असली बनाम नकली शंख — पहचानने के आसान तरीके

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सनातन संस्कृति में शंख को एक अत्यंत गौरवशाली, पुण्यकारी और पवित्र प्रतीक माना जाता है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शंख की उत्पत्ति उस समय हुई थी जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से चौदह दिव्य रत्न निकले थे, जिनमें से एक शंख था । इसी कारण, शंख को माता लक्ष्मी का सहोदर (भाई) माना जाता है, क्योंकि देवी लक्ष्मी भी समुद्रराज की पुत्री हैं । यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि जिस घर में शंख होता है, वहां स्वयं देवी लक्ष्मी का वास माना जाता है, जिससे धन, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है ।   

पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त, शंख का एक ठोस वैज्ञानिक आधार भी है। विज्ञान के अनुसार, शंख वास्तव में समुद्री जल में पाए जाने वाले एक विशेष प्रकार के जीव, जिसे मोलस्क (mollusc) कहा जाता है, का कठोर खोल (शरीर का कवच) है । ये जीव अपनी सुरक्षा के लिए अपने शरीर से चूने को स्रावित करके परत-दर-परत जमा करते जाते हैं, जिससे यह सर्पिल खोल बनता है । इस खोल की मुख्य रासायनिक संरचना कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO$_{3}$) होती है, जिसमें प्राकृतिक रूप से गंधक (sulphur) और फास्फोरस जैसे तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं ।   

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यह जैविक निर्माण प्रक्रिया किसी भी दो शंखों को बिल्कुल समान नहीं बना सकती। प्रत्येक शंख की बनावट, उसकी परतों की संख्या और मोटाई, तथा उसकी बाहरी आकृति और आयाम अद्वितीय होते हैं । यह तथ्य सीधे तौर पर इस बात को प्रमाणित करता है कि यदि कोई दुकानदार दो बिल्कुल एक जैसे शंख दिखाता है, तो वे निश्चित रूप से मानव निर्मित हैं, जिन्हें साँचे (molds) का उपयोग करके बनाया गया है । इस प्रकार, शंख की पवित्रता और वैज्ञानिक महत्ता एक-दूसरे का समर्थन करती हैं। इसकी गूढ़ आध्यात्मिक शक्ति को उसकी भौतिक और जैविक संरचना के माध्यम से समझा जा सकता है, जो आधुनिक पाठक के लिए विषय को अधिक विश्वसनीय बनाती है।   

खंड-1 असली शंख की पहचान का महत्व: क्यों ज़रूरी है यह ज्ञान?

आज के बाजार में नकली और असली शंखों का व्यापक मिश्रण देखने को मिलता है। विशेष रूप से दक्षिणावर्ती जैसे दुर्लभ माने जाने वाले शंखों के नाम पर भारी धोखाधड़ी की जाती है, क्योंकि उनकी कीमत बहुत अधिक होती है । नकली शंखों को धार्मिक उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त माना जाता है, क्योंकि उनमें न तो आध्यात्मिक पवित्रता होती है और न ही वे पारंपरिक रूप से पूजनीय माने जाते हैं ।   

इसके अलावा, शंख का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि इसके वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ भी हैं। प्रतिदिन शंख बजाने से श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र और फेफड़ों का उत्तम व्यायाम होता है । यह स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है, गले के रोगों को दूर करता है और मन को शांति प्रदान करता है । एक नकली शंख इन भौतिक और चिकित्सीय लाभों को प्रदान नहीं कर सकता, क्योंकि उसमें वे प्राकृतिक तत्व और संरचनात्मक गुण नहीं होते जो एक असली शंख में पाए जाते हैं। इसलिए, एक आम आदमी के लिए असली शंख की पहचान करना न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके वास्तविक लाभों को प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक है।   

खंड 2: शंख के प्रकार: दिशा और विशिष्टता के आधार पर वर्गीकरण

शंख को मुख्य रूप से उसके मुख (अपेर्चर) के खुलने की दिशा के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। यह वर्गीकरण न केवल उनकी भौतिक पहचान बताता है, बल्कि उनके आध्यात्मिक और उपयोगिता संबंधी महत्व को भी निर्धारित करता है।

