हार नहीं मानूँगा
रार नहीं ठानूँगा।
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।
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क्षणभर ठहरकर, फिर क्यों सोचूँ?
तूफ़ानों से आँख मिलाकर
पाँव डगमगाए बिना
जीवन-पथ पर चलता जाऊँगा।
हार नहीं मानूँगा
रार नहीं ठानूँगा।
अंधकार जितना गहराएगा
प्रकाश उतना ही उभरेगा,
सूरज परछाई से लड़ता नहीं
छाया उससे डरकर बिखरती है।
किंतु कभी-कभी
परिस्थितियों के पंख टूट जाते हैं,
तब भी
मन का विश्वास अचल रहता है।
आँधियों में भी
दीपक जलते हैं,
और
जो जलते हैं, वही जगते हैं।
मंज़िल मिले या न मिले
यह तो मुकद्दर की बात है,
लेकिन हम
कोशिश करने वालों में होंगे
और कोशिश में जान लगाने वालों में होंगे।
हार नहीं मानूँगा
रार नहीं ठानूँगा।
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।
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