बुधवार का व्रत उत्तम सन्तान प्रदान करता है। व्रत में सफेद फूल व हरे रंग की वस्तु चढ़ाई जाती है, स्त्रियां प्रात: स्नान के बाद बुद्धा देवी का पूजन करती हैं। पूजा साधारण ढंग से की जाती है पर किसी भी स्त्री ने यदि कोई मान्यता की हो तो पूजन की विशेष विधि होती है, सोने-चांदी पीपल या मिट्टी के कलश में जल भरकर रख जाता हैं, धूमधाम से बधाई चढ़ाई जाती है। एक पिटारी में सफेद कपड़े, गहने भसदूर, चूड़ी बिछुये रख लिए जाते हैं। पूजन के बाद कथा सुनकर दिन में एक बार भोजन करने का विधान है।
व्रत कथा-
एक व्यापारी दूर देशों में व्यापार के लिए गया था। उसके विदेश में जाने के कुछ दिन बाद बुधवार को उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया, कई वर्षों बाद जब वह लौटा तो घर में धन संपत्ति और सामान से लदी उसकी गाड़ी दलदल में फंस गई। काफी प्रयत्नों के बाद भी वह गाड़ी खींचने में सफल न हुआ तो पंडितों ने बताया कि बुधवार को पैदा हुआ बच्चा यदि गाड़ी को हाथ लगा देगा तो गाड़ी दलदल से बाहर निकल जाएगी। बुधवार के जन्मे बालक की खोज में वह अपने गांव पहुंचा। दरवाजे-दरजावे पहुंचकर इस बारे में पूछने लगा।
अपने घर पहुंचने पर उसने पाया कि उसका अपना पुत्र ही बुधवार को पैदा हुआ है। वह पुत्र को लेकर गाड़ी के पास पहुंचा। पुत्र ने गाड़ी को जैसे ही हाथ लगाया ही था तो वह गाड़ी दलदल से बाहर आ गई। गाड़ी लेकर वह घर पहुंचा और सब सुख के से रहने लगे लगे। वह लड़का भी बड़ा ही होनहार व बुद्धिमान निकला तभी से सभी स्त्रियां उसी प्रकार से पुत्र प्राप्त करने के लिए बुद्धा देवी का व्रत करती हैं।
– सनातनजन डेस्क
बहुत ही उम्दा और उपयोगी जानकारी।
धन्यवाद।
thanxs