2.1 दक्षिणावर्ती शंख (Right-Handed): दुर्लभता और आध्यात्मिक महत्व

दक्षिणावर्ती शंख वह होता है जिसका मुख दाईं ओर (दक्षिणावर्त) खुलता है । धार्मिक ग्रंथों में इसे सबसे दुर्लभ, शुभ और कल्याणकारी माना गया है, जो केवल पुण्य के योग से ही प्राप्त होता है । इसे घर में रखने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन-धान्य में वृद्धि होती है । यही कारण है कि इस शंख को बजाया नहीं जाता, बल्कि विशेष रूप से पूजा स्थान पर रखा जाता है और इसकी पूजा की जाती है । दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं: नर और मादा। जिस शंख की परत मोटी और भारी होती है, उसे नर दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं, जबकि जिसकी परत पतली और हल्की होती है, वह मादा शंख कहलाता है । 

2.2 वामावर्ती शंख (Left-Handed): सर्वसामान्य और उनके गुण

वामावर्ती शंख का मुख बाईं ओर (वामावर्त) खुलता है । यह शंख प्रकृति में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है और इसलिए यह आसानी से उपलब्ध होता है । वामावर्ती शंख का उपयोग मुख्य रूप से शंखनाद (बजाने) के लिए किया जाता है । इसकी ध्वनि से वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा और हानिकारक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध होता है ।   

2.3 मध्यावर्ती शंख (Central Opening): अति दुर्लभता और विशेष पहचान

मध्यावर्ती शंख वह होता है जिसका मुख बीच में खुला होता है । यह शंख तीनों प्रकारों में सबसे अधिक दुर्लभ है और इसे साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना जाता है । इसकी बनावट ऐसी होती है कि इसे बजाया नहीं जा सकता। ग्रंथों में इसे साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, जो दरिद्रता का नाश करता है और धन प्राप्ति का कारक बनता है ।   

2.4 अन्य विशिष्ट प्रकार

उपरोक्त तीन मुख्य प्रकारों के अलावा, शंख की आकृति और गुणों के आधार पर कई अन्य विशिष्ट प्रकार भी होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • वैकुण्ठ शंख: इसे सबसे पवित्र और शुभ शंख माना जाता है, जिसके बजाने से दरिद्रता दूर होती है और घर में लक्ष्मी का वास होता है ।   
  • पद्म शंख: इसका आकार कमल के फूल की तरह होता है ।   
  • गणेश शंख: इस शंख की आकृति भगवान गणेश जैसी होती है और यह दरिद्रता नाशक माना गया है ।   
  • पौण्ड्र शंख: इसका उपयोग मनोबल और स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिससे यह विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना जाता है ।   
  • गोमुखी शंख: इसका आकार गाय के मुख जैसा होता है। वास्तु के अनुसार इसे घर के मंदिर में रखने से गाय पालने के पुण्य के समान लाभ मिलता है।   

खंड 3: असली शंख की भौतिक विशेषताएँ और उनका गहन विश्लेषण

असली और नकली शंख में अंतर उनकी भौतिक बनावट और आंतरिक गुणों में निहित होता है। एक आम व्यक्ति इन विशेषताओं को समझकर आसानी से असली शंख की पहचान कर सकता है।

3.1 प्राकृतिक बनावट: सतह, परतें और अद्वितीय आकार

एक प्राकृतिक शंख की सबसे बड़ी पहचान उसकी बनावट में निहित होती है। चूंकि शंख एक जैविक जीव द्वारा निर्मित होता है, इसलिए इसकी सतह अक्सर खुरदरी, अपूर्ण और असमान होती है । इस पर स्वाभाविक रूप से खरोंच, दाग या अन्य अनियमितताएँ हो सकती हैं, जो इसे एक अनूठा रूप देती हैं । इसकी बाहरी परत को घिसाई (grinding) और पॉलिशिंग करके ही चमकाया जाता है, क्योंकि समुद्र से निकलने के समय यह बहुत गंदा और अपूर्ण होता है । प्राकृतिक शंख में अक्सर एक हल्की लालिमा या गुलाबी रंगत (hue) होती है, जो उसकी प्राकृतिक उत्पत्ति का संकेत देती है ।   

यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुत ज्यादा चमक और निर्दोष पूर्णता एक नकली शंख का संकेत होती है। एक कारीगर द्वारा साँचे में बनाया गया नकली शंख बिल्कुल चिकना, समरूप और आकर्षक दिखता है, जबकि एक प्राकृतिक शंख की ज्यामितीय पूर्णता कभी भी निर्दोष नहीं हो सकती । यह एक मौलिक सिद्धांत है: “प्राकृतिक अपूर्णता ही असली शंख की पहचान है।” यह आम धारणा के विपरीत है कि मूल्यवान वस्तुएं हमेशा निर्दोष दिखनी चाहिए।   

