नैमिषारण्य की उत्पत्ति

0
456

🌟 पौराणिक कथा: नैमिषारण्य की उत्पत्ति और चक्रतीर्थ की कथा

पुराणों के अनुसार, एक बार ऋषियों ने सोचा कि कलियुग में धर्म की रक्षा कैसे की जाए। वे महर्षि शौनक के नेतृत्व में एक महान यज्ञ करने के लिए उपयुक्त स्थान की खोज में निकले। वे ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और पूछा:

“हे ब्रह्मा! ऐसा कौन-सा स्थान है जहाँ हम तप करके सभी पापों का नाश कर सकें और सत्य, धर्म और ज्ञान की प्राप्ति कर सकें?”

ब्रह्मा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और एक चक्र (सुदर्शन चक्र) को प्रकट कर कहा:

Advertisment

“जहाँ यह चक्र स्वयं जाकर रुकेगा, वही स्थान सर्वश्रेष्ठ तीर्थ होगा। वहीं यज्ञ करो।”

चक्र तीव्र गति से पृथ्वी पर घूमा और आकर गोमती नदी के तट पर स्थित एक वन में ठहर गया। वही स्थान नैमिषारण्य कहलाया।

जहाँ चक्र रुका, वहाँ एक जलकुंड प्रकट हुआ जिसे आज चक्रतीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि यह कुंड पाताल तक जाता है और उसमें स्नान करने से सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

🚶‍♂️ यात्रा-विवरण (भावनात्मक रूप में): एक भक्त की दृष्टि से

“मैं एक बार नैमिषारण्य गया था, बस से लखनऊ से सीतापुर होते हुए। जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा, मानो समय थम गया। साधु-संतों की वाणी, गोमती की निर्मल धारा और वन की शांति — यह सब कुछ आत्मा को सुकून देने वाला था।

मैंने चक्रतीर्थ में स्नान किया — ठंडा जल और भीतर से एक दिव्य कंपन — मानो कोई अदृश्य शक्ति मेरा स्पर्श कर रही हो। वहाँ के पंडित जी ने बताया कि यह कुंड पाताल से जुड़ा है और यहाँ ध्यान करने से हजार गुना फल मिलता है।

इसके बाद मैंने व्यास गद्दी, ललिता देवी मंदिर और हनुमानगढ़ी के दर्शन किए। हर स्थान पर एक विशेष ऊर्जा थी। सबसे अधिक शांति मुझे तब मिली जब मैंने एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप किया। वहाँ न कोई शोर था, न कोई जल्दबाज़ी — बस मैं और ईश्वर।

जब वापस लौटा, तो लगा जैसे शरीर तो आया है, पर आत्मा अभी भी वहीं किसी वटवृक्ष के नीचे ध्यान में लीन है…”

🌺 महत्वपूर्ण स्थल नैमिषारण्य में:

  1. चक्रतीर्थ – पवित्र जलकुंड, सुदर्शन चक्र का स्थान

  2. ललिता देवी मंदिर – 51 शक्तिपीठों में से एक

  3. व्यास गद्दी – जहाँ महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना की

  4. सूत जी मंदिर – जहाँ सूत मुनि ने ऋषियों को कथा सुनाई

  5. हनुमानगढ़ी – बालाजी हनुमान जी का अत्यंत प्रभावशाली मंदिर

  6. गोमती नदी – निर्मल जल वाली पवित्र नदी

नैमिषारण्य की महिमा जानकर आप होंगे हैरान

 

मंगल देव अगर प्रसन्न हुए तो क्या होगा

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here