कल्कि भगवान: कलयुग के संहारक और सत्ययुग के सूत्रधार

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सनातन धर्म में सृष्टि का संचालन एक शाश्वत कालचक्र के अधीन होता है, जिसमें चार युग—सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग—क्रमशः आते हैं। यह युग चक्र धर्म और अधर्म के बीच संतुलन का प्रतीक है। जब-जब धर्म का क्षरण होता है और अधर्म का वर्चस्व बढ़ता है, तब-तब भगवान स्वयं किसी न किसी रूप में इस धरा पर अवतरित होते हैं। अवतारवाद का यह सिद्धांत केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक गहरा दार्शनिक सूत्र है जो यह स्थापित करता है कि दैवीय शक्ति सृष्टि के कल्याण के लिए प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करती है। इसका सबसे प्रमुख और सुप्रसिद्ध वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं किया है।    

यह सिद्धांत बताता है कि भगवान का आगमन किसी समय सीमा से बँधा नहीं होता, बल्कि यह उनके प्राकट्य के माप-दण्डों पर निर्भर करता है, जो धर्म की स्थिति से निर्धारित होते हैं। प्रत्येक अवतार का उद्देश्य साधु-जनों की रक्षा करना और दुष्टों का संहार करके धर्म की पुनर्स्थापना करना होता है। कल्कि अवतार इसी श्रृंखला की अंतिम कड़ी माने जाते हैं, जो कलयुग के चरम पर प्रकट होकर एक नए युग का सूत्रपात करेंगे।    

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भगवद्गीता के चौथे अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में भगवान कहते हैं:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

अर्थ: “हे भरतवंशी अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का बोलबाला बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं प्रकट होता हूँ। सज्जन लोगों की रक्षा के लिए, दुष्टों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ।”   

यह श्लोक न केवल कल्कि अवतार, बल्कि समस्त दशावतारों के मूल उद्देश्य को स्पष्ट करता है। यह कल्कि के अवतरण का सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक आधार है, जो दर्शाता है कि उनका आगमन केवल एक पूर्वनिर्धारित घटना नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए एक आवश्यक दैवीय प्रतिक्रिया है।

1.1. कलयुग की वर्तमान अवस्था और उसका चरम

सनातन शास्त्रों में कलयुग की समाप्ति की भयावह स्थितियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के बारहवें स्कंध में, शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित से कहते हैं कि जैसे-जैसे परम कलयुग निकट आएगा, धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शक्ति और स्मृति-शक्ति का धीरे-धीरे लोप हो जाएगा। मनुष्य सात्विक जीवन के बजाय तामसिक और भोगवादी जीवन जीने में विश्वास करेगा। सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पतन होगा। लोग अपने माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों का आदर करना छोड़ देंगे।

अधर्म अपने चरम पर होगा, जिससे चारों ओर भ्रष्टाचार, अन्याय और नैतिक पतन फैल जाएगा। प्राकृतिक आपदाएँ, महामारियाँ और युद्ध बढ़ेंगे, और समाज में अराजकता का बोलबाला होगा। मनुष्य की औसत आयु घटकर मात्र 20 से 30 वर्ष रह जाएगी, और उनका कद भी बहुत कम हो जाएगा। शासक वर्ग धर्म के मार्ग से भटककर केवल स्वार्थ और लोभ में लिप्त हो जाएगा, जिससे प्रजा का उत्पीड़न बढ़ेगा। चोर, अपनी ही तरह के चोरों की संपत्ति चुराने लगेंगे, और हत्या व लूटपाट का बोलबाला हो जाएगा। यह सभी स्थितियाँ एक ऐसे आध्यात्मिक और नैतिक क्षरण को दर्शाती हैं जो बाहरी अराजकता का मूल कारण है। बाहरी पापों का यह प्रसार लोगों के आंतरिक नैतिक मूल्यों के पूर्ण पतन का प्रत्यक्ष परिणाम है। इसी स्थिति में, जब मानव कल्याण की आशा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, तब भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतरित होंगे।    

भाग II: कल्कि अवतार का शास्त्रीय प्रमाण

2.1. श्रीमद्भागवत महापुराण: कल्कि का प्राथमिक विवरण

भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का सबसे प्रामाणिक और प्राथमिक विवरण श्रीमद्भागवत महापुराण के बारहवें स्कंध के द्वितीय अध्याय में मिलता है। इस ग्रंथ में कल्कि के जन्मस्थान, उनके माता-पिता और उनके उद्देश्य का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।   

