“न अय्यार बन पाए, न राजनेता — राहुल गांधी की सियासत फिर झूठ में उलझी”

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हरियाणा चुनाव पर राहुल गांधी के बयान की पोल खुली, पोस्टल बैलेट में हेरफेर का दावा निकला निराधार

झूठ और भ्रम की सियासत से खो रहे हैं जनता का विश्वास

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नई दिल्ली, 05 नवंबर (एजेंसियां)। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर अपनी अय्यार (कपटपूर्ण और चालाक) राजनीति के कारण विवादों में हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों को लेकर उन्होंने जो दावा किया था—कि “पोस्टल बैलेट में हेरफेर से कांग्रेस बहुमत से वंचित रह गई”—वह अब तथ्यों की कसौटी पर पूरी तरह झूठा साबित हो गया है। चुनाव आयोग की आधिकारिक रिपोर्ट ने उनके बयान को निराधार करार देते हुए साफ कहा कि किसी भी सीट का परिणाम पोस्टल वोट से प्रभावित नहीं हुआ।

राहुल गांधी की यह “अय्यार बयानबाजी” अब कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो रही है। आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा की 90 सीटों पर पोस्टल वोट कुल मतों का मात्र 0.3 से 0.4 प्रतिशत रहे, जो किसी भी नतीजे को पलटने के लिए पर्याप्त नहीं थे। जिन 17 सीटों पर कांग्रेस मामूली अंतर से हारी, वहां भी पोस्टल बैलेट की संख्या इतनी नहीं थी कि परिणाम बदले जा सकें।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी ने एक बार फिर बिना सबूत और बिना आंकड़ों की पुष्टि के ऐसा बयान दिया, जो बाद में उन्हीं की विश्वसनीयता पर भारी पड़ गया। विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी अब तथ्यों की जगह भावनाओं पर आधारित राजनीति करने लगे हैं। इससे न केवल जनता में भ्रम फैलता है, बल्कि कांग्रेस की गंभीरता पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है।

भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी के आरोपों को “जनता को गुमराह करने की अय्यारी” बताया है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि राहुल गांधी का यह बयान लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख को कमजोर करने वाला है। उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस के किसी प्रत्याशी ने चुनाव आयोग से पुनर्गणना की मांग तक नहीं की, तो फिर राहुल गांधी का आरोप महज़ सियासी छलावा है।

यह विवाद उस समय उठा है जब कांग्रेस पहले से ही अपने संगठनात्मक संकट से जूझ रही है। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में हालिया चुनावी परिणामों ने पार्टी में निराशा फैला दी है। ऐसे माहौल में राहुल गांधी द्वारा संस्थानों पर उंगली उठाना और “जनजी” यानी जनता व युवा कार्यकर्ताओं को भड़काने की कोशिश, पार्टी के भीतर असंतोष को और बढ़ा रही है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह अय्यार राजनीतिक व्यवहार उनकी परिपक्वता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। पिछले कुछ वर्षों में वे बार-बार ऐसे बयानों से घिरे हैं जो बाद में गलत साबित हुए—चाहे वह अर्थव्यवस्था, रक्षा सौदों या विदेश नीति से जुड़े हों। इसने उनकी छवि एक ऐसे नेता की बना दी है जो बिना प्रमाण के बोलते हैं और फिर तथ्य सामने आने पर चुप हो जाते हैं।

कांग्रेस के भीतर भी कई वरिष्ठ नेताओं ने यह राय दी है कि राहुल गांधी को मंचों से बोलने से पहले तथ्यों की गहन जांच करनी चाहिए। बिना आंकड़ों के दावे पार्टी की साख को कमजोर कर रहे हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी को अब जनभावनाओं से ज्यादा जमीनी हकीकत और नीति-निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।

बीते कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने बार-बार ऐसे बयान दिए हैं जिन्होंने उन्हें विपक्ष का केंद्र तो बना दिया, लेकिन गंभीर नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाए। जनता अब उनके भाषणों को भावनात्मक उबाल के रूप में देखने लगी है, न कि ठोस विचारधारा के रूप में। यही कारण है कि हर नए विवाद के साथ उनकी विश्वसनीयता घटती जा रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कांग्रेस को भविष्य में एक सशक्त विपक्ष के रूप में खड़ा होना है, तो उसे अय्यार राजनीति की राह छोड़कर तथ्यों पर आधारित रणनीति अपनानी होगी। जनता अब सोशल मीडिया के दौर में तथ्यों को तुरंत परखती है—ऐसे में भ्रम और झूठ पर आधारित राजनीति टिक नहीं सकती।

अंततः राहुल गांधी का यह ताज़ा विवाद एक बार फिर यह साबित करता है कि जब कोई नेता बिना प्रमाण के संस्थानों पर आरोप लगाता है, तो उसका झूठ ज्यादा देर टिकता नहीं। अय्यारी और प्रचार की इस राजनीति ने राहुल गांधी को जनता से दूर कर दिया है, और कांग्रेस को एक बार फिर आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है।

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