3.2 रासायनिक संरचना: कैल्शियम और अन्य प्राकृतिक तत्व

जैसा कि पहले बताया गया है, असली शंख का खोल मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है, जो कि मोलस्क जीव समुद्र से प्राप्त करता है । इसके अतिरिक्त, इसमें मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज भी होते हैं । इन प्राकृतिक तत्वों की उपस्थिति ही असली शंख को उसके औषधीय और वैज्ञानिक लाभ प्रदान करती है।   

3.3 वजन और घनत्व

एक असली शंख अपने आकार के अनुपात में ठोस और भारी महसूस होता है । यदि आप शंख को हाथ में उठाकर उसके वजन का अनुभव करें, तो यह एक महत्वपूर्ण पहचान का तरीका हो सकता है। नकली शंख, जो खोखले प्लास्टिक से बने होते हैं, वे बहुत हल्के होंगे, जबकि प्लास्टर ऑफ पेरिस या संगमरमर के पाउडर से बने नकली शंख अपने आकार के लिए असामन्य रूप से भारी हो सकते हैं।   

3.4 अनूठी ध्वनि: ब्रह्मांडीय ऊर्जा और समुद्र की लहरों का नाद

यह शंख की पहचान का एक सबसे प्राचीन और विश्वसनीय तरीका है । जब असली शंख को कान के बिल्कुल पास लाया जाता है, तो उसमें एक शांत, निरंतर गूंजने वाली ध्वनि सुनाई देती है, जिसे अक्सर “समुद्र की लहरों” या “ॐ” की ध्वनि कहा जाता है । वैज्ञानिक रूप से, यह शंख की अद्वितीय सर्पिल संरचना के कारण होता है, जो परिवेशीय कंपन को बढ़ाती है और उन्हें एक गूंज के रूप में उत्पन्न करती है । इसके विपरीत, एक नकली शंख, चाहे वह कितना भी चमकदार क्यों न हो, उसमें ऐसी कोई ध्वनि नहीं सुनाई देती या उसकी आवाज खोखली और अप्रिय लगती है ।  

खंड 4: नकली शंख: निर्माण प्रक्रिया और धोखाधड़ी के तरीके

बाजार में नकली शंख बनाने के लिए कई तरह की सामग्री और तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी पहचान के लिए यह समझना ज़रूरी है कि वे कैसे बनते हैं।

4.1 उपयोग की जाने वाली सामग्री

नकली शंख बनाने में सबसे आम सामग्री प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), संगमरमर का पाउडर, रेज़िन और प्लास्टिक हैं । प्लास्टर ऑफ पेरिस जिप्सम नामक खनिज को गर्म करके बनाया गया एक सफेद पाउडर है, जो पानी के संपर्क में आने पर एक कठोर ठोस पदार्थ बन जाता है । इसका उपयोग मूर्तियों और सजावट के सामान बनाने में व्यापक रूप से किया जाता है। इसके अतिरिक्त, खंडित या टूटे हुए असली शंखों को प्लास्टर या पुट्टी से जोड़कर भी बेचा जाता है, जिससे उनकी अपूर्णता छिप जाती है ।   

4.2 निर्माण की तकनीक

नकली शंख अक्सर साँचे में डालकर बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया से बने शंख एक-दूसरे से बिल्कुल मिलते-जुलते होते हैं, जिनकी सतह पर कोई खरोंच या प्राकृतिक निशान नहीं होता । इनकी सतह को और अधिक चमकदार बनाने के लिए उन पर घिसाई (grinding) और पॉलिश का उपयोग किया जाता है । कुछ मामलों में, उन्हें प्राकृतिक रंगत देने के लिए उन पर हल्के गुलाबी या लाल रंग का स्प्रे किया जाता है, जो कि नकली होने का एक और संकेत हो सकता है ।   

4.3 बाजार में नकली शंखों की पहचान

नकली शंख अक्सर असली शंख से कहीं अधिक आकर्षक दिखते हैं—वे बहुत ज्यादा चमकदार, चिकने और निर्दोष होते हैं । यह एक आम आदमी के लिए भ्रम पैदा कर सकता है। इतना ही नहीं, कुछ नकली शंख बजाने में भी बहुत अच्छे हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें इस उद्देश्य के लिए विशेष रूप से बनाया जाता है, जबकि असली शंख की ध्वनि उसकी प्राकृतिक संरचना पर निर्भर करती है ।   

