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अंतर्मन की चेतना को जागृत करता है योग, नहीं है मात्र शारीरिक व्यायाम

योग के प्रचलनकाल को लेकर आज के दौर में निश्चित तौर पर मतान्तर हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो सृष्टि के सृजन के बाद जिन वेदों का ज्ञान परमपिता ने मनीषियों को दिया था। उनमें योग का उल्लेख भी है। कहने का आशय यह है कि योग वैदिक काल से प्रचलन में रहा है। महर्षि पंतजलि ने योग शास्त्र पर विस्तार से प्रकाश डाला था। वैदिक काल में योगी योग साधना के बल पर ही वर्षो जप-तप में लगे रहते हुए अपने ओज को बढ़ाते थे। ऋग्वेद समेत तमाम ग्रंथों में योग साधना का उल्लेख मिलता है, प्राचीनतम उपनिषद बृहदअरण्यक में भी योग का हिस्सा बन चुके विभिन्न शारीरिक अभ्यासों का उल्लेख मिलता है।

योग को वास्तव में अंतर्मन की चेतना को जागृत कराने की प्रक्रिया के रूप में सदा से देखा जाता रहा है। भगवद गीता में योग को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कर्तव्य कर्म बंधन न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्तव्य करने का नाम ही योग है। यानी स्पष्ट है कि योग मात्र एक शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि मन को नियंत्रित करने वाली आध्यात्मिक चेतना जागृत कराने वाली साधना है। इसी योग के माध्यम से साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिक आचरण, ध्यान व तप का अभ्यास किया जाता था।

योग आहिस्ता-आहिस्ता एक अवधारणा के रूप में उभरा है और भगवद गीता व महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का एक विस्तृत रूप देखने को मिलता है। भहदू दर्शन के प्राचीन मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चर्चा की गई है, लेकिन शायद सबसे अधिक अलंकृत पतंजलि योगसूत्र में इसका विस्तार किया गया है। योग की उच्चावस्था समाधि, मोक्ष व कैवल्य आदि तक पहुंचने लिए जिन साधनों को अपनाया गया है, इनका वर्णन योग ग्रंथों में मिलता रहा है। योग की प्रमाणिक पुस्तक गोरक्षशतक व शिव संहिता में योग चार प्रकार के वर्णन मिलते हैं।

यह इस प्रकार है- मंत्र योग, हठ योग, लय योग व राज योग। योग का महत्व सदैव से भारतीय सनातन संस्कृति में रहा है। संस्कृति की प्रचीन धरोहर को बाबा रामदेव समेत तमाम संतों ने जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया है। भारत सरकार की पहल पर अब पूरी दुनिया में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। निश्चित तौर इससे प्रचीन ज्ञान का विस्तार होगा और मनवता को इसके लाभ मिल सकेंगे।

योग के अभ्यास से होने वाले लाभ-

  • योगाभ्यास से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है। इसकी मदद से लम्बी आयु निरोगी होकर गुजार सकते हैं। भारत में बहुत से लोग योग का नित्य अभ्यास हमेशा से करते हैं और लाभांवित हो रहे है।
  • प्राणायाम से फेफड़ों की अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है, जो कि शरीर के प्रत्येक अंग पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढती है। वैसे बता देना जरूरी है कि अस्थमा, डायबिटीज, रक्तचाप रोगों के दुष्प्रभाव को योग के माध्यम से कम किया जा सकता है।
  • ध्यान से मानसिक तनाव दूर होता है और मन की एकाग्रता बढ़ती है, क्योंकि आज के दौर में मन की अशांति ही लोगों को अधिक परेशान कर रही है, इसी वजह से तमाम रोग मनुष्य को हो रहे है, हार्ट अटैक के मामलों में कई गुना की वृद्धि ही प्रत्यक्ष प्रमाण माना जा सकता है, यदि ध्यान योग किया जाए तो तमाम रोगों से बचा जा सकता है, या फिर संकट को तो कम किया ही जा सकता है।

-भृगु नागर

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