अमेरिका ने परवेज मुशर्रफ को खरीद लिया था

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वाशिंगटन, 25 अक्टूबर (एजेंसियां)। अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकू ने पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हुए पुराने राजनीतिक सौदों को लेकर बड़ा खुलासा किया है। किरियाकू, जिन्होंने करीब 15 वर्षों तक सीआईए में सेवा दी, ने दावा किया कि “अमेरिका ने परवेज मुशर्रफ को खरीद लिया था।” उनके मुताबिक, पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की चाबी तक अमेरिका के पास थी। यह खुलासा न केवल पाकिस्तान की संप्रभुता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वॉशिंगटन ने दक्षिण एशिया की राजनीति को अपनी रणनीति के हिसाब से नियंत्रित किया।

किरियाकू ने कहा कि अमेरिका को हमेशा से तानाशाहों के साथ काम करना अधिक रास आता है, क्योंकि लोकतांत्रिक देशों में जनता का दबाव उनकी योजनाओं में बाधा डालता है। उन्होंने साफ कहा, “हमने मुशर्रफ को खरीद लिया था। उस दौर में पाकिस्तान हमारी हर बात मानता था और हमारी इच्छानुसार काम करता था।”

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सीआईए के इस पूर्व अधिकारी ने बताया कि मुशर्रफ दोहरा खेल खेलने में माहिर थे। एक ओर वे अमेरिका को भरोसा दिलाते थे कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा सहयोग देंगे, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना और आतंकी संगठनों को भारत के खिलाफ सक्रिय बनाए रखते थे। किरियाकू के अनुसार, “मुशर्रफ की असली चिंता हमेशा भारत था। वे पर्दे के पीछे से भारत-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते थे।”

उन्होंने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. अब्दुल कादिर खान से जुड़ा एक और बड़ा रहस्य उजागर किया। किरियाकू ने बताया कि अमेरिका के पास अब्दुल कादिर को खत्म करने की पूरी क्षमता और योजना थी, ठीक वैसे ही जैसे इजराइल अपने विरोधियों के साथ करता है, लेकिन सऊदी अरब के दबाव में यह कदम नहीं उठाया गया। उनके अनुसार, “सऊदी अरब को उस समय अब्दुल कादिर की जरूरत थी। कुछ संवेदनशील प्रोजेक्ट्स पर दोनों देशों के बीच सहयोग चल रहा था।”

जॉन किरियाकू ने अमेरिका की वर्तमान विदेश नीति पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि आज अमेरिका लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बात तो करता है, लेकिन उसकी नीतियों के केंद्र में सिर्फ स्वार्थ और नियंत्रण है। उन्होंने कहा, “अमेरिका दिखाता है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा कर रहा है, लेकिन वास्तव में वह सिर्फ अपने हितों के लिए खेल खेलता है।”

यह खुलासा एक बार फिर यह साबित करता है कि वैश्विक राजनीति में मित्रता और नीतियां स्थायी नहीं होतीं, बल्कि फायदे और प्रभुत्व की ज़रूरतें ही तय करती हैं कि कौन “मित्र” है और कौन “मोहरा।”

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