शिवलिङ्ग (शिवलिंग) का अर्थ है—भगवान शिव का आदि-अनादी, निराकार, अव्यक्त, परमपुरुष स्वरूप।
लिंग का अर्थ है चिह्न, प्रतीक या संकेत, न कि भौतिक देह का कोई अंग। स्कन्दपुराण में कहा गया है—
“आकाश स्वयं लिंग है और धरती उसका आधार (पीठ) है।”
संपूर्ण ब्रह्माण्ड, जो निरंतर गतिमान है, उसकी धुरी (Axis) भी लिंग का ही प्रतीक मानी गई है।
इसीलिए पुराणों में शिवलिंग को प्रकाश-स्तंभ, अग्नि-स्तंभ, ऊर्जा-स्तंभ और ब्रह्माण्डीय-स्तंभ भी कहा गया है।
शिवलिंग, शिव एवं शक्ति—पुरुष और प्रकृति—का अद्वैत एकत्व है। संसार में न पुरुष का एकाधिकार है न प्रकृति का, बल्कि दोनों के संतुलन से सृष्टि चलती है।
ऊर्जा और पदार्थ का शाश्वत सिद्धांत
ब्रह्माण्ड में दो ही तत्त्व हैं—ऊर्जा और पदार्थ।
हमारा शरीर पदार्थ है और आत्मा ऊर्जा।
भगवान शिव पदार्थ-तत्त्व (स्थूल) और देवी शक्ति ऊर्जा-तत्त्व (सूक्ष्म) का एकत्व हैं—इसी संयुक्त रूप का प्रतीक है शिवलिंग।
आइंस्टीन ने अपने प्रसिद्ध सिद्धांत
E = mc²
से सिद्ध किया कि पदार्थ को पूर्णतः ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले ही सृष्टि के इसी रहस्य को शिवलिंग के द्वारा समझा दिया था।
शिवलिंग—ब्रह्माण्ड की वास्तविक आकृति
जब भी किसी स्थान पर ऊर्जा का विस्फोट होता है, उसका प्रसार वृत्ताकार (360°) तथा ऊर्ध्व-अधो दिशा में होता है। परिणामस्वरूप जो आकृति बनती है, वह शिवलिंग समान होती है।
उदाहरण:
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परमाणु विस्फोट की ऊर्जा का रूप
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शांत जल में पत्थर गिरने पर उत्पन्न वृत्ताकार तरंगें
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आकाशगंगा (Galaxy) का ऊर्ध्व-अधो विस्तार
महाविस्फोट (Big Bang) के बाद ऊर्जा का प्रसार भी इसी प्रकार हुआ, जिससे ब्रह्माण्ड का प्रथम स्वरूप महाशिवलिंग जैसा बना। यही कारण है कि लिंगपुराण, शिवपुराण और स्कन्दपुराण कहता है कि—
देवता भी शिवलिंग का आदि और अंत नहीं जान सके।
हर महायुग के अंत में संपूर्ण सृष्टि शिवलिंग में लय होकर पुनः उसी से प्रकट होती है।
शिवलिंग-पूजन का महत्व
शास्त्र कहते हैं—
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तीर्थ की मिट्टी से बनाए शिवलिंग का विधि-विधान से पूजन करने से मनुष्य शिवस्वरूप होता है।
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शिवलिंग-पूजन से धन, संतान, विद्या, दीर्घायु, शांति और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा हो, वह स्थान तीर्थ बन जाता है।
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मृत्यु उसी स्थल पर होने पर शिवलोक की प्राप्ति होती है।
सिर्फ “शिव” नाम के उच्चारण मात्र से पापों का क्षय होता है और मन-बुद्धि निर्मल होती है।
शिव—तारक ब्रह्म
शास्त्र कहते हैं—
“शिव” दो अक्षरों का मंत्र ही परब्रह्मस्वरूप तारक मंत्र है।
इसे से बढ़कर कोई तारक ब्रह्म नहीं।
तारकं ब्रह्म परमं शिव इत्यक्षरद्वयं।
नैतस्मादपरं किञ्चित् तारकं ब्रह्म सर्वथा॥
प्रत्येक जीव में शिवलिंग का सूक्ष्म रूप
शिवलिंग हर जीव—स्त्री या पुरुष—में सूक्ष्म रूप से स्थित ऊर्जा-बिंदु का संकेत है।
इसीलिए सनातन धर्म कहता है—
“प्रत्येक प्राणी में ईश्वर विद्यमान है।”
इसी कारण सबको नमस्कार/प्रणाम किया जाता है—यही मानवीय जीवन का मूल सिद्धांत है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंग
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सोमनाथ — सौराष्ट्र (गुजरात)
