उडुपी श्री कृष्ण मंदिर, कर्नाटक का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो अपनी अनूठी परंपराओं और गहन भक्ति के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, बल्कि इसकी विशेषताएं इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।
🛕 उडुपी श्री कृष्ण मंदिर की विशेषताएं
1. कनकना किंडी: नौ छिद्रों वाली खिड़की से दर्शन
मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन सीधे नहीं होते, बल्कि एक विशेष खिड़की ‘कनकना किंडी’ के माध्यम से किए जाते हैं। इस खिड़की में नौ छोटे छिद्र होते हैं, जिन्हें ‘नवग्रह किंडी’ भी कहा जाता है। यह परंपरा संत कनकदास की भक्ति से जुड़ी है, जिन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान ने अपनी मूर्ति को पश्चिम की ओर मोड़ लिया, जिससे कनकदास को खिड़की से दर्शन हुए।
2. फर्श पर परोसा जाने वाला प्रसाद
मंदिर में ‘अन्नप्रसादम’ नामक प्रसाद फर्श पर बैठकर परोसा जाता है। यह परंपरा भक्तों की विनम्रता और भक्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वे फर्श पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
3. माधवाचार्य द्वारा स्थापित
13वीं शताब्दी में संत माधवाचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी। उन्होंने समुद्र से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति प्राप्त की, जो गोपीचंदन में लिपटी हुई थी। इस मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया, जो आज भी बालकृष्ण के रूप में पूजी जाती है।
📍 मंदिर तक कैसे पहुंचें?
-
निकटतम हवाई अड्डा: मेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 60 किमी दूर)
-
निकटतम रेलवे स्टेशन: उडुपी रेलवे स्टेशन (लगभग 4 किमी दूर)
-
सड़क मार्ग: बेंगलुरु से लगभग 400 किमी और हैदराबाद से लगभग 800 किमी दूर
🕒 मंदिर के समय और सेवाएं
-
खुलने का समय: प्रातः 5:30 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक
-
प्रमुख सेवाएं: तुलाभार, पंचामृत अभिषेक, अन्नदान सेवा, महापूजा आदि
-
पारंपरिक पोशाक: पुरुषों के लिए धोती या पैंट (शॉर्ट्स नहीं), महिलाओं के लिए साड़ी, सलवार सूट या लंबी स्कर्ट
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर की ये अनूठी परंपराएं और इतिहास इसे एक विशेष धार्मिक स्थल बनाते हैं। यहां की भक्ति, संस्कृति और परंपराएं हर भक्त के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती हैं।