सनातन धर्म शास्त्रों में वर्णित ‘बुरी नज़र’ (Evil Eye) निवारण के शास्त्रोक्त उपाय

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बुरी नज़र अथवा दृष्टि दोष की अवधारणा भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से हिंदू धर्म शास्त्रों में अत्यंत प्राचीन है। यह केवल एक अंधविश्वास न होकर, बल्कि सूक्ष्म ऊर्जा विज्ञान और मनौवैज्ञानिक प्रभावों पर आधारित एक शास्त्रीय मीमांसा है। हिंदू धर्म में इसे कुदृष्टि या नजर दोष (Evil Eye)  के रूप में जाना जाता है, जो किसी व्यक्ति की सफलता, संपत्ति या खुशी को देखकर उत्पन्न ईर्ष्या, द्वेष या नकारात्मक विचारों से उत्पन्न होता है । यह नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के स्वास्थ्य, संबंधों और सौभाग्य को प्रभावित कर सकती है । 

यह रिपोर्ट हिंदू धर्म शास्त्रों—वेद, पुराण, कवच स्तोत्र, गृह्यसूत्र और तांत्रिक परंपराओं—में वर्णित दृष्टि दोष से बचाव के उपायों का विस्तृत, प्रामाणिक और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जिसमें प्रत्येक उपाय का शास्त्रीय संदर्भ भी उल्लेखित है।

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खंड I: दृष्टि दोष का शास्त्रीय मीमांसा एवं तात्विक आधार

1.1. दृष्टि दोष की परिभाषा और ऊर्जात्मक उत्पत्ति

दृष्टि दोष की उत्पत्ति का मूल कारण व्यक्ति की आंतरिक नकारात्मकता है। जब कोई व्यक्ति असुरक्षा, हीन भावना या असंतोष महसूस करता है और दूसरों की उपलब्धियों की तुलना स्वयं से करता है, तो यह भावना ईर्ष्या को जन्म देती है । यह ईर्ष्या जब तीव्र होती है, तो एक अदृश्य, हानिकारक तरंग के रूप में कार्य करती है, जिसे नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy) कहा जाता है । यह नकारात्मकता बाहरी रूप से प्रक्षेपित होकर प्रभावित व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर पर हमला करती है, जिससे उसे शारीरिक अस्वस्थता (चिंता, अवसाद) और भौतिक क्षति (आर्थिक संकट) का अनुभव होता है ।   

यह समझना आवश्यक है कि ईर्ष्या केवल एक भावना नहीं है, बल्कि एक ऊर्जात्मक विकृति है। एक सकारात्मक दृष्टिकोण आत्मविश्वास और प्रेरणा से भरा होता है, जबकि नकारात्मक दृष्टिकोण तनावपूर्ण, निराशाजनक और विरोधाभासी माहौल बनाता है । बुरी नज़र, इसी आंतरिक नकारात्मकता का बाहरी रूप है, जो जीवन की सहज गति में अड़चनें उत्पन्न करती है।   

1.2. त्रिगुण सिद्धांत (सत्व, रजस, तमस) और निवारण का आधार

हिंदू दर्शन में, विशेष रूप से सांख्य और भगवद् गीता में, समस्त ब्रह्मांड और मानवीय प्रवृत्तियों को सत्व, रजस और तमस—इन तीन गुणों का परिणाम माना गया है। दृष्टि दोष का गहरा संबंध रजोगुण और तमोगुण की अधिकता से है ।   

  • रजोगुण की भूमिका: रजोगुण (पैशन) कार्य करने की क्षमता तो प्रदान करता है, लेकिन इसकी अधिकता होने पर यह क्रोध, तीव्र आसक्ति और पाप करने की प्रवृत्ति (ईर्ष्या का मूल) को जन्म देती है ।   
  • सत्वगुण की अनिवार्यता: शास्त्रों के अनुसार, तमोगुण (अज्ञान) का अंत करना चाहिए, रजोगुण को कम करना चाहिए (क्योंकि भौतिक कर्म के लिए इसकी आवश्यकता होती है), और सबसे महत्वपूर्ण, सत्वगुण (ज्ञान, पवित्रता, सद्भाव) को बढ़ाना चाहिए । भक्ति विनोद ठाकुर जैसे आचार्यों ने भी सत्वगुण को बढ़ाने ( Enrich Goodness) पर जोर दिया है ।   

खंड II: वैदिक एवं गृह्यसूत्रों में रक्षात्मक सिद्धांत

बुरी नज़र और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा के उपाय प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ, वेदों, विशेष रूप से अथर्ववेद में निहित हैं। अथर्ववेद को ‘ज्ञान, कर्म और उपासना’ तीनों का वर्णन करने वाला वेद माना जाता है, जिसमें रोग निवारण और सुरक्षा के मंत्रों का संग्रह है ।   

2.1. अथर्ववेद में मणि-बंधन और वीरुध प्रयोग

शास्त्र संदर्भ: अथर्ववेद अथर्ववेद में धागों, तावीज़ों, मंत्रों और जड़ी-बूटियों (वीरुध) के संयोजन का वर्णन मिलता है ।   

  • मणिबन्धन-प्रयोग: अथर्ववेद में ‘मणिबन्धन-प्रयोग’ का विस्तार से उल्लेख है । ‘मणि’ का अर्थ यहाँ केवल रत्न नहीं, बल्कि एक सिद्ध तावीज़ या कवच है, जिसे शरीर पर बांधकर नकारात्मक ऊर्जाओं को निष्क्रिय किया जाता है।   
  • पर्णमणि का उदाहरण: अथर्ववेद में ‘पर्णमणि’ (पलाश या सोमलता के पत्तों से बनी मणि) का वर्णन है, जिसे देवताओं का ओज और औषधियों का सार माना गया है, जो दीर्घायु और बल प्रदान करती है । यह सिद्ध करता है कि प्रकृति के तत्वों को मंत्रों से अभिमंत्रित करके रक्षा कवच के रूप में धारण करने का सिद्धांत वैदिक काल से ही प्रचलित है।   

काला धागा और अथर्ववेद का सिद्धांत: जनमानस में प्रचलित काले धागे (Kala Dhaga) का उपयोग इसी अथर्ववैक मणिबंधन सिद्धांत का तांत्रिक विस्तार माना जा सकता है। तांत्रिक परंपरा में, काले धागे को विशेष मंत्रों से सिद्ध किया जाता है, क्योंकि काला रंग प्रकाश और ऊर्जा को