पुराणों में श्लोकों के माध्यम से यह उद्घाटन किया गया है कि कल्कि का जन्म कहाँ और किस परिवार में होगा। श्रीमद्भागवत में कहा गया है:

 

अर्थ: “सम्भल ग्राम के मुख्य ब्राह्मण, महात्मा विष्णुयश के घर में भगवान कल्कि प्रकट होंगे।”    

यह श्लोक स्पष्ट रूप से कल्कि के जन्मस्थान और उनके पिता के नाम का उल्लेख करता है। एक अन्य श्लोक में इसी तथ्य को और अधिक स्पष्ट किया गया है:

अर्थ: “संबल ग्राम के प्रमुख ब्राह्मण के घर में, जहाँ भगवान विष्णु का नित्य यश-गान किया जा रहा होगा, उसी घर में भगवान कल्कि का जन्म होगा।”    

यह शास्त्रीय प्रमाण कल्कि के अवतरण की ऐतिहासिकता और निश्चितता को पुष्ट करता है। यह मात्र एक भविष्यवाणी नहीं, बल्कि एक दिव्य योजना का हिस्सा है, जिसका विवरण स्वयं वेदव्यास जी ने अपने ग्रंथों में किया है।

2.2. कल्कि पुराण: लीलाओं का विस्तृत वर्णन

कल्कि पुराण, एक उप-पुराण होने के बावजूद, कल्कि अवतार की कथा पर विशेष रूप से केंद्रित है और उनके जीवन, शिक्षा, विवाह और युद्धों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ न केवल कल्कि के आगमन का विवरण देता है, बल्कि यह भी बताता है कि वह कैसे धर्म की स्थापना करेंगे।   

कल्कि पुराण के अनुसार, कल्कि भगवान अपने गुरु परशुराम जी से मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। परशुराम, जो भगवान विष्णु के ही एक अवतार हैं और चिरंजीवी (अमर) माने जाते हैं, कल्कि को अस्त्र-शस्त्रों और युद्ध कलाओं में पारंगत करेंगे। परशुराम के कहने पर, कल्कि भगवान शिव की तपस्या करेंगे और उनसे दिव्य शक्तियाँ प्राप्त करेंगे, जिनका उपयोग वे अधर्म के नाश के लिए करेंगे।    

कल्कि का गुरु के मार्गदर्शन में ज्ञान प्राप्त करना एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखता है। यह केवल एक तथ्य नहीं है, बल्कि यह सनातन परंपरा में गुरु-शिष्य के महत्व को दर्शाता है। यह दिखाता है कि स्वयं भगवान भी, जब भौतिक रूप में अवतरित होते हैं, तो वे ज्ञान और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करते हैं। यह भगवान के कार्य को एक व्यवस्थित और पारंपरिक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करता है, जो मानवीय प्रयासों से परे है।

2.3. अन्य प्रमुख ग्रंथों में उल्लेख

कल्कि अवतार का उल्लेख केवल श्रीमद्भागवत और कल्कि पुराण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई अन्य प्रमुख धर्मग्रंथों में भी मिलता है।

  • भविष्य पुराण: यह पुराण भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन करता है और इसके प्रतिसर्ग पर्व में कल्कि का उल्लेख प्राप्त होता है।    
  • महाभारत: महाभारत के वनपर्व में महर्षि वेदव्यास ने कल्कि के जन्म के बारे में लिखा है। इसमें वे संभल ग्राम को “संभूत संबल” के नाम से संबोधित करते हैं, जिसका अर्थ है “स्थापित संबल” या “ब्राह्मणों की बस्ती वाला गांव।”    
  • अग्नि पुराण: इस पुराण के 16वें अध्याय में कल्कि के स्वरूप का वर्णन है। इसके अनुसार, कल्कि सफेद घोड़े पर सवार होंगे और उनके पास तीर-कमान होगा।   
  • स्कंद पुराण: स्कंद पुराण भी कल्कि के अवतरण की भविष्यवाणी करता है, जिसमें कहा गया है कि वे कलयुग के अंत में प्रकट होंगे जब पाप अपने चरम पर होगा।    

इन सभी ग्रंथों में कल्कि का वर्णन एक ही उद्देश्य के साथ किया गया है: धर्म की पुनर्स्थापना के लिए एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में उनका आगमन। इन विभिन्न ग्रंथों में वर्णित विवरणों की समानता इस भविष्यवाणी की प्रामाणिकता को और अधिक मजबूत करती है।

