भाजपा ने कहा, जनता से किया वादा निभाएंगे, अब हर हिंदू शरणार्थी को मिलेगा अधिकार
कोलकाता, 25 अक्टूबर (एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर गर्म होने जा रही है। दीपावली और काली पूजा के समापन के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य में अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक और वैचारिक मुहिम शुरू करने की घोषणा की है। पार्टी प्रदेशभर में 1000 से अधिक नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) सहायता शिविर लगाने जा रही है। इन शिविरों का उद्देश्य उन हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता दिलाना है, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए हैं।
भाजपा का यह कदम पश्चिम बंगाल की सीमावर्ती राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। सीमावर्ती जिलों—उत्तर 24 परगना, नदिया, कूचबिहार और उत्तर दिनाजपुर—में जनसंख्या के बदले स्वरूप ने लंबे समय से राज्य की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को प्रभावित किया है। भाजपा अब इस परिवेश में हिंदू शरणार्थियों के अधिकारों को केंद्र में रखकर चुनावी रणनीति गढ़ रही है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समीक भट्टाचार्य और सांसद सुकांत मजूमदार ने कहा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक “संकल्प यात्रा” है। यह वही वादा है जो भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में जनता से किया था—धार्मिक रूप से प्रताड़ित हिंदुओं को भारत में सम्मानजनक नागरिकता दिलाने का। भट्टाचार्य ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अधिनियम के नियम बनने में विलंब हुआ, पर अब पार्टी पूरी तैयारी के साथ उतरी है।
पिछले सप्ताह भाजपा ने कोलकाता में एक राज्यस्तरीय कार्यशाला आयोजित की, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं, जिला पदाधिकारियों और लोकल संगठनों को सीएए के नियमों की विस्तृत जानकारी दी गई। पार्टी का उद्देश्य केवल आवेदन भरवाना नहीं, बल्कि जनता के बीच यह स्पष्ट करना है कि सीएए किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि उत्पीड़न से भागे लोगों के पक्ष में है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार, यह अभियान आगामी विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। बंगाल में जल्द ही मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) आरंभ होने वाला है। पार्टी मानती है कि सीएए शिविर और मतदाता सूची सुधार दोनों प्रक्रियाएं मिलकर वैध शरणार्थियों को पहचान दिलाने में मदद करेंगी और फर्जी मतदाताओं की पहचान भी संभव होगी।
राज्य भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि सबसे ज्यादा शिविर सीमावर्ती जिलों में लगाए जाएंगे—उत्तर 24 परगना और नदिया दक्षिण बंगाल में, जबकि कूचबिहार और उत्तर दिनाजपुर उत्तर बंगाल में। इन क्षेत्रों में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या अधिक है और यही वे इलाके हैं जहां जनसांख्यिकीय परिवर्तन सबसे स्पष्ट दिखाई देता है।
भाजपा ने इस मिशन को केवल अपने संगठन तक सीमित नहीं रखा है। हिंदू संगठनों, स्थानीय क्लबों और मतुआ समुदाय के प्रतिनिधियों को भी सक्रिय रूप से जोड़ा जा रहा है। बीते बुधवार को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की अध्यक्षता में कोलकाता में एक वर्कशॉप हुई, जिसमें नेताओं को सीएए प्रक्रिया की बारीकियों से प्रशिक्षित किया गया। अब ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर शरणार्थियों को आवेदन भरने में मदद करेंगे।
राज्य शरणार्थी प्रकोष्ठ के संयोजक असीम सरकार ने बताया कि भाजपा का लक्ष्य वर्ष 2000 से 31 दिसंबर 2024 तक भारत आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता प्रक्रिया में शामिल करना है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन शरणार्थियों को लगातार भ्रमित किया है, लेकिन भाजपा उन्हें सच्चाई बताएगी—सीएए उनके अस्तित्व की रक्षा करने वाला कानून है, न कि किसी के खिलाफ हथियार।
असीम सरकार ने यह भी बताया कि यह आंदोलन नया नहीं है। इसकी नींव 2004 में ठाकुरनगर के मतुआ परिवारों के बीच रखी गई थी। भाजपा ने इन्हीं परिवारों को केंद्र में रखकर राजनीतिक आधार मजबूत किया और अब वही आंदोलन नागरिकता के नए अध्याय में प्रवेश कर रहा है। हरिणघाटा विधानसभा क्षेत्र में जल्द ही सीएए आवेदन जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, जिसमें माइक, प्रचार रथ और जनसभाओं के माध्यम से लोगों को फॉर्म भरने की प्रक्रिया समझाई जाएगी।
भाजपा का मानना है कि इस अभियान से न केवल वैध हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता का हक मिलेगा, बल्कि राज्य में अवैध प्रवासियों और नकली वोटरों की पहचान भी हो सकेगी। पार्टी इसे “राज्य की जनसांख्यिकीय संतुलन की पुनर्स्थापना” का माध्यम मान रही है।
पश्चिम बंगाल की सीमाएं बांग्लादेश से 2,200 किलोमीटर तक फैली हैं और इनमें से कई हिस्से आज भी “सॉफ्ट बॉर्डर” माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा की यह मुहिम सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ी मानी जा रही है।
पार्टी नेताओं का कहना है कि इस पहल से उन हिंदू परिवारों में भरोसा जगेगा, जो वर्षों से “शरणार्थी” कहलाने के कलंक के साथ जी रहे हैं। भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि भारत सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि “धर्मशरण” है — जहां उत्पीड़न से भागे हर हिंदू को अपनी पहचान और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
भाजपा के प्रदेश महासचिव ने कहा, “सीएए हमारे चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था। हम जनता से किए वादे निभा रहे हैं। कांग्रेस और तृणमूल ने शरणार्थियों को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन हमने उन्हें नागरिक अधिकार देने का संकल्प लिया है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह कदम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर धार्मिक और वैचारिक बहस को तेज करेगा। तृणमूल कांग्रेस पहले ही सीएए को विभाजनकारी कानून बताकर इसका विरोध करती आई है, लेकिन भाजपा इसे “ऐतिहासिक सुधार” के रूप में प्रचारित कर रही है।
सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या का तेजी से बदलता स्वरूप, धार्मिक संतुलन का बिगड़ना और बढ़ती घुसपैठ — ये सब मिलकर भाजपा को एक बड़ा चुनावी मुद्दा दे रहे हैं। पार्टी चाहती है कि जनता समझे कि सीएए सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि “आस्था, अधिकार और अस्तित्व” की सुरक्षा है।
इस अभियान से भाजपा को जहां शरणार्थी समुदायों में समर्थन मिलने की उम्मीद है, वहीं विपक्ष के लिए यह नया सिरदर्द साबित होगा। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि भाजपा अब “सीएए से सीएम तक” की रणनीति पर काम कर रही है — यानी नागरिकता के जरिए विश्वास और विश्वास के जरिए सत्ता तक पहुंचने की योजना।










