सनातन धर्म का न कोई आदि है न अंत

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सनातन धर्म यानी वैदिक धर्म की जब हम बात करते हैं तो यह जान लेना अति आवश्यक प्रतीत होता है कि सनातन शब्द का आशय क्या है? सनातन शब्द का आशय है कि शाश्वत यानी हमेशा बना रहने वाला, यानी जिसका न आदि है और न ही अंत। सृष्टि के सृजनकाल से सनातन धर्म अस्तित्व में आ गया था। कालांतर में इस सनातन धर्म को हिंदू धर्म के नाम से जाना जाने लगा। सनातन धर्म के प्राचीनकाल में पांच सम्प्रदाय होते थे।

गाणपत्य, शैवदेव, वैष्णव, शाक्य और सौर नाम के पांच सम्प्रदाय थे। गाणपत्य सम्प्रदाय में गणेश,वैष्णव में विष्णु,शैव देव में कोटि शिव, शाक्त में शक्ति और सौर में सूर्य की पूजा की जाती थी। सभी सम्प्रदाय वैदिक परम्परा से जुड़े होने से हमेशा से एक रहे और सनातन परम्परा को इन्होंने आगे बढ़ाया। सनातन धर्म की प्राचीनता को जानने के लिए वैदिक काल गणना पर नजर दौड़ाना बेहद जरूरी हो जाता है। वैदिक काल गणना के अनुसार इसे चार युगों में बाटा गया है, एक है सतयुग यानी कृत युग। दूसरा है त्रेता युग। तीसरा है द्वापर युग और चौथा युग होता है कलयुग।

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(1) सतयुग की आयु होती है 1728000 वर्ष।
(2) त्रेता युग की आयु होती है 1296000 वर्ष।
(3) द्वापर युग की आयु होती है 864000 वर्ष।
(4) कलि युग की होती है 432000 वर्ष।

12000 दिव्य वर्ष अर्थात 4 युग यानी एक महायुग, इसे दिव्य युग भी कहते हैं।

यहां स्पष्ट कर देना जरूरी प्रतीत हो रहा है कि एक दिव्य वर्ष में कितने मानव युग होते हैं?, क्योंकि कालगणना को समझने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है, इसलिए इस बात भलीभांति समझ लें कि एक मानव वर्ष होता है एक दिव्य दिवस के बराबर, इसी तरह से 30 दिव्य दिवस होते है एक दिव्य मास के बराबर। 12 दिव्य मास होते है दिव्य वर्ष के बराबर और एक दिव्य जीवन काल बराबर होता है 100 दिव्य वर्ष के। इसका आशय से 100 दिव्य वर्ष हुए 36000 मानव वर्ष के बराबर।

वतर्मान में कलयुग चल रहा है और करीब छह हजार वर्ष बीत चुके हैं, यह कलयुग का पहला चरण माना जा रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि कलयुग को समाप्त होने में अभी सवा चार लाख वर्ष शेष है। युगों का यह चक्र सदा चलायेमान रहता है, चक्रों के समाप्ति पर नियतसमयावधि में प्रलय आता है। प्रलय का आशय प्रकृति का ब्रह्म में लीन अर्थात लय हो जाना। हिंदू मान्यता के अनुसार प्रलय के बाद पुन: सृष्टि का सृजन होता है और एक महायुग विकिरणमितीय प्रमाणों से पता चला है कि धरती की आयु लगभग 4.54 अरब वर्ष है। रामायण कालीन प्रमाणों के लाखों वर्ष पुराने होने की पुष्टि हुई। यह प्रमाण उसी काल खंड के हैं, जिस कालखंड में भगवान श्री राम धरती पर अवतरित हुए थ्ो। 

वैज्ञानिक साक्ष्य भी इस बात की पुष्टि कर रहे है कि धरती पर कई युग बीत चुके है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कहने के आशय यह है कि इस गणना से सनातन युग की प्रचीनता का भी अनुमान लगाया जा सकता है। यह कहना कि पुरातन धर्म दस हजार या बीस हजार वर्ष पुराना है, कतई तथ्यों से परे ही प्रतीत होता है।

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
2 त्रुटि = 1 लव ,
1 लव = 1 क्षण
30 क्षण = 1 विपल ,
60 विपल = 1 पल
60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
7 दिवस = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 माह ,
2 माह = 1 ऋतू
6 ऋतू = 1 वर्ष ,
100 वर्ष = 1 शताब्दी
10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
432 सहस्राब्दी = 1 युग
2 युग = 1 द्वापर युग ,
3 युग = 1 त्रैता युग ,
4 युग = सतयुग
सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
72 महायुग = मनवन्तर ,
1000 महायुग = 1 कल्प
1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l

सनातनजन डेस्क

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