खंड 5: आम आदमी के लिए असली और नकली शंख की पहचान के अचूक उपाय

यह खंड आम लोगों को असली शंख खरीदने के लिए व्यावहारिक और सरल उपाय प्रदान करता है, ताकि वे धोखाधड़ी से बच सकें और एक प्रामाणिक वस्तु प्राप्त कर सकें।

सारणी 1: असली बनाम नकली शंख: एक त्वरित तुलना

पहचान का आधार असली शंख नकली शंख
बनावट खुरदरी, अपूर्ण, प्राकृतिक परतें, स्वाभाविक खरोंच।    

चिकनी, समरूप, प्लास्टिक जैसी सतह, बनावटी पॉलिश।    

रंग प्राकृतिक, भिन्नता के साथ (सफेद, गुलाबी, लालिमा)।    

अत्यधिक सफेद, एकसमान, दिखावटी चमक।    

ध्वनि कान के पास रखने पर समुद्र की लहरों जैसी गूंज।    

खोखली, अप्रिय, या कोई ध्वनि नहीं।    

वजन ठोस और भारी (विशेषकर नर शंख)।    

हल्का (प्लास्टिक) या बहुत भारी (पुट्टी)।
पानी का प्रभाव खारे पानी में अपरिवर्तित रहता है।     खारे पानी में दरार आ जाती है या टूट जाता है।    

सूर्य प्रकाश रोशनी में पारदर्शी या क्रिस्टल जैसा दिख सकता है।     अपारदर्शी, रोशनी आर-पार नहीं जाती।    
आकृति प्रत्येक शंख की आकृति और आयाम अद्वितीय।    

साँचे के कारण बिल्कुल एक जैसे।    

 

5.1 पहचान उपाय 1: ध्वनि परीक्षण – कान लगाकर सुनें

यह सबसे सरल और प्रभावी तरीका है। शंख को अपने कान के बिल्कुल पास लाएँ और ध्यान से सुनें । यदि शंख असली होगा, तो आपको एक धीमी और निरंतर गूंज सुनाई देगी, जो समुद्र की लहरों की ध्वनि जैसी लगती है । यह ध्वनि शंख की प्राकृतिक सर्पिल संरचना के कारण उत्पन्न होती है जो परिवेशीय ध्वनि को बढ़ा देती है । नकली शंख में ऐसी कोई ध्वनि नहीं सुनाई देती, या यदि कोई ध्वनि होती भी है तो वह खोखली और अप्रिय होती है ।   

5.2 पहचान उपाय 2: खारे पानी का परीक्षण – 7 से 10 दिन का प्रयोग

यह एक अचूक वैज्ञानिक परीक्षण है। एक बाल्टी या बर्तन में नमक वाला पानी (खारा पानी) भरें और शंख को उसमें 7 से 10 दिनों के लिए पूरी तरह से डुबोकर रखें । यदि शंख असली है, तो उसकी रासायनिक संरचना (कैल्शियम कार्बोनेट) समुद्री जल में स्थिर रहती है और उस पर कोई असर नहीं होगा । वहीं, यदि शंख प्लास्टर ऑफ पेरिस या अन्य किसी कृत्रिम सामग्री से बना होगा, तो वह नमी के संपर्क में आकर कमजोर पड़ जाएगा, उसमें दरार आ जाएगी या वह टूट जाएगा ।  

5.3 पहचान उपाय 3: खरोंच और बनावट परीक्षण

यह एक भौतिक निरीक्षण है। शंख की सतह को ध्यान से देखें और छुएँ। असली शंख की सतह पर प्राकृतिक अपूर्णताएँ, खरोंच और परतें दिखेंगी । एक अनुभवी व्यक्ति इसे देखकर पहचान सकता है। यदि शंख पर बहुत ज्यादा पॉलिश या बनावटी चमक हो, तो यह नकली होने का संकेत है । आप शंख के एक छोटे से हिस्से को अपने नाखून से हल्के से खरोंच कर भी देख सकते हैं । यदि कोई परत निकलती है या पाउडर जैसा पदार्थ गिरता है, तो वह नकली है।  

5.4 पहचान उपाय 4: तापमान परीक्षण

यह एक और प्रभावी तरीका है। शंख को तीन दिनों तक गर्म पानी में और फिर तीन दिनों तक ठंडे पानी में रखें । एक असली शंख तापमान में इस तरह के बदलाव को बिना किसी नुकसान के सहन कर लेगा । नकली शंख, विशेषकर जो प्लास्टर या रेज़िन से बने होते हैं, तापमान के उतार-चढ़ाव से चटक सकते हैं या उनकी बनावट खराब हो सकती है।   

