द्वापर से कलियुग तक कृपा बरसाने वाले श्याम बाबा की दिव्य कथा

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2003

भारत की भक्ति परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वोच्च करुणासागर माना जाता है। जब धर्म संकट में हो, अधर्म प्रबल होने लगे, और भक्त भयभीत हों—तब ईश्वर अलग-अलग रूपों में अवतरित होकर जगत का मार्गदर्शन करते हैं। इन्हीं दिव्य रूपों में एक रूप है—खाटू श्याम, जिन्हें आज करोड़ों भक्त “हारे के सहारे”, “खाटू के श्याम”, और “बारबरीक” के नाम से पुकारते हैं।

राजस्थान के सीकर ज़िले के खाटूधाम में उनकी समाधि स्थित है, जहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। खाटू श्याम की कथा जितनी अद्भुत है, उतनी ही प्रेरणादायक भी। यह कथा हमें द्वापर युग में ले जाती है—जहाँ महाभारत का महासंग्राम आरम्भ होने वाला था और सत्य-असत्य के बीच अंतिम टकराव की तैयारी थी।

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यह लेख खाटू श्याम की कथा, द्वापर युग से उनका संबंध, प्रमुख मंदिरों का महत्व और उनकी आराधना से प्राप्त होने वाले आध्यात्मिक लाभों को अत्यंत रोचक और प्रामाणिक शैली में प्रस्तुत करता है।

द्वापर युग में खाटू श्याम का अवतार—बारबरीक की जन्म कथा

खाटू श्याम वास्तव में गूढ़ महाबली बारबरीक हैं—जो महाभारत के युद्ध से पूर्व अपने अद्भुत शौर्य और भक्ति के कारण श्रीकृष्ण के प्रिय बन गए।

बारबरीक का जन्म

बारबरीक का जन्म गहवरग्राम (आज का गोगामेड़ी, राजस्थान) में हुआ था।
वे भीम – पांडवों में सबसे बलशाली – के पौत्र थे।
उनकी माता का नाम मोरवी था, और पिता घातक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

वह अपने पिता की तरह अत्यंत वीर, शूरवीरता की प्रतिमूर्ति और युद्धकला में पूर्ण पारंगत थे।

माता की प्रतिज्ञा

बारबरीक को उनकी माता ने बचपन से ही एक विशेष शिक्षा दी—

“सदा कमजोर और निरपराध का पक्ष लेना।”

यह प्रतिज्ञा बाद में उनकी महिमा का आधार बनी।

तीन बाणों का रहस्य — श्याम बाबा की दिव्य शक्ति

बारबरीक महाशक्तियों के धनी थे। उन्हें भगवान शिव से तीन बाण प्राप्त हुए थे, जिनमें पूरी दुनिया जीतने की क्षमता थी।

उनके पास धनुष भी असाधारण था।

तीन बाण क्यों अतुल्य माने गए?

पहला बाण — जिस वस्तु पर लग जाए उसका निशान बना देता है।
दूसरा बाण — जिस वस्तु को नष्ट करना हो उसे चिह्नित करता है।
तीसरा बाण — पहले दो बाणों द्वारा चिह्नित वस्तुओं को एक ही बार में नष्ट कर देता है।

यही कारण था कि उन्हें “तीन बाणधारी” कहा जाता था।

इन बाणों की शक्ति इतनी प्रबल थी कि बारबरीक अकेले ही महाभारत का युद्ध कुछ ही मिनटों में समाप्त कर सकते थे।

महाभारत युद्ध में बारबरीक का आगमन

जब महाभारत का युद्ध आरम्भ होने वाला था, तब बारबरीक अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए युद्ध भूमि की ओर चल पड़े।
वह चाहते थे कि—

“मैं युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ दूँ।”

परंतु समस्या यह थी कि युद्ध में बार-बार कमजोर पक्ष बदलता रहता।

श्रीकृष्ण का चिंतन

श्रीकृष्ण जानते थे कि—
यदि बारबरीक युद्ध में उतरेंगे तो वे अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बार-बार पक्ष बदलेंगे,
और अंततः अकेले ही सबको मार देंगे।

इस तरह धर्म की स्थापना नहीं हो सकेगी।

इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उनका मार्ग रोककर उनसे उनका परिचय पूछा।

बारबरीक और श्रीकृष्ण का संवाद — “सबसे बड़ा दानी कौन?”