2.4. कल्कि पुराण के अतिरिक्त अन्य श्लोक और उनका भावार्थ

विभिन्न धर्मग्रंथों में कल्कि भगवान के अवतरण और लीलाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। ये श्लोक उनकी महिमा और उद्देश्य को और अधिक स्पष्ट करते हैं:

  • कल्कि के जन्म के समय का श्लोक (कल्कि पुराण):

     अर्थ: “माधव (वैशाख) मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को, माता-पिता (विष्णुयश और सुमति) ने एक पुत्र को जन्म लेते हुए देखा और वे अत्यंत प्रसन्न हुए।”    

  • कल्कि द्वारा अधर्मियों के संहार का श्लोक (कल्कि पुराण):

    अर्थ: “अत्यंत अधर्मी और पाखंडी लोग, और सभी म्लेच्छ कल्कि द्वारा नष्ट कर दिए जाएंगे।”  

  • कल्कि स्तोत्र का एक श्लोक:

       

    अर्थ: “मेरा घर जो पति, पुत्रों और पोतों से भरा है, तथा गज, रथ, ध्वजाओं, चँवर और धन से सुशोभित है, और जिसमें मणिमय सिंहासन है, वह सब आपकी चरण-कमलों की सेवा के बिना क्या शोभा पाएगा?”    

  • कल्कि की महिमा का एक श्लोक:

       

    अर्थ: “हे भय का नाश करने वाले उत्तम घोड़े पर सवार, तलवार को धारण करने वाले, शरण देने वाले, और दुष्टों को डराने वाले! हे जयशील, इस धरती के भार और संसार को नष्ट करने वाले! हे सौ चंद्रमाओं के समान सौन्दर्यशाली, युद्ध के मैदान में मदन (कामदेव) के समान!”

       

भाग III: भगवान कल्कि का दिव्य स्वरूप और परिवार

3.1. स्वरूप और शस्त्रों का प्रतीकात्मक विश्लेषण

कल्कि भगवान का स्वरूप उनके उद्देश्य के अनुरूप है। वे एक महान योद्धा के रूप में चित्रित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य अधर्मियों का संहार करना है।    

  • शारीरिक वर्णन: कल्कि 64 कलाओं में माहिर और “निष्कलंक” अवतार होंगे। उनका रंग गोरा होगा, लेकिन क्रोध में वे काले भी हो सकते हैं।    
  • श्वेत अश्व ‘देवदत्त’: कल्कि एक सफेद रंग के घोड़े पर सवार होकर प्रकट होंगे, जिसका नाम देवदत्त होगा। देवदत्त घोड़ा दशरथ के रथ की तरह दसों दिशाओं में समान गति से चलने में सक्षम होगा। यह घोड़ा अर्जुन के शंख का भी नाम था, जो कल्कि के आगमन को एक नए धर्मयुद्ध के रूप में स्थापित करता है।   
  • दिव्य तलवार ‘नंदका’: कल्कि अपने हाथों में एक धधकती हुई तलवार धारण करेंगे, जिसे ‘नंदका’ तलवार कहा जाता है। नंदका का शाब्दिक अर्थ है “जो भगवान को प्रसन्नता दे”। यह तलवार भगवान विष्णु का एक विलक्षण शस्त्र है और यह दर्शाता है कि कल्कि का अधर्म का नाश करना भगवान के लिए एक आनंददायक कार्य है, क्योंकि यह धर्म की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है। यह प्रतीकात्मकता उनके कार्य को केवल हिंसा के रूप में नहीं, बल्कि एक आवश्यक और शुभ कार्य के रूप में प्रस्तुत करती है।  

कल्कि के स्वरूप में यह सभी तत्व, जैसे श्वेत घोड़ा, तेज तलवार और 64 कलाओं में निपुणता, उनके दैवीय और योद्धा स्वरूप को दर्शाते हैं। वे धर्म और न्याय के प्रतीक हैं, और उनकी लीलाएँ आध्यात्मिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरित करेंगी।   

3.2. पारिवारिक परिचय

पुराणों में कल्कि भगवान के परिवार के सदस्यों का भी विस्तृत वर्णन मिलता है, जो उनके अवतार की मानवता को स्थापित करता है।    

