सरकारी कार तुरंत वापस, अधिकारी निजी खर्च पर अंतिम संस्कार में भेजे गए
पटेल के निधन के तुरंत बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक आधिकारिक घोषणा की। उसी दिन सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसके तहत दो निर्देश दिए गए:
- सरदार पटेल को आवंटित सरकारी कार को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए।
- जो अधिकारी उनके अंतिम संस्कार में जाना चाहते हैं, वे अपने निजी खर्चे पर जाएं।
हालांकि, तत्कालीन गृह सचिव वी. पी. मेनन ने इस आदेश को अपने आपातकालीन बैठक में साझा नहीं किया और उन्होंने अपने स्तर पर निर्णय लेकर अधिकारियों को मुंबई भेजा। यह फैसला उनके प्रति सम्मान का प्रतीक माना गया।
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कैबिनेट की सलाह को ठुकराया
कैबिनेट ने राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सलाह दी कि वे अंतिम संस्कार में भाग न लें। परंतु डॉ. प्रसाद ने इस सलाह को न मानते हुए अंतिम संस्कार में व्यक्तिगत रूप से भाग लिया।
इसके बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी को वहां भेजा और उन्हें सरकार की ओर से श्रद्धांजलि पत्र पढ़ने की जिम्मेदारी दी, जबकि यह भूमिका सामान्यतः राष्ट्रपति निभाते।
स्मारक पर मतभेद, कुएं खुदवाने का सुझाव
जब कांग्रेस के भीतर पटेल के नाम पर स्मारक की मांग उठी, तो नेहरू ने पहले इसका विरोध किया। बाद में सहमति देते हुए उन्होंने कथित तौर पर कहा कि चूंकि पटेल किसानों के नेता थे, इसलिए गांवों में उनके नाम पर कुएं खुदवाए जाएंगे। हालांकि, यह योजना कब शुरू हुई और कब बंद हो गई, इसकी स्पष्ट जानकारी आज भी दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं है।
पुरुषोत्तम दास टंडन को बाहर किया गया
1950 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीता, जिन्हें सरदार पटेल का समर्थन प्राप्त था। पटेल की मृत्यु के बाद टंडन और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद बढ़े, जिसके चलते टंडन को 1951 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा और पार्टी से किनारा कर लिया गया।
स्टैचू ऑफ यूनिटी से हुई प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना
आज जब राजनीतिक दल सरदार पटेल का नाम लेते हैं, तो ये ऐतिहासिक घटनाएं एक बार फिर स्मृति में लौटती हैं। लंबे समय तक पटेल के योगदान को अपेक्षित सम्मान नहीं मिला, लेकिन 2018 में ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ के निर्माण के साथ उनकी विरासत को एक नई पहचान मिली। यह प्रतिमा आज भारत के एकीकरण के प्रतीक के रूप में जानी जाती है।