यह घटनाक्रम अत्यंत भावपूर्ण है।

जब श्रीकृष्ण ने उनसे उनकी शक्ति और प्रतिज्ञा के बारे में पूछा,
तब बारबरीक ने अत्यंत विनम्रता से बताया—

“मुझे केवल तीन बाण पर्याप्त हैं। मैं पूरे युद्ध का परिणाम एक पल में बदल सकता हूँ।”

श्रीकृष्ण समझ गए कि यह महाबली बालक साधारण नहीं है।

श्रीकृष्ण द्वारा बारबरीक की परीक्षा—पीपल के सभी पत्तों को भेदने की लीला

बारबरीक की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उसकी शक्ति को परखना चाहा।
उन्होंने पास खड़े विशाल पीपल वृक्ष की ओर संकेत करते हुए कहा—

“यदि तुम्हारी बात सत्य है, तो इस वृक्ष के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेदकर दिखाओ।”

बारबरीक मुस्कुराए, प्रणाम किया और बोले—
“प्रभो, यह मेरे लिए सरल कार्य है।”

उन्होंने ध्यानमग्न होकर पहला बाण चलाया।
बाण आकाश में घूमते हुए पीपल के हर पत्ते को छूने लगा।
हर पत्ते पर एक हल्का सा सुराख बनता गया।

अचानक बाण नीचे की ओर लौटकर श्रीकृष्ण के चरणों की ओर बढ़ने लगा।
बारबरीक चकित थे।

श्रीकृष्ण ने पूछा—
“यह मेरे पैरों की ओर क्यों आ रहा है?”

बारबरीक ने उत्तर दिया—
“प्रभो, लगता है वृक्ष का कोई पत्ता आपके चरणों के नीचे छिपा हुआ है।
मेरा बाण चिह्नित वस्तु को ढूँढ़ निकालता है।”

श्रीकृष्ण ने चरण उठाए तो नीचे से एक छोटा-सा पीपल का पत्ता निकला—
जो बाण द्वारा चिह्नित था।

श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और समझ गए कि—

“यह बालक अतुल्य शक्ति का धनी है। यदि यह युद्ध में उतरा, तो अकेले ही पूरे युद्ध का निर्णय पलभर में कर देगा।”

इसी परीक्षण ने श्रीकृष्ण को यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया कि धर्म की रक्षा हेतु उन्हें उससे उसका शीश माँगना पड़ेगा।

खाटू श्याम का सर्वोच्च दान—अपना शीश अर्पित करना

श्रीकृष्ण ने परीक्षा लेने के लिए बारबरीक से पूछा—
“यदि मैं तुम्हारे सामने दान माँगूँ तो क्या दोगे?”

बारबरीक बोले—
“जो भी मांगोगे, दे दूँगा।”

श्रीकृष्ण ने कहा—
“मुझे तुम्हारा शीश चाहिए।”

क्षणभर को माँ का दिया वचन स्मरण आया,
परंतु बारबरीक ने बिना विचलित हुए कहा—

“प्रभु, मेरा शीश आपका है।”

और अपने हाथों से अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया।

इसी महान दान के कारण बारबरीक को वरदान मिला—

श्रीकृष्ण का वरदान — खाटू श्याम

श्रीकृष्ण ने कहा—

“कलियुग में तुम मेरे रूप ‘श्याम’ के नाम से पूजे जाओगे।”
“जो तुम्हारा नाम लेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।”
“तुम ‘हारे का सहारा’ कहलाओगे।”

और तभी से बारबरीक — खाटू श्याम बाबा कहलाए।

बारबरीक का शीश युद्ध देखता है

कथा के अनुसार—
श्रीकृष्ण ने उनका शीश एक पर्वत पर स्थापित कर दिया, ताकि वह पूरा महाभारत युद्ध देख सके।

जब युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों ने पूछा—

“विजय का श्रेय किसे जाता है?”

तो बारबरीक के शीश ने उत्तर दिया—

“मेरी दृष्टि में तो विजय श्रीकृष्ण के कारण हुई।”

क्योंकि युद्ध में श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन ही वास्तविक निर्णायक था।

खाटू श्याम का प्राकट्य — शीश की खोज और स्थापना

महाभारत युद्ध के बाद यह शीश 5000 वर्षों तक भूमिगत रहा।
कलियुग के प्रारंभ में राजा भोज के शासनकाल में एक कुएँ से यह शीश मिला।
इसके बाद उस स्थान पर एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और लोगों को स्वप्न में संदेश मिला कि शीश की पूजा की जाए।

