मस्तिष्क और ज्ञान तंतुओं की प्रक्रिया बहुत गूढ़ और सूक्ष्म होती है और उसमें किसी प्रकार की खराबी आ जाने से सिर में चक्कर आना, स्मरण शक्ति का हास, घबराहट, मूर्छा, मिर्गी, उन्माद जैसे भयंकर दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इन सब रोगों की चिकित्सा भी बहुत कठिन होती है और डॉक्टर तथा वैद्य जो तीव्र औषधियाँ देते हैं वे थोड़े समय तात्कालिक लाभ भले ही दिखा दें, पर अंत में मस्तिष्क शक्ति की भी खराबी और नष्ट करने वाली सिद्ध होती हैं। तुलसी का सेवन ऐसी अवस्था में अमृतोपम कार्य करता है, क्योंकि वह भी एक सूक्ष्म प्रभाव युक्त दिव्य बूटी है और श्रद्धा जैसे उपासना संबंधी होने से वह मानसिक संस्थान पर विशेष असर भी डाल सकता है। इससे मस्तिष्क संबंधी शिकायतों तथा निर्बलता में तुलसी का प्रयोग सर्वोत्तम है। ‘तुलसी कवच’ में भी इसकी जो महिमा वर्णित है उसके गूढ़ आशय पर ध्यान देने से प्रतीत होता है कि तुलसी के संपर्क में आने और भक्तिपूर्वक उसको प्रसादरूप में ग्रहण करने का प्रभाव हमारी ज्ञानेन्द्रियों पर बहुत कल्याणकारी पड़ता है और मस्तिष्क, आँखें, कान, नाक, जीभा, कंठ आदि सभी स्थानों के दोष दूर होकर विकसित होते हैं।
(1) स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते और चार-पाँच कालीमिर्च बारीक घोंट-छानकर सुबह लगातार पिया जाए तो मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। यदि चाहें तो दो-चार बादाम और इसमें थोड़ा शहद मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं।
(2) प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात तुलसी के पाँच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मस्तिष्क की निर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति तथा मेधा की वृद्धि होती है।
(3) मिर्गी रोग में तुलसी के ताजे पत्ते नीबू के साथ पीसकर उबटन की तरह लगाने से बहुत लाभ पहुँचता है, यह प्रयोग नियमित रूप से लगातार बहुत समय तक करना चाहिए।
(4) तुलसी के पत्ते और ब्राह्मी पीसकर छानकर एक गिलास नियमित सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता से उत्पन्न उन्माद ठीक हो जाता है।
(5) तुलसी के रस में थोड़ा नमक मिलाकर नाक में दो-चार बूँद टपकाने से मूर्छा और बेहोशी में लाभ होता है।
(6) तुलसी का श्रद्धापूर्वक नियमित सेवन सभी ज्ञानेन्द्रियों की क्रिया को शुद्ध करके उनकी शक्ति को बढ़ाता है।