नाग पंचमी पूजन से दूर होता है काल सर्प दोष का भय

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श्रावण मास के शुक्ल पंचमी के दिन नाग पंचमी मनाई जाती है। इस मौके पर नाग देवता की पूजा करने से काल सर्प दोष व भय दूर होता है। इस दिन नाग के दर्शन का विश्ोष महत्व माना जाता है। श्रावण मास के दौरान धरती को खोदना मना होता है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर व दूध पिलाया जाता है। सफेद कमल को पूजा में रखा जाता है। इन दिन सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम से हल्दी व चंदन की स्याही से पांच फन वाले नाग को अंकित करके उनकी पूजा की जाती है। पूजन के बाद कथा सुनने का विधान है।
नाग पंचमी की अनेक कथाएं हैं, पहली कथा इस प्रकार है-एक समय में किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी, एक दिन हल जोतने के समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही, फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का निर्णय लिया। रात के समय में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व पुत्रों को डस लिया। अगले दिन सुबह किसान की पुत्री को डसने के लिए फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी, तब नागिन ने प्रसन्न होकर उसे उसके माता-पिता दोनों भाइयों को पुन: जीवित कर दिया। उस दिन सावन शुक्ल पंचमी थी, तब से आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा होती है।

एक अन्य कथा के अनुसार, एक राजा था, उसकी रानी जब गर्भवती हुई तो उसने राजा से वन करैली खाने की इच्छा जताई, राजा को जंगल गए और उसे तोड़कर थैले में भर लिया। इतने में नाग देवता वहां आ गए और कहने लगे कि तुमने मुझसे बिना पूछे-यह क्यों तोड़ ली तो राजा हाथ जोड़कर बोले- मेरी स्त्री गर्भवती गर्भवती है, उसने इसे खाने की इच्छा जताई है, मुझे यहां दिखाई दी तो मैंने तोड़ ली। अगर मुझे मालूम होता कि यह आपकी है तो जरूर पूछ लेता। मुझे क्षमा करो। नाग बोला- मैं तुम्हारी बातों में आने वाला नहीं हूं या तो करैली यहां रख जाओ या वचन दो कि अपनी पहली संतान मुझे दोगे। राजा ने पहली संतान देने का वायदा किया और चला गया। उसने रानी से भी सारी बात बतायी। कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्री व पुत्र को जन्म दिया। नाग को पता लगा तो पहली संतान पुत्री को मांगने लगा, पर राजा उसे टालने लगा। राजा कभी कहते कि मुंडन के बाद ले जाना तो कभी कहते कि कन छेदन के बाद ले जाना और अंत में विवाह के बाद ले जाने की बात कहने लगे।

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नाग पहले तो राजा की बातें मानता रहा लेकिन जब राजा ने शादी के बाद ले जाने को कहा तो नाग ने सोचा कि शादी के बाद तो कन्या पर पिता का अधिकार रहता ही नहीं रहता है। नाग ने तय किया कि किसी अन्य बहाने से लड़की को शादी से पहले ले जाना होगा। एक दिन राजा अपनी पुत्री के साथ तालाब पर नहाने के लिए गया।

 

तालाब के किनारे एक सुंदर कमल का फूल था, लड़की उसे तोड़ने के लिए आगे बढ़ी तो कमल का फूल भी आगे बढ़ गया। फूल के साथ साथ लड़की भी आगे बढ़ती गई। गहराई में जब लड़की डूब गई तो नाग ने राजा से कहा कि मैं तुम्हारी कन्या को ले जा रहा हूं। यह सुनकर राजा मूर्छित हो गया होश में आने के बाद पुत्री के वियोग में सिर पीट-पीट कर मर गया। राजा की मृत्यु का समाचार जब रानी को मिला और पता लगा कि पुत्री को नाग ले गए है तो उसे इतना गहरा धक्का लगा कि वह भी मर गई। लड़का अकेला रह गया, तब संबंधियों ने राज्य राजपाट छीन लिया और उसे दर-दर का भिखारी बना दिया। वह घर घर भीख मांगता और अपनी व्यथा कहता एक दिन जब नाग देवता ने के घर भीख मांगने लगा तो बहन ने उसकी आवाज पहचान ली। वह घर से निकली और अपने भाई को पहचान लिया। प्रेम से उसे अंदर बुला लिया। इसके बाद दोनों भाई बहन प्रेम से वहां रहने लगे, इसलिए भी नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। एक अन्य कथा भी नाग पंचमी से सम्बन्धित बताई जाती है। वह इस प्रकार है- काफी पहले की बात है कि एक सेठजी के सात पुत्र थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी उत्तम चरित्र वाली थी। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी मंगवाई तो उसे लाने के लिए सभी बहुएं चल दी। सभी वहां खुरपी से मिSी खोदने लगीं, तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे एक बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा कि इसे मत मारो। यह सुनकर दूसरी बहू ने उसे नहीं मारा। इस दौरान साप वहां पर एक स्थान पर बैठ गया, तब छोटी बहू ने उससे कहा कि हम वापस आते हैं, तुम मत जाना। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर गई और अपना वायदा भूल गई। अगले दिन वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भइया, नमस्कार! सर्प ने कहा- ‘तू भाई कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भइया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई। तुझे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली- भइया मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया। कुछ समय बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धर उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहन को मायके भेज दो।’ सबने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तब वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो, वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। सर्प बहुत धनवान था। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- ‘मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात ध्यान न रहा और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बुरी तरह से जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। लेकिन सर्प के समझाने पर चुप हो गई। इसके बाद उसे बहुत सारा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया। इसकी वजह से उसके आसपास के लोग उससे ईष्याã करने लगे।
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार भी दिया था। उसकी ख्याति राज्य की रानी तक पहुंच गई। वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।

 

राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र आए। सेठ ने राजा के कोप के डर के चलते छोटी बहू से हार मंगाकर मंत्री को दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और सारी बात बताई और कहा- तुम कुछ ऐसा करो, जिससे वह हार जबतक रानी के गले में रहे, तब तक के लिए वह सर्प बन जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास समाचार भ्ोजा कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे सजा दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन, क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही मणियों का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने छोटी बहू को बहुत सा धन देकर विदा किया। छोटी बहू के वैभव को देखकर बड़ी बहू ने ईष्याã करने लगी। बड़ी बहू ने ईष्याãवश छोटी बहू के पति को बहकाया और उसके चरित्र को लेकर शक का बीज बो दिया। इस पर छोटी बहू के पति ने कहा- यह सोना चादी के आभूषण तुम्हें किसने दिये। तब छोटी बहू ने सर्प को फिर याद किया तो सर्प ने प्रकट होकर पूरी बात बताई और यह मेरी बहन है, जो इसे परेशान करेगा, उसे मैं डस लूंगा।
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

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