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वेद का सारगर्भित अर्थ और मनीषियों के ज्ञान का सार हैं उपनिषद

जानिये, उपनिषद क्या हैं?

ब्रह्म, जीव और जगत की ज्ञान प्राप्ति ही वास्तव में उपनिषदों की मूल शिक्षा है। यदि पुराणों के माध्यम से वेद की व्याख्या मनोरम देव कथाओं के माध्यम से विस्तार की गई है तो उपनिषदों में वेद तत्व को सारांश में समझाने का प्रयास किया गया है, वह भी बहुत सहज भाव के साथ, ताकि वेदों के निचोड़ को बेहतर तरह से समझा जा सके। हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में ज्ञान को विशेष महत्व दिया है, यह भी समझाने का प्रयास किया गया है कि ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की तरफ ले जाता है। यही सूक्ष्म की ओर गमन की यात्रा को सहज उपनिषदों का ज्ञान बनाता हैै।

वेद जहां श्रुति ग्रंथ की श्रेणी में आते हैं, वहीं उपनिषद व पुराण स्मृति पर आधारित हैं, लेकिन मूल में ब्रह्म, जीव और जगत का ज्ञान की समाहित है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ऋषियों की वाणी द्बारा वेद तत्व को सहज भाव में समझा जा सकता है, इसकी वजह यह भी है कि वेद को सही अर्थों में समझना आसान नहीं है, क्योंकि वेद को सही अर्थो में तभी समझा जा सकता है, जब कि वेदांगों की सम्पूर्ण जानकारी हो, आज के दौर में इतने ज्ञानी-ध्यानी विरले ही हैं ।

छह वेदांग हैं, ये इस प्रकार हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त।

वर्तमान में उपनिषदों की संख्या तो 1०8 मानी जाती है, लेकिन इनमें मुख्य 12 ही माने गए हैं। 1- ईश, 2- केन, 3- कठ, 4- प्रश्न, 5- मुंडक, 6-मांडूक्य,7- तैत्तिरीय, 8- ऐतरेय, 9- छांदोग्य, 1०- बृहदारण्यक, 11- कौषीतकि तथा 12- श्वेताश्वतर । वैसे इन 1०8 उपनिषदों के अतिरिक्त नारायण, नृसिंह, रामतापनी तथा गोपाल चार उपनिषद भी हैं।

जगतगुरु आदि शंकराचार्य के अनुसार इनके दस भाष्य ही दिए हैं, जो इस प्रकार है- (1) ईश, (2) ऐतरेय (3) कठ (4) केन (5) छांदोग्य (6) प्रश्न (7) तैत्तिरीय (8) बृहदारण्यक (9) मांडूक्य और (1०) मुंडक।

इसके अलावा (1) श्वेताश्वतर (2) कौषीतकि व (3) मैत्रायणी को उन्होंने प्रमाण कोटि में माना है।

इनके अलावा सभी अन्य उपनिषद तत्तद् देवता विषयक होने कÞ कारण तांत्रिक माने गए हैं। ऐसे उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक उपनिषदों की प्रधान गणना है।

इस विभाग के ग्रन्थों की संख्या 123 से लेकर 1194 तक मानी गई है, लेकिन इनमें 1० ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं। वैसे वर्तमान में सवा दो सौ के आसपास उपनिषद मौजूद बताए जाते हैं।