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मल्लिकार्जुन — श्रीशैल (आंध्र)
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महाकालेश्वर — उज्जैन
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ओंकारेश्वर/अमलेश्वर — मध्यप्रदेश
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वैद्यनाथ — परली
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भीमशंकर — डाकिनी
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रामेश्वर — सेतुबंध (तमिलनाडु)
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नागेश्वर — दारुकावन
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काशी विश्वनाथ — वाराणसी
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त्र्यंबकेश्वर — गोदावरी तट
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केदारनाथ — हिमालय
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घुश्मेश्वर — शिवालय
सावन में शिवभक्त दूध, दही, शहद, बिल्वपत्र, धतूरा आदि से रुद्राभिषेक करते हैं।
शिवलिंग को लेकर भ्रांतियाँ
आजकल शिवलिंग के अर्थ को लेकर गंभीर भ्रांतियां फैलाई गई हैं।
ध्यान रहे—
1. संस्कृत में “लिंग” = प्रतीक, चिह्न, चिन्ह
जननेंद्रिय के लिए संस्कृत शब्द है—“शिश्न”।
अतः शिवलिंग का अशोभनीय अर्थ निकालना सरासर अज्ञान है।
2. शिवलिंग भगवान के निर्गुण-निराकार रूप का प्रतीक है
योगी ध्यान में जिस परम-शांति, शून्यता और आनंद का अनुभव करते हैं, वही शिवलिंग का भाव है।
3. शिवलिंग पर “ॐ” का जप श्रेष्ठ
शुद्ध ब्राह्मण परंपरा कहती है कि अभिषेक करते समय केवल
“ॐ… ॐ…”
का जप सर्वोत्तम है।
4. शिवलिंग का स्पर्श सामान्य भक्त कर सकते हैं
अन्य मूर्तियों में स्पर्श वर्जित रहता है परंतु शिवलिंग स्पर्श से मन-बुद्धि पवित्र होती है।
(मासिक धर्म वाली स्त्रियाँ शास्त्र अनुसार शुद्धि के बाद स्पर्श कर सकती हैं।)
5. जलघेरी (Channel) उत्तर दिशा में
शिवलिंग पर चढ़ा जल/दूध उत्तर दिशा की जलघेरी से कैलाश दिशामार्ग में प्रतीकात्मक रूप में जाता है।
इसीलिए जलघेरी को लांघना नहीं चाहिए और केवल आधा परिक्रमा की जाती है।
6. शिवलिंग पर चढ़ा नारियल फोड़ा नहीं जाता
उसे विसर्जित किया जाता है।
शिवलिंग को तुलसी के नीचे नहीं रखा जाता; वहाँ केवल शालिग्राम (विष्णु का निर्गुण रूप) रखा जाता है।
सूक्ष्म शरीर का रहस्य — ‘लिंग’ का वास्तविक अर्थ
ब्रह्मसूत्र (अध्याय 4, पाद 1, सूत्र 2) कहता है—
“लिंगाच्च” — लिंग अर्थात प्रमाण।
वेदांत में लिंग शरीर (सूक्ष्म शरीर) को 17 तत्त्वों से बना बताया गया है:
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मन
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बुद्धि
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5 ज्ञानेंद्रियाँ (श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, रस, गंध)
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5 कर्मेंद्रियाँ (हाथ, पांव, वाक्, गुदा, मूत्रेन्द्रिय)
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5 प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान)
शतपथ ब्राह्मण (5-2-2-3) इन्हें “सप्तदशः प्रजापतिः” कहता है।
इन्हीं तत्त्वों के माध्यम से आत्मा की सत्ता प्रकट होती है।
इसीलिए हिंदुओं का “लिंग-पूजन” आत्मा के सूक्ष्म-शरीर—परमात्मा के प्रमाण—का पूजन है।
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शिव के वे पावन स्थल, जहां पहुंचकर जन्म जन्मांतर के पाप हो जाते हैं नष्ट










