दादा जी के आयुर्वेदिक नुस्खे: कृमि रोग यानी पेट में कीड़ों की दवा

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1- शौच में सूत के समान कीड़ों यानी कृमि की दवा

गंधक का तिजान आधा पाव, कल्मी शोरा आधा पाव, पानी बराबर मात्रा में लेकर टामचीनी के प्याले में अग्नि पर रखकर खूब पकायें। जब धूंआ उठना बंद हो जाए, तब उतार कर हिमाम दस्ते में कूटकर खरल कर लें। खूब महीन पीसकर शीशी में डाल लें। भोजन के बाद एक या दो रत्ती लेकर दुगनी मिश्री मिलाकर या बताश्ों में डालकर मुंह में रखकर उपर से पानी पी लें। यह खाली पेट न लें। भोजन के बाद लें। पेट में दो बड़ेकीड़े होते है, वही छोटे कीड़े पैदा करते है। इससे वे कीड़े नष्ट हो जाएंगे। बच्चों को आधा रत्ती मां के दूध में दें।

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2- कृमि रोग यानी पेट में कीड़ों की दवा

वायविडंग, सेंधा नमक, जयाखार, कतीरा, हरड इन सभी को औषधियां समान भाग में लेकर कूट-पीस कर कपड़े से छान लें। इस चूर्ण की मात्रा छह माह सुबह-शाम गाये के मठ्ठे के साथ सेवन करे। कृमि नष्ट हो जाएगी।

3- कृमि यानी पेट के कीड़े की दवा

1- विडंग यानी वाव वडिंग चूर्ण आधा तोला शहर के साथ लेंवे।

2- नीम की पत्ती का रस आधा तोला प्रतिदिन पीयें।

नोट- आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करते समय खान-पान का थोड़ा ध्यान रखना आवश्यक होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा का उपयोग करके यदि आप पूर्ण लाभ प्राप्त करना चाहते है तो संयम बरतना बेहद जरूरी होता है। जब तक संयम नहीं बरतेंगे, पूर्ण लाभ नहीं मिल सकता है। जहां तक संभव हो कि किसी जानकार वैद्य से स्वास्थ्य परीक्षण आवश्य करा लें और परामर्श के अनुसार दवाआंे का सेवन करें।

प्रस्तुति

स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर

सेवानिवृत्त तहसीलदार/ विशेष मजिस्ट्रेट, हरदोई

नोट:स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर के पिता स्वर्गीय पंडित भीमसेन नागर हाफिजाबाद जिला गुजरावाला पाकिस्तान में प्रख्यात वैद्य थे।

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