  • माता-पिता: कल्कि पुराण के अनुसार, उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। विष्णुयश एक श्रेष्ठ ब्राह्मण और भगवान विष्णु के परम भक्त होंगे, जिन्हें वेद और पुराणों का भी ज्ञान होगा।    
  • भाई: कल्कि भगवान के चार भाई होंगे, ठीक उसी प्रकार जैसे रामावतार में थे। उनके भाइयों के नाम सुमंत, प्राज्ञ और कवि होंगे, जो कल्कि के साथ मिलकर धर्म की स्थापना में सहायता करेंगे।    
  • पत्नियां और पुत्र: कल्कि की दो पत्नियां होंगी। पहली पत्नी पद्मा, जो लक्ष्मी का रूप हैं, और दूसरी रमा, जो वैष्णवी का रूप हैं। उनके चार पुत्रों का भी उल्लेख है: जय, विजय, मेघमाल और बलाहक।   

यह पारिवारिक विवरण कल्कि के जीवन को एक पूर्णता प्रदान करता है और दर्शाता है कि वे न केवल एक दैवीय शक्ति हैं, बल्कि एक मानव जीवन के सभी पहलुओं को भी अनुभव करें

भाग-IV: कल्कि की लीलाएं और धर्म की पुनर्स्थापना

4.1. दुष्टों और अधर्मियों का संहार

कल्कि अवतार का प्राथमिक उद्देश्य कलयुग के चरम पर फैले पाप और अधर्म का पूरी तरह से नाश करना है। वे एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में प्रकट होंगे, जो एक सफेद घोड़े पर सवार होकर दुष्टों का संहार करेंगे। पुराणों में इस संहार को “म्लेच्छों” (पाखंडी या अधर्मी लोगों) का नाश बताया गया है।    

कल्कि अपनी नंदका तलवार का उपयोग करके पापी शासकों और अत्याचारियों का अंत करेंगे। यह लीला केवल भौतिक युद्ध तक सीमित नहीं होगी। यह एक प्रकार का धर्मयुद्ध होगा, जिसमें बुराई और अच्छाई के बीच संघर्ष होगा। कल्कि का उद्देश्य केवल मारना नहीं, बल्कि अधर्म की जड़ को ही समाप्त करना होगा, जिससे सतयुग का मार्ग खुल सके।    

4.2. सतयुग का आरंभ और आध्यात्मिक जागरण

अधर्म के नाश के बाद, कल्कि सतयुग की शुरुआत करेंगे। यह युग परिवर्तन मानवता के लिए एक नई शुरुआत होगी, जहाँ धर्म, सत्य, और सद्गुणों की पुनः स्थापना होगी। कल्कि चारों वर्णों और समस्त आश्रमों में शास्त्रीय मर्यादाएँ स्थापित करेंगे और समाज में न्याय और शांति का साम्राज्य लाएंगे।    

यह युग परिवर्तन भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर होगा। कल्कि समाज में न्याय की स्थापना करके कमजोरों की रक्षा करेंगे और अत्याचारियों को दंड देंगे। वे लोगों को एकता और भाईचारे का संदेश देंगे, और उनके आगमन के बाद भक्त आनंदित होंगे। लोग आध्यात्मिक रूप से उन्नत होंगे और सिद्ध अवस्था को प्राप्त करेंगे। इस प्रकार, कल्कि का अवतार केवल अंत नहीं, बल्कि एक नए, पवित्र और धर्मात्मा युग की शुरुआत है।   

तालिका 2: भगवान कल्कि के मुख्य गुण और लीलाएं

पहलू विवरण स्रोत
अवतार का प्रकार विष्णु का दसवाँ और अंतिम अवतार। निष्कलंक और 64 कलाओं में निपुण।
गुरु भगवान परशुराम।
माता-पिता पिता: विष्णुयश, माता: सुमति।
भाई सुमंत, प्राज्ञ, और कवि।
पत्नियां पद्मा (लक्ष्मी का रूप) और रमा (वैष्णवी का रूप)।
पुत्र जय, विजय, मेघमाल, और बलाहक।
अश्व का नाम देवदत्त।
तलवार का नाम नंदका।
मुख्य उद्देश्य अधर्म का नाश, धर्म की पुनर्स्थापना, और सतयुग का आरंभ।

   

भाग V: समय और स्थान पर विभिन्न मत और भविष्यवाणियाँ

5.1. कल्कि के अवतरण का समय

कल्कि के अवतरण के समय को लेकर दो प्रमुख धारणाएँ प्रचलित हैं: एक पारंपरिक शास्त्रीय गणना और दूसरी आधुनिक भविष्यवाणियाँ।

