भगवान् श्रीशिव का ध्यान
सुंदर कैलास पर्वत पर भगवान् श्रीशंकर विराजमान हैं। रक्ताभ सुंदर गौरवर्ण हैं। रत्नसिंहासनपर मृगछाला बिछी है, उसीपर आप आसीन हैं। चार भुजाएँ हैं, दाहिने ऊपर का हाथ ज्ञानमुद्राका है, नीचेके हाथमें त्रिशूल है, बायाँ ऊपरका हाथ मृगमुद्रासे सुशोभित है, नीचेका हाथ जानुपर रखे हुए हैं। गलमें रुद्राक्षकी माला है, साँप लिपटे हुए हैं, कानोंमें कुण्डल सुशोभित हैं। ललाटपर त्रिपुण्ड्र शोभा पा रहा है, सुंदर तीन नेत्र हैं, नेत्रोंकी दृष्टि नासिकापर लगी है; मस्तकपर अर्धचन्द्र है, सिरपर जटाजूट सुशोभित है। अत्यन्त प्रसन्न मुख है। देवता और ऋषि भगवान्की स्तुति कर रहे हैं। बड़ा ही सुंदर विज्ञानानन्दमय स्वरूप है।
मानसिक पूजा की प्रक्रिया (Mental Worship Process of Lord Shiva)
1. स्थान शुद्धि और आत्म शुद्धि
मन ही मन अपना आसन शुद्ध करें और अपने शरीर व मन को पवित्र करें।
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥”
2. ध्यान (Meditation)
भगवान शिव का ध्यान सबसे पहले इसी लेख में ही बताया है –
कैलास पर विराजमान, गौरवर्ण, त्रिनेत्रधारी, जटाजूटधारी, गले में नाग और रुद्राक्ष की माला, अर्धचंद्र से सुशोभित, प्रसन्न मुख।
3. पंचोपचार/षोडशोपचार मानसिक रूप से अर्पण करना
मानसिक रूप से भगवान को ये अर्पित करें:
आसन – सुंदर कमल का आसन अर्पित करें।
पाद्य – गंगाजल से उनके चरण धोएं।
अर्घ्य – चंदन, पुष्प और जल से अर्घ्य दें।
आचमन, स्नान – मन में कल्पना करें कि भगवान को दिव्य जल से स्नान करा रहे हैं।
वस्त्र, आभूषण – रत्नजटित वस्त्र, मुकुट, कुंडल, हार आदि अर्पित करें।
गंध, पुष्प, धूप, दीप – चंदन, केसर, मनोहर पुष्प, सुगंधित धूप व दीप अर्पित करें।
नैवेद्य – मन में कल्पना करें कि दिव्य भोजन अर्पित कर रहे हैं।
आरती और प्रार्थना – दीपक से आरती करें और स्तुति करें।
4. प्रार्थना और क्षमा याचना
अंत में क्षमा प्रार्थना करें:
“यत्किञ्चिदपि मे दोषं पूजा यां च क्रियामहे। तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर॥”
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मानसिक पूजा के लाभ (Benefits of Mental Worship)
1. सच्ची भावनाओं से भगवान तुरंत प्रसन्न होते हैं – बाह्य पूजा की अपेक्षा मानसिक पूजा में श्रद्धा और भावना अधिक होती है।
2. स्थान या सामग्री की बाध्यता नहीं – यह पूजा कभी भी, कहीं भी की जा सकती है।
3. एकाग्रता और ध्यान की वृद्धि – मानसिक पूजा से चित्त शांत और एकाग्र होता है।
4. कर्म और दोषों का नाश – पापनाशक और मोक्षदायक मानी जाती है।
5. ज्ञान और आत्मानुभूति का मार्ग प्रशस्त होता है – यह पूजा साधक को ब्रह्मानुभूति की ओर ले जाती है।