यजुर्वेद से 51 उपनिषद है- 1-ईश, 2-कठ उपनिषद् , 3-तैतरीय ,4- बृहदारण्यक उपनिषद, 5-ब्रह्म , 6-कैवल्य ,7- जाबाल (यजुर्वेद), 8-श्वेताश्वतर , 9- हंस, 1०-गर्भ , 11- नारायण, 12-परमहंस , 13-अमृत-बिन्दु , 14-अमृत-नाद, 15-कालाग्निरुद्र , 16-सुबाल , 17-क्षुरिक ,18-मांत्रिक , è19-सर्व-सार, 2०-निरालम्ब , 21-शुक-रहस्य, 22-तेजो-बिन्दु , 23-ध्यानिबन्दु, 24-ब्रह्मविद्या, 25-योगतत्त्व, 26-त्रिषिख, 27-मण्डलब्राह्मण , 28- दक्षिणामूर्ति, 29-स्कन्द (त्िरपाड्िवभूिट), 3०-अद्बयतारक , 31-पैंगल , 32-भिक्षुक, 33-शारीरक , 34-योगिशखा, 35-तुरीयातीत, 36-एकाक्षर, 37- अक्षि,38-अध्यात्मा, 39- अवधूत, 4०- कठरुद्र, 41- रुद्र-हृदय, 42- योग-कुण्डिलिन, 43- तारसार, 44- पंच-ब्रह्म , 45-प्राणाग्नि-होत्र, 46- याज्ञवल्क्य , 47-वराह , 48- शात्यायिन, 49-किल-सण्टारण , 5०- सरस्वती-रहस्य, 51-मुक्तिक

सामवेद से 16 उपनिषद हैं- 1- केन, 2-छान्दोग्य , 3-आरुणेय ,4-मैत्रायिण, 5-मैत्रेय, 6-वज्र-सूच , 7-योगचूडामिण 8-वासुदेव , 9-महत, 1०- संन्यास, 11-अव्यक्त, 12-कुण्डिक, 13-सावित्री, 14-रुद्राक्ष, 15- दर्शन, 16- जाबाल (सामवेद)

अथर्ववेद से 31 उपनिषद हैं- 1-प्रश्न , 2-मुण्डक , 3-माण्डुक्य,4-अथर्व-शिर, 5-अथर्व-शिख, 6-बृहज्जाबाल, 7- नृसिहतापनी, 8-परिव्रात (नारदपरिव्राजक) , 9-सीता, 1०-शरभ, 11-महानारायण, 12- रामरहस्य, 13-रामतापिण, 14-शाण्डिल्य, 15-परमहंस-परिव्राजक, 16-अन्नपूर्ण, 17-सूर्य,18-आत्मा , è19-पाशुपत, 2०- परब्रह्म, 21-त्रिपुरातपिन, 22- देवि, 23-भावन, 24- भस्म, 25-गणपित, 26-महावाक्य, 27- गोपाल-तपिण्, 28- कृष्ण, 29- हयग्रीव, 3०- दत्तात्रेय, 31- गारुड

ऋग्वेद से 1० उपनिषद हैं- 1-ऐतरेय , 2-कौषीताक, 3-नाद-बिन्दु,4-आत्मबोध, 5-निर्वाण , 6-मुद्गल, 7-अक्षमालिक , 8- त्रिपुर, 9- सौभाग्य, 1०- बह्वृच

जीवन जीने की कला सिखाती हैं मनु व अन्य स्मृतियां

हमारे ऋषियों ने परमब्रह्म से श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त  किया, उन्हीं ने अपनी स्मृतियों की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों का उल्लेख किया है, वे पावन स्मृति ग्रंथ हैं। स्मृतियों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को बताया गया है, कैसे जीवन को जीना चाहिए? क्या आचार- विचार होने चाहिए?

इनमें समाज की धर्ममर्यादा, वर्णधर्म, आश्रम धर्म, राज धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी स्मृतियाँ भी है –

1. मनु 2 अत्रि 3 विष्णु 4 हारीत 5 याज्ञवल्क्य 6 उशना 7 अंगिरा 8 यम 9 आपस्तम्ब 1० संवर्त 11 कात्यायन 12 बृहस्पति 13 पराशर 14 व्यास 15 शंख 16 लिखित 17 दक्ष 18 गौतम 19 शातातप 2० वशिष्ठ। इनकÞ अतिरिक्त निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियां उपस्मृतियां मानी जाती हैं। जो कि- 1 गोभिल 2 जमदग्नि 3 विश्वामित्र 4 प्रजापति 5 वृद्धशातातप 6 पैठीनसि 7 आश्वायन 8 पितामह 9 बौद्धायन 1० भारद्बाज 11 छागलेय 12 जाबालि 13 च्यवन 14 मरीचि 15 कश्यप आदि हैं।

– भृगु नागर

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