नेपाल में अस्तित्व बचाने को नौ वाम दलों का विलय

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आम चुनाव से पहले बना नया वाम मोर्चा

प्रचंड होंगे नयी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के समन्वयक, माधव नेपाल को मिली सह-समन्वयक की जिम्मेदारी

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काठमांडू, 05 नवंबर (एजेंसियां)। नेपाल की राजनीति में बुधवार को एक नाटकीय मोड़ आया, जब वर्षों से कमजोर और बिखरे वामपंथी दलों ने अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में एकजुट होकर एक नई राजनीतिक ताकत — नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) — के गठन की घोषणा की। काठमांडू के भृकुटीमंडप में आयोजित भव्य जनसभा में यह घोषणा उस समय की गई, जब देश में आम चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।

इस विलय को विश्लेषक वामपंथ की पुनर्जीवित करने की आखिरी कोशिश बता रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार, आपसी कलह और जनता से दूरी के कारण वामपंथी दल नेपाल की सत्ता और साख — दोनों ही स्तरों पर कमजोर होते चले गए थे। अब नौ दलों ने एक ही झंडे के नीचे आकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वाम विचारधारा अभी भी जिंदा है और आने वाले चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

नई पार्टी की बागडोर पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ के हाथों में सौंपी गई है, जबकि माधव कुमार नेपाल को सह-समन्वयक का दायित्व मिला है। दोनों नेताओं ने मंच से यह दावा किया कि यह एकीकरण “भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राजनीतिक पतन” के खिलाफ एक ऐतिहासिक मोर्चा है।

वामपंथ की पुनर्जीवन यात्रा या मजबूरी का गठबंधन?
राजधानी में आयोजित रैली में हजारों कार्यकर्ताओं ने लाल झंडे लहराते हुए ‘एकता और परिवर्तन’ के नारे लगाए। मगर राजनीतिक विश्लेषक इसे “मजबूरी का गठबंधन” करार दे रहे हैं। उनका मानना है कि युवाओं के बीच वामपंथ की लोकप्रियता तेजी से घट रही है और यह विलय पार्टी नेताओं के लिए अस्तित्व बचाने का रास्ता भर है।

प्रचंड ने अपने भाषण में जन-आंदोलनों का हवाला देते हुए कहा, “नेपाल में नई पीढ़ी ने हमें आइना दिखाया है। अब हमें खुद को बदलना होगा।” उन्होंने कहा कि पार्टी मार्क्सवाद-लेनिनवाद को अपनी वैचारिक दिशा बनाए रखेगी और छह महीनों के भीतर राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाकर संगठनात्मक ढांचा तय करेगी।

वाम मोर्चे की नई शक्ल
नई नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल दल हैं — सीपीएन (माओवादी केंद्र), सीपीएन (एकीकृत समाजवादी), नेपाल समाजवादी पार्टी, सीपीएन (समाजवादी), जनसमाजवादी पार्टी नेपाल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीएन (माओवादी समाजवादी), सीपीएन साम्यवादी और देशभक्त समाजवादी मोर्चा। इन सभी ने साझा घोषणा पत्र में कहा है कि वे नेपाल को भ्रष्टाचार-मुक्त, समानता-आधारित और जनमुखी राज्य बनाने के लिए संघर्ष करेंगे।

हालांकि, प्रमुख वामपंथी ताकत सीपीएन-यूएमएल इस प्रक्रिया से बाहर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस एकीकरण को “राजनीतिक स्टंट” बताया है। इसके बावजूद प्रचंड ने संकेत दिया कि बातचीत के दरवाजे खुले हैं और कई वरिष्ठ वामपंथी नेताओं से संवाद जारी है।

जनता से दूरी ने घटाई वामपंथ की ताकत
नेपाल की राजनीति में वामपंथ का सुनहरा दौर 2008 से 2018 तक माना जाता है, जब माओवादी आंदोलन के बाद देश ने राजतंत्र से लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाया था। मगर सत्ता में पहुंचने के बाद वामपंथी दलों पर वही आरोप लगने लगे — भ्रष्टाचार, सिफारिश संस्कृति और जनता से कटाव। इसके चलते युवाओं में वाम विचारधारा के प्रति निराशा गहराती चली गई।

हाल के महीनों में ‘जेन-जेड आंदोलन’ के नाम से युवा वर्ग ने सड़कों पर उतरकर पुरानी राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ मोर्चा खोला। इस आंदोलन ने वाम दलों को आत्ममंथन के लिए मजबूर किया। प्रचंड ने सभा में स्वीकार किया कि “राजनीतिक दल जनता से दूर हो गए थे, अब हमें फिर से जनता के बीच लौटना होगा।”

चुनावी समीकरणों में बड़ा असर
नए गठबंधन के गठन से नेपाल की सियासत में हलचल मच गई है। सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए यह वाम एकता नई चुनौती बन सकती है। नौ दलों की यह एकजुटता अगर टिकाऊ साबित होती है, तो वाम मोर्चा एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, आने वाले चुनावों में यह मोर्चा विपक्ष की आवाज को संगठित करेगा और सत्तारूढ़ दलों के लिए कड़ी टक्कर बन सकता है। हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या यह एकीकरण केवल चुनावी गठजोड़ बनकर रह जाएगा या वास्तव में वामपंथी सिद्धांतों को नया जीवन देगा।

युवाओं और महिलाओं पर फोकस
नई पार्टी ने ऐलान किया है कि आगामी चुनावों में वह सभी संसदीय सीटों पर संयुक्त रूप से उम्मीदवार उतारेगी। संगठन में महिलाओं और युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। यह कदम युवाओं में घटती लोकप्रियता को फिर से हासिल करने की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।

अस्तित्व की अंतिम बाज़ी
नेपाल के राजनीतिक इतिहास में यह विलय वामपंथ की शायद सबसे बड़ी “अस्तित्व बचाओ बाज़ी” मानी जा रही है। बीते एक दशक में बिखराव, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और वैचारिक अस्पष्टता ने वाम राजनीति को लगभग निष्प्रभावी बना दिया था। अब यह नया वाम मोर्चा उस खोए जनाधार को वापस पाने की कोशिश है, जिसे कभी नेपाल की जनता ने बड़े विश्वास के साथ उन्हें सौंपा था।

अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो नेपाल की राजनीति में वामपंथ एक बार फिर निर्णायक शक्ति बन सकता है। लेकिन यदि यह एकीकरण पुरानी राजनीति और सत्ता संघर्ष की पुनरावृत्ति बन गया, तो वामपंथ की साख के साथ-साथ उसका अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।


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