…विष्णु की चार, शिव की आधी और दुर्गा की एक परिक्रमा ही क्यों

1
3156

विष्णु की चार, शिव की आधी और दुर्गा की एक परिक्रमा ही क्यों। परिक्रमा ही नही अपितु पूजन के भी कुछ नियम हैं। जिनके पालन से पूजन सफल होता है।

पूजन के हैं कुछ नियम

ईश्वर वैसे तो सच्चे मन से ध्यान से ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन इनके पूजन के लिए कुछ नियम है, जिन्हें जरूर पालन करना चाहिए, इससे भक्त को मनोवांछित फल सहजता से प्राप्त हो जाता है। ईश्वर भी प्रसन्न होते हैं। यदि इन नियमों की आप अज्ञानवश अनदेखी करते है तो ईश्वर सहजता से प्रसन्न नहीं होते है और प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

Advertisment

यह भी पढ़ें – शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही क्यों करनी चाहिए ? जाने, शास्त्र मत

ग्रहण के समय मूतियों को नहीं छूना चाहिए। जगत के पालनहार विष्णु की चार परिक्रमा करनी चाहिए। इसी तरह से गण्ोश जी की तीन, सूर्य की सात व भगवती दुर्गा जी की एक परिक्रमा करनी चाहिए, जबकि भोलेभंडारी शिव शंकर की आधी परिक्रमा का विधान है। मंदिर के ऊपर कुछ नहीं रखना चाहिए। खंडित मूर्तियां घर में न रख्ों, इन्हें नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। इसके अलावा एक और जरूरी नियम है। घर में गण्ोश जी व देवी की तीन-तीन प्रतिमाएं कदापि नहीं रखनी चाहिए।

घर के पूजा घर में एक, तीन, पांच, सात, नौ व ग्यारह इंच की मूर्तियां होनी चाहिए। इससे बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। इसके इतर गण्ोश जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी मूर्तियां बैठी हुई अवस्था में ही होनी चाहिए।

यह भी पढ़ें- जानिये, स्नान मंत्र- आसन और शरीर शुद्धि मंत्र- प्रदक्षिणा मंत्र- क्षमा प्रार्थना

रविवार, एकादशी, द्बादशी, संक्राति और सूर्यास्त के बाद तुलसी पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए। तुलसी की पत्ती अनावश्यक रूप में तोड़ना भी गलत होता है। पूजा व आरती करने के बाद तीन परिक्रमा लगानी चाहिए। बुधवार व रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। दीपक से दीपक जलाना भी वर्जित है। तांबे के बर्तन में चंदन किसी भी रूप में नहीं रखना चाहिए। भगवान को पुष्प किसी पात्र से ही अर्पित करने चाहिए। बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। तुलसी के पत्ते 11 दिन तक बासी नहीं होते हैं। कमल के पुष्प पांच दिनों तक बासी नहीं माने जाते हैं।

इनमें जल छिड़क कर भगवान को पुन: अर्पित किया जा सकता है। दुर्वा घास रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए। किसी भी पूजा में मनोकामना की पूर्ति के लिए दक्षिणा जरूरी अर्पित करनी चाहिए। केतकी का पुष्प भगवान को अर्पिैत नहीं करना चाहिए। इसके पीछे कथा है, जिसमें भगवान ने पुष्प को श्राप दिया था। शंख पुरुष को ही बजाना चाहिए।

यह भी पढ़ें-  मंत्र जप माला विधान व वर्जनाएं

गंगा जल तांबे के बर्तन में ही रखना चाहिए। रात्रि में मंत्र जाप व पूजन तो किया जा सकता है, लेकिन मूर्तियों को छूना नहीं चाहिए। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात 9 से 1० बजे तक दूसरी पूजा करनी चाहिए। दो पहर में तीसरी पूजा कर भगवान को शयन जरूर करना चाहिए। शाम को चार से पांच बजे पूजा का विधान है। रात्रि में आठ से नौ बजे तक शयन आरती करने का शास्त्रों में विधान है। जहां इस विधान के अनुसार पूजन-अर्चन होता है, वहां पर भगवान की भक्तों पर कृपा दृष्टि रहती है। सूर्य देव को शंख से जल से अध्र्य नहीं देना चाहिए। यह पूर्णतय वर्जित है।

भगवती की पूजा में दुर्वा घास नहीं चढ़ानी चाहिए। शिव जी, गण्ोश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं अर्पित करनी चाहिए, जबकि गण्ोश जी को दुर्वा घास अर्पित करने का विधान है। पंच देव यानी सूर्य, गण्ोश, शिव, दुर्गा व विष्णु का दैनिक पूजन करना चाहिए।

यह भी पढ़ें-  जानिए, मंत्र जप करने के लिए आसन कैसा हो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here