5.5 पहचान उपाय 5: सूर्य प्रकाश परीक्षण

शंख को सीधे सूर्य की तेज रोशनी के सामने रखें और उसे आर-पार देखने का प्रयास करें । यदि शंख असली है, तो वह कुछ हद तक पारदर्शी (translucent) दिखेगा, यानी आप उसके पार हल्की रोशनी देख पाएंगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शंख की प्राकृतिक संरचना प्रकाश को कुछ हद तक गुजरने देती है । इसके विपरीत, प्लास्टर ऑफ पेरिस या पुट्टी से बना नकली शंख पूरी तरह से अपारदर्शी होगा और रोशनी आर-पार नहीं जाएगी ।   

5.6 पहचान उपाय 6: वजन परीक्षण

यह एक सरल और सहज उपाय है। शंख को हाथ में उठाकर उसके वजन का अनुभव करें। एक प्राकृतिक, ठोस शंख अपने आकार के लिए भारी महसूस होगा । यदि शंख बहुत हल्का महसूस होता है (जैसे प्लास्टिक का), या असामान्य रूप से भारी होता है (जैसे किसी भारी पुट्टी से बना हो), तो यह नकली होने का संकेत है।   

खंड 6: शंख खरीदते और रखते समय ध्यान रखने योग्य बातें

6.1 सही शंख का चयन

शंख खरीदते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे शंख खरीदने से बचें जो बहुत ज्यादा चमकदार, निर्दोष और दिखावटी हों । एक अनुभवी व्यक्ति की सलाह यह है कि यदि आपको किसी दुकान में बिल्कुल एक जैसे दिखने वाले दो शंख मिलें, तो उन्हें कभी न खरीदें, क्योंकि वे निश्चित रूप से साँचे में बने नकली शंख होते हैं । हमेशा एक विश्वसनीय विक्रेता से ही खरीदें जो शंख की प्रामाणिकता की गारंटी दे सके।   

6.2 शंख की साफ-सफाई और रख-रखाव के नियम

शंख को हमेशा साफ और पवित्र जगह पर ही रखना चाहिए । इसे सीधे ज़मीन पर कभी न रखें, क्योंकि इसे शंख का अनादर माना जाता है । इसे हमेशा किसी साफ कपड़े या स्टैंड पर रखें। हर बार बजाने के बाद शंख को साफ पानी से धोकर ही रखना चाहिए, ताकि उसकी पवित्रता और स्वच्छता बनी रहे । वास्तु के अनुसार, शंख में हमेशा जल या चावल भरकर रखना चाहिए, क्योंकि इसे खाली नहीं रखना चाहिए ।   

6.3 वास्तु और पूजा घर में शंख की सही दिशा और स्थान

वास्तु शास्त्र के अनुसार, शंख को हमेशा घर के पूजा स्थान या घर के उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में रखना चाहिए । शंख का मुख हमेशा ऊपर की तरफ होना चाहिए, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । दक्षिणावर्ती शंख को विशेष रूप से सफेद कपड़े में लपेटकर रखना शुभ माना जाता है, जिससे यह धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।   

अंतिम परामर्श और सारांश

यह लेख शंख की प्रामाणिकता को समझने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रस्तुत करेगा। इसमें शंख की पवित्रता और वैज्ञानिक गुणों के बीच के गहरे संबंध को उजागर किया गया है। शंख की असली पहचान उसकी प्राकृतिक अपूर्णता, जैविक बनावट और अनूठी ध्वनि में निहित है, न कि उसकी दिखावटी चमक में। एक सच्चा शंख अपने साथ न केवल आध्यात्मिक लाभ लाता है, बल्कि उसके भौतिक गुण भी हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए फायदेमंद होते हैं।

इस गहन विश्लेषण के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शंख की खरीदारी एक सूचित और व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए। आम आदमी के लिए दिए गए सरल और अचूक उपाय, जैसे कि ध्वनि परीक्षण, खारे पानी का परीक्षण और भौतिक बनावट का निरीक्षण, उन्हें नकली शंखों की धोखाधड़ी से बचाने में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। यह ज्ञान उन्हें एक प्रामाणिक शंख का चयन करने में सशक्त करेगा, जिससे वे इस पवित्र प्रतीक के वास्तविक और सार्थक लाभों को प्राप्त कर सकेंगे।

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