शशि थरूर के परिवारवाद वाले बम से कांग्रेस में भूचाल

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गांधी खेमे में गुस्सा, संगठन दो फाड़ होने के कगार पर

नई दिल्ली, 05 नवंबर (एजेंसियां)। कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने अपने बयान से एक बार फिर पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि “वंशवाद राजनीति के लिए ज़हर है” — और यह वाक्य कांग्रेस के भीतर विस्फोटक असर डाल गया। गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती पार्टी में यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब कांग्रेस लगातार आत्ममंथन के दौर में है। थरूर ने अपने विचार एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर साझा करते हुए कहा कि जब राजनीतिक शक्ति जन्म या वंश के आधार पर तय होने लगे, तब लोकतंत्र की आत्मा खत्म होने लगती है।

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थरूर के इन शब्दों ने सीधे-सीधे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर उंगली उठाई है, क्योंकि दशकों से पार्टी की कमान गांधी-नेहरू परिवार के हाथों में रही है। उन्होंने कहा कि “राजनीति में कोई व्यक्ति सिर्फ अपने उपनाम के कारण नेतृत्व का हकदार नहीं हो सकता। सत्ता में आने के लिए संघर्ष, योग्यता और जनसंपर्क जरूरी हैं।” इस बयान ने कांग्रेस मुख्यालय में ऐसी गूंज पैदा की कि दिल्ली से लेकर प्रदेश इकाइयों तक चर्चा का एक नया तूफान उठ गया।

कांग्रेस में थरूर के बयान को लेकर प्रतिक्रियाएँ दो खेमों में बंट गई हैं। एक तरफ वे नेता हैं जो पार्टी में लोकतांत्रिक सुधार की जरूरत महसूस करते हैं, वहीं दूसरी ओर गांधी परिवार के करीबी नेता हैं जो इसे परिवार के प्रति सीधा हमला मान रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने थरूर की आलोचना करते हुए कहा कि “नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश के लिए जान दी। यदि यह वंशवाद है तो यह देशभक्ति वाला वंशवाद है।” वहीं, उदित राज ने परिवारवाद को सामान्य बात बताते हुए कहा कि “डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है, तो नेता का बेटा नेता बने तो बुरा क्यों?”

लेकिन थरूर के समर्थक मानते हैं कि उन्होंने कोई गलत बात नहीं कही। उनका कहना है कि कांग्रेस को नए नेतृत्व और युवा चेहरों की सख्त जरूरत है। पार्टी को केवल नाम और विरासत पर नहीं, बल्कि कार्य और क्षमता पर चलना होगा। उनका यह मत पार्टी के भीतर उस खेमे को बल देता है जो वर्षों से आंतरिक लोकतंत्र और टिकट वितरण की पारदर्शिता की मांग कर रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि थरूर का यह बयान कांग्रेस के अंदर छिपे असंतोष को सतह पर ले आया है। पार्टी में लंबे समय से यह धारणा बनी हुई है कि बड़े निर्णय सिर्फ परिवार के दायरे में ही होते हैं और नए नेताओं को उभरने का मौका नहीं मिलता। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को कई राज्यों में पराजय झेलनी पड़ी है, और इसी पृष्ठभूमि में थरूर का यह वक्तव्य एक प्रकार से भीतर के विद्रोह का प्रतीक बन गया है।

गौरतलब है कि भाजपा और अन्य विपक्षी दल भी लंबे समय से कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि “कांग्रेस एक परिवार की पार्टी है, जनता की नहीं।” ऐसे में थरूर के बयान ने विरोधियों को भी एक नया हथियार दे दिया है। भाजपा नेताओं ने ट्वीट कर कहा कि “अब तो कांग्रेस के अपने नेता भी मानने लगे हैं कि पार्टी में लोकतंत्र नहीं, केवल परिवारतंत्र है।”

थरूर का यह बयान कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर भी असर डाल सकता है। पार्टी अगले साल कई राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है, और 2026 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले वह खुद को “एकजुट और आधुनिक” दिखाने की कोशिश कर रही है। ऐसे समय में यह विवाद कांग्रेस को भीतर से कमजोर कर सकता है। कई युवा कार्यकर्ता थरूर के समर्थन में खुलकर सामने आ रहे हैं, जबकि पुराने नेता इसे पार्टी के अनुशासन के खिलाफ बयान मान रहे हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब शशि थरूर ने पार्टी लाइन से हटकर अपनी राय रखी हो। इससे पहले भी वे कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ उम्मीदवार बनकर खड़े हुए थे। उन्होंने तब भी कहा था कि “कांग्रेस को नेतृत्व में नई सोच चाहिए।” उनकी यह प्रवृत्ति गांधी परिवार के समर्थकों को हमेशा खटकती रही है।

राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि कांग्रेस अब एक निर्णायक मोड़ पर है। पार्टी को यह तय करना होगा कि वह केवल वंश परंपरा के सहारे आगे बढ़ेगी या नए चेहरों और विचारों को मौका देगी। थरूर का यह बयान कांग्रेस के अंदर गहराई तक मौजूद उस द्वंद्व को उजागर करता है जो लंबे समय से दबा हुआ था। यह केवल बयान नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक सुधार की पुकार है।

अगर कांग्रेस इस विवाद को समझदारी से नहीं संभालती, तो यह भविष्य में बड़े विभाजन का कारण बन सकता है। थरूर का खेमे-बद्ध समर्थन बढ़ता गया तो गांधी परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रित संरचना पर गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है। दूसरी तरफ अगर पार्टी थरूर जैसे विद्वान नेताओं को किनारे करती रही, तो कांग्रेस में विचार-वैविध्य की जगह केवल निष्ठा-राजनीति बचेगी।

शशि थरूर का यह बयान इस बात का संकेत है कि कांग्रेस अब उस पुराने ढांचे से उब चुकी है जहाँ नेतृत्व विरासत से तय होता था। यह नया युग है जहाँ जनता भी नेताओं से जवाबदेही चाहती है। थरूर ने जो कहा वह शायद कठोर लगे, लेकिन उनके शब्दों में कांग्रेस के भविष्य की हकीकत छिपी है — या तो पार्टी अब खुद को बदलेगी, या इतिहास में सिमट जाएगी।

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