फिर इसे राजस्थान के खाटूधाम में स्थापित किया गया।
यही मंदिर आज विश्व प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर है।

खाटू श्याम के प्रमुख मंदिर

भारत में खाटू श्याम के कई मंदिर हैं, किन्तु इनमें से कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं—

1. खाटू श्याम मंदिर, सीकर (राजस्थान) — मुख्य धाम

यह सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण तीर्थ है।
फाल्गुन मेला यहाँ अनंत श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

मंदिर का गर्भगृह श्वेत संगमरमर से बना है।
यह मंदिर अतुल्य आध्यात्मिक ऊर्जाओं का केंद्र माना जाता है।

2. श्याम बाबा का धाम – रिंगस

खाटू से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित रिंगस स्टेशन से भक्तों का मुख्य पड़ाव वहीं होता है।
यहाँ श्याम रथयात्रा और भक्तों का विशाल प्रवास होता है।

3. खाटू श्याम मंदिर, द्वारका (गुजरात)

मान्यता है कि बारबरीक द्वारका आए थे ताकि युद्ध के बाद श्रीकृष्ण से मिल सकें।
द्वारका मंदिर उसी परंपरा को दर्शाता है।

4. दिल्ली का श्याम मंदिर

दिल्ली में नजफगढ़, करोलबाग, और अन्य क्षेत्रों में विशाल श्याम मंदिर हैं।
यहाँ सालभर कीर्तन, भजन और जागरण होते हैं।

5. कोलकाता, हैदराबाद, जयपुर और मुंबई के श्याम मंदिर

हर बड़े शहर में खाटू श्याम मंदिर है—जो देशभर के भक्तों को जोड़ता रहा है।

खाटू श्याम की महत्ता — क्यों कहते हैं “हारे का सहारा”?

खाटू श्याम को भक्तों के जीवन में अंतिम आशा माना जाता है।

1. मनोकामना पूरी करने वाले भगवान

मान्यता है कि सच्चे मन से प्रार्थना करने पर बाबा हर इच्छा पूर्ण करते हैं।

2. कठिन परिस्थितियों में सहारा

दुख, दरिद्रता, बीमारी, नौकरी, व्यापार जैसे संघर्षों से जूझ रहे भक्त बाबा के चरणों में शरण लेते हैं।

3. कलियुग में सुलभ भगवान

श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि—
“कलियुग में बारबरीक मेरा रूप लेकर सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाला देवता होगा।”

4. संघर्ष से विजय की ओर मार्गदर्शन

बाबा केवल इच्छा नहीं पूर्ण करते,
बल्कि मन को दृढ़, साहसी और सत्य के मार्ग पर प्रेरित करते हैं।

5. भक्ति, सरलता और दान का संदेश

बाबा की कथा सिखाती है कि—
त्याग ही भक्ति का सर्वोच्च रूप है।

खाटू श्याम के प्रमुख उत्सव

फाल्गुन मेला

यह खाटूधाम का सबसे बड़ा उत्सव है—
जहाँ लाखों भक्त तीन दिन तक बाबा के दरबार में रात्रि जागरण, कीर्तन और विशेष पूजा करते हैं।

एकादशी का महात्म्य

विशेषकर निर्जला एकादशी और फाल्गुन शुक्ल एकादशी को बाबा का विशेष आशीर्वाद माना जाता है।

रथयात्रा

हरे, पीले और केसरिया रंगों से सजी श्याम रथयात्रा भक्तों के लिए दिव्य अनुभव है।

खाटू श्याम के मंत्र, भजन और जाप

खाटू श्याम की भक्ति संगीत से जुड़ी है—

“हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा…”
“श्याम तेरी बंसी पुकारे, राधा नाम…”
“ले चलो खाटू के धाम…”

मुख्य मंत्र—

“ॐ श्री श्याम देवाय नमः”

श्री श्याम की भक्ति के आध्यात्मिक लाभ

  1. मन की शांति

  2. विपत्ति का निवारण

  3. आत्मबल और साहस की वृद्धि

  4. जीवन में नई ऊर्जा

  5. रोग, भय, क्लेश दूर होते हैं

खाटू श्याम की कथा का सार

बारबरीक की कथा हमें सिखाती है—

त्याग, पराक्रम, नम्रता और सत्य धर्म की रक्षा—ये ईश्वर के प्रिय मार्ग हैं।

खाटू श्याम आज करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र हैं—
क्योंकि उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना श्रेष्ठतम—
अपने अमूल्य शीश का दान दिया।

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