सूर्य देव को सच्चे मन से नमन किया जाए तो वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता से यश, मान, धन-धान्य व कुल की वृद्धि होती है। सूर्य नारायण को प्रसन्न करने का सबसे सहज उपाय तो यह है कि उन्हें सूर्यादय के समय सूर्याध्यã अर्पित करें। भगवान सूर्य का वर्ण लाल है, इनका वाहन रथ है। इनके रथ में एक ही चक्र है, जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मास स्वरूप बारह आरे हैं, ऋतु रूप छह नेमियां है और तीन चौमासें रूप तीन नाभियां हैं। उनके साथ साठ हजार बाल खिल्य स्वस्तिवाचन और स्तुति करते चलते हैं। ऋषि, गंधर्व, अप्सरा, नाग, नक्ष, राक्षस और देवता सूर्य नारायण की उपासना करते हुए चलते हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं। भगवान सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा छह वर्ष की होती है।
सूर्य देव की दो भुजाएं हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनके दोनों हाथ में कमल सुशोभित रहता है। उनके सिर पर सुंदर स्वर्णमुकुट और गले में रत्नों की माला है। उनकी कांति कमल के भीतरी भाग जैसी है और वे घोड़ों के रथ पर अरूढ़ रहते हैं।
सूर्य देवता की एक नाम सविता भी है, जिसका आशय है सृष्टि करने वाला। ऋग्वेद के अनुसार आदित्य मंडल के अंत:करण में स्थित सूर्य देवता सबके प्रेरक, अंतर्यामी और परमात्म स्वरूप हैं। मारकण्डेय पुराण में भी सूर्य देव के माहात्म्य का वर्णन मिलता है। पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्म स्वरूप है। सूर्य से जगत उत्पन्न होता है और उन्हीं में स्थित है। सूर्य सर्व स्वरूप सनातन परमात्मा है। यही भगवान भास्कर ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र बनकर जगत का सृजन, पालन व संहार करते हैं। सूर्य नव ग्रहों में सर्व प्रमुख देवता हैं।
जब ब्रह्मा जी अंड का भ्ोदन कर उत्पन्न हुए थ्ो, तब उनके मुख से ऊॅँ शब्द का उदघोष हुआ। यह ओंकार ही परमब्रह्म है और भगवान सूर्य देव का शरीर है। परमपिता ब्रह्मा जी के मुख से चार वेद अविर्भूत हुए जो कि परम तेज से उदीप्त हो रहे थ्ो। ओंकार तेज से इन चारों को आवृत्त कर लिया था। इस तरह से चारों ओंकार तेज से मिलकर चारों एकीभूत हो गए। यही वैदिक तेजोमय ओंकार स्वरूप सूर्य देवता हैं। यह सूर्य स्वरूप तेज सृष्टि में सबसे आदि में प्रकट हुआ, इसलिए इनका नाम आदित्य हुआ। एक बार दैत्यों, दानवों और राक्षसों ने संगठित होकर देवताओं को पराजित कर दिया और उनके अधिकारों का अपहरण कर लिया। देवमाता अदिति इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना में लीन हो गई, तब भगवान सूर्य ने देवमाता के गर्भ से अवतार लिया और देव शत्रुओं का पराजित कर सनातन वेदमार्ग की पुन: स्थापना की इसलिए भी उन्हें आदित्य के नाम से जाना जाने लगा।
सूर्य की प्रसन्नता व शांति के लिए क्या करें
सूर्य देवता की प्रसन्नता और शांति के लिए नित्य सूर्याध्यã देना चाहिए। हरिवंश पुराण के श्रवण से भी सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए। सूर्य देव की प्रसन्नता के लिए गेहूं, सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना और लाल वस्त्र ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
सूर्य देव की शांति के लिए वैदिक मंत्र
ऊँ आ कृष्ण्ोन रजसा वतमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यं च। हिरण्ययेन सविता रथ्ोना देवो यति भुवनानि पश्यन्।।
सूर्य देव की शांति के लिए पौराणिक मंत्र
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापन्घं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।
बीज मंत्र
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
सामान्य मंत्र
ऊॅँ घृति सूर्याय नम:
उपरोक्त किसी भी मंत्र को एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप की कुल संख्या सात हजार और समय प्रात: काल है।