मालाबार में 1921 का मोपला हिंदू नरसंहार भारतीय इतिहास का वह वीभत्स अध्याय है, जिसे व्यवस्थित रूप से दबा दिया गया। इतिहास की किताबों में इसे किसान विद्रोह, जमींदारों के खिलाफ आंदोलन या अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति जैसे शब्दों में परोसा गया, जबकि असलियत इससे कहीं अधिक भयावह थी। हजारों हिंदुओं के गले काटे गए, कुओं में फेंक दिया गया और कई को निर्ममता से मारकर उनके शरीर की चमड़ी तक उधेड़ दी गई।
आरएसएस विचारक और प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे नंदकुमार का कहना है कि इस नरसंहार को केवल अंग्रेजों या वर्ग संघर्ष तक सीमित कर दिखाना एक सोची-समझी साजिश थी। इसके पीछे इस्लामी कट्टर मानसिकता काम कर रही थी, जिसकी जड़ें 18वीं शताब्दी तक जाती हैं। यमन से आए मुस्लिम प्रचारक सईद अल्वी थंगई और उनके पुत्र फज़ल पुकौया थंगई ने मालाबार क्षेत्र में कट्टरपंथ को हवा दी। इसके बाद से हिंदू-मुस्लिम संबंधों में गहरी दरार पैदा हुई।
1766 में हैदर अली और बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने मालाबार पर हमले किए। लाखों हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। उनकी संपत्तियाँ जब्त कर मोपलाओं में बाँट दी गईं। मंदिरों और ज़मीनों पर कब्जा कर लिया गया। इतना ही नहीं, मालाबार की बहुमूल्य नीलंबूर टीक लकड़ी पर भी कब्जा करने के लिए हिंदुओं पर लगातार हमले किए गए।
1792 की श्रीरंगपट्टनम संधि के बाद हिंदू जब अपने घरों और जमीनों पर लौटे तो उन्हें पहले से कब्जा जमाए मोपलाओं का सामना करना पड़ा। इसी संघर्ष ने आगे चलकर अनेक हिंसक टकरावों को जन्म दिया। 1921 में यह नरसंहार अपनी चरम सीमा पर पहुँचा, जिसमें हिंदुओं के कत्लेआम का नेतृत्व मुस्लिम सामंतों और व्यापारियों ने किया।
इतिहासकारों का मानना है कि इतने लंबे समय तक हिंदू एकजुट होकर प्रतिकार क्यों नहीं कर पाए, इसके पीछे दो बड़े कारण थे—जातिगत विखंडन और अंग्रेजों द्वारा कलरी (मार्शल आर्ट्स केंद्र) पर लगाया गया प्रतिबंध, जिससे हिंदुओं के पास हथियार और सैन्य प्रशिक्षण का अभाव हो गया। इसके उलट मुस्लिम समाज पहले से संगठित था, हथियारों से लैस था और अंग्रेज भी उनकी आक्रामकता पर रोक लगाने में इच्छुक नहीं थे।
मोपला हिंदू नरसंहार केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि ऐसा रक्तरंजित सच है, जिसे किताबों से छुपाकर अगली पीढ़ियों को गुमराह किया गया। सवाल यह है कि इतनी बड़ी त्रासदी पर मौन साधने वाली ताकतों को आखिर कब कटघरे में खड़ा किया जाएगा।
✅ सरकार / प्रशासन का वर्जन
सरकारी स्तर पर आमतौर पर कहा जाता है कि मोपला विद्रोह को किसान आंदोलन या अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए। प्रशासन का मानना रहा है कि इतिहास को सांप्रदायिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आर्थिक और औपनिवेशिक शोषण के संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए।
✅ कांग्रेस / वामपंथी इतिहासकारों का वर्जन
कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकारों का तर्क है कि मोपला विद्रोह मुख्य रूप से किसानों का जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष था। इसे सांप्रदायिक रंग देकर प्रस्तुत करना गलत है। उनके अनुसार, उस समय भूमि व्यवस्था अन्यायपूर्ण थी और आंदोलन का मूल कारण यही था।
✅ आरएसएस / राष्ट्रवादी संगठनों का वर्जन
आरएसएस और राष्ट्रवादी विचारकों का मानना है कि यह आंदोलन किसान विद्रोह नहीं बल्कि सुनियोजित हिंदू नरसंहार था। हजारों हिंदुओं की हत्या, धर्मांतरण और संपत्तियों पर कब्जा किया गया। इतिहास को “किसान विद्रोह” बताकर असली सच्चाई छुपाई गई।
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