  • शास्त्रीय गणना: पुराणों के अनुसार, कलयुग की कुल अवधि 4,32,000 वर्ष है। वर्तमान में, कलयुग का केवल प्रथम चरण ही चल रहा है, जिसके लगभग 5,126 वर्ष बीत चुके हैं। इस गणना के आधार पर, कल्कि के अवतरण में अभी लाखों वर्ष शेष हैं।    
  • ज्योतिषीय संकेत: एक श्लोक के अनुसार, कल्कि का अवतार तब होगा जब चंद्रमा और सूर्य, बृहस्पति के साथ पुष्य नक्षत्र और कुंभ राशि में एक साथ आएंगे।    
  • आधुनिक भविष्यवाणियाँ: “भविष्य मालिका” जैसे कुछ ग्रंथों और आधुनिक व्याख्याकारों के अनुसार, कल्कि अवतार का आगमन बहुत निकट है, और कुछ लोग 2032 के आसपास इसके चरम संकट और अवतरण की भविष्यवाणी करते हैं।   

ये दोनों दृष्टिकोण एक स्पष्ट विरोधाभास प्रस्तुत करते हैं: एक ब्रह्मांडीय, लाखों वर्षों के युग चक्र का वर्णन करता है, जबकि दूसरा एक आसन्न, तात्कालिक घटना को बताता है। यह विरोधाभास काल की अवधारणा के दो अलग-अलग दृष्टिकोणों को दर्शाता है। एक तरफ, यह एक शाश्वत चक्र है जो मानव इतिहास से कहीं बड़ा है। दूसरी तरफ, यह एक तात्कालिक आध्यात्मिक परिवर्तन है जो एक भौतिक और तात्कालिक घटना के रूप में घटित हो सकता है। यह दर्शाता है कि आधुनिक भविष्यवाणियाँ संभवतः आध्यात्मिक परिवर्तन को एक भौतिक और तात्कालिक घटना के रूप में देख रही हैं, जबकि पुराण एक व्यापक ब्रह्मांडीय चक्र का वर्णन कर रहे हैं।

5.2. जन्मस्थान: संभल ग्राम पर विवाद और मान्यताएं

पुराणों में कल्कि के जन्मस्थान के रूप में “सम्भल ग्राम” का स्पष्ट उल्लेख है। हालांकि, इस स्थान की पहचान को लेकर कई मान्यताएँ और कुछ विवाद भी हैं।   

  • उत्तर प्रदेश का संभल: अधिकांश विद्वान उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में स्थित संभल को ही पौराणिक संभल मानते हैं। इस स्थान का नाम सतयुग में सत्यव्रत, त्रेतायुग में महंतगिरी और द्वापर में पिंघल द्वीप था, और मुगल काल में इसका नाम बदलकर संभल हो गया। इस स्थान पर एक कल्कि धाम मंदिर का निर्माण भी किया जा रहा है।    
  • अन्य दावे: कुछ लोग ओडिशा के संबलपुर और तिब्बत के शम्भाला को भी संभावित जन्मस्थान बताते हैं।    
  • विवादित स्थल: उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर एक विवाद है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह एक प्राचीन कल्कि मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। इस विवाद के पीछे ऐतिहासिक रिपोर्टें और मानचित्रों का हवाला दिया जाता है।    

जन्मस्थान के नाम ‘संभल’ का प्रतीकात्मक महत्व भी है। ‘संभल’ शब्द का अर्थ ‘संभालना’ है, जो कल्कि के धर्म को ‘संभालने’ या ‘पुनर्स्थापित करने’ के उद्देश्य से गहरा संबंध रखता है। यह दर्शाता है कि यह स्थान केवल एक भौगोलिक बिंदु नहीं है, बल्कि इसका एक आध्यात्मिक महत्व भी है जो अवतार के कार्य को दर्शाता है।    

भाग VI: सारांश

6.1. प्रमुख बिंदुओं का सारांश

इस विस्तृत रिपोर्ट में हमने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत, भगवान कल्कि के अवतार का गहन विश्लेषण किया है। हमने देखा कि अवतारवाद का सिद्धांत धर्म की हानि और अधर्म के उत्थान के समय दैवीय हस्तक्षेप को स्थापित करता है, जिसका चरम कलयुग में होगा। शास्त्रीय प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि कल्कि का जन्म सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के घर होगा। वे 64 कलाओं में निपुण होंगे, परशुराम से शिक्षा प्राप्त करेंगे, और अपने श्वेत अश्व देवदत्त तथा नंदका तलवार से अधर्मियों का संहार करेंगे। उनकी लीलाओं का उद्देश्य केवल पाप का नाश करना नहीं, बल्कि सतयुग का आरंभ करके धर्म, सत्य और न्याय की पुनर्स्थापना करना है।    

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