स्मार्त विधि का अर्थ समझने के लिए पहले “स्मार्त” शब्द को समझना ज़रूरी है।
1. स्मार्त का अर्थ
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“स्मार्त” शब्द “स्मृति” से बना है।
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वेदों के बाद जो धर्मशास्त्र, गृह्यसूत्र, आचारसंग्रह और मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति आदि ग्रंथ बने, उन्हें स्मृति ग्रंथ कहते हैं।
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उन स्मृति ग्रंथों में बताए अनुसार जो विधि की जाती है, उसे ही स्मार्त विधि कहा जाता है।
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यानी — वेदमंत्रों पर आधारित विधि नहीं, बल्कि स्मृति-आधारित और सामान्य गृहस्थों के लिए सरल रीति-नीति।
2. स्मार्त विधि क्या है?
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वैदिक विधि कठिन होती है — उसमें यज्ञ, अग्निहोत्र, ऋग्वेद-यजुर्वेद के मंत्र और विशेष पुरोहित आवश्यक होते हैं।
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लेकिन सभी लोग वेदपाठी नहीं होते, इसलिए बाद में स्मृति ग्रंथों ने सरल नियम बताए, ताकि हर गृहस्थ पितृकर्म कर सके।
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यही स्मार्त विधि कहलाती है।
3. श्राद्ध–तर्पण में स्मार्त विधि
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पितरों को तिल, जल, अक्षत अर्पित करके “स्वधा” मंत्र बोलना।
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पिंडदान (चावल के गोले) बनाकर पितरों को अर्पित करना।
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ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना।
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देवता–ऋषि–पितर तीनों को स्मरण करना।
यह सब बिना यज्ञ–अग्निहोत्र के, केवल संकल्प, आह्वान और अर्पण से सम्पन्न होता है।
4. सारांश
👉 स्मार्त विधि = स्मृति ग्रंथों पर आधारित, सामान्य गृहस्थ के लिए सरल रीति-नीति।
👉 इसमें वेद मंत्रों के स्थान पर सामान्य मंत्र (“ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः”) प्रयोग होते हैं।
👉 यह विधि श्राद्ध, तर्पण, विवाह, संस्कारों में सर्वाधिक चलन में है।
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