज महल के बाद यहां ही सबसे ज्यदा विदेशी सैलानी हर वर्ष मंदिर को देखने के लिए आते हैं।

– पावन स्वर्ण मंदिर को श्री हरमंदिर साहिब या श्री दरबार साहिब भी कहा जाता है। चूंकि इस मंदिर पर स्वर्ण की परत हैं, इसी वजह से इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है।
– स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग मंदिर के सामने सिर झुकाते हैं, तदोपरांत पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं। यह परम्परा मंदिर में श्रद्धा की भावना को प्रकट करने वाली है।
– यहां की सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है, जो कि मंदिर के अतीत से हमे अवगत कराता है। इसकी महत्ता को समझता है।
– मान्यता है कि इस गुरुद्बारे का नक्शा करीब 4०० साल पहले गुरु अर्जुन देव ने तैयार किया था। यह गुरुद्बारा वास्तु शिल्प सौंदर्य की अनूठी और अनुपम मिसाल है। गुरुद्बारे में चारों दिशाओं में दरवाजे हैं, जो ये प्रकट करते हैं कि यहां के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं।
– यहां लगने वाले दैनिक लंगर में करीब 35००० लोग खाना खाते हैं। श्रद्धालुओं के लिए श्री गुरु रामदास सराय में ठहरने की व्यवस्था भी है।
– सरोवर के बीच से निकलने वाला रास्ता ये दर्शाता है कि मृत्यु के बाद भी एक यात्रा होती है।
– स्वर्ण मंदिर के विशाल जलाशय को अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है।
– स्वर्ण मंदिर की दीवारों पर सोने की पत्तियों से शानदार नक्काशी की गई है।
– महाराजा रणजीत के समय में गोल्डन टेम्पल की दीवारों पर सोना चढ़ाया गया था।
– यहां आने वाले सभी श्रद्धालु सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्बारे में मत्था टेकने जाते हैं। यह मंदिर की परंपरा है। स्वर्ण मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। यह गुरुद्बारा एक बड़े सरोवर के मध्य स्थित है।
– यहां पत्थर का एक खास स्मारक बनाया गया है, जो सिख सैनिकों को श्रद्धांजलि स्वरूप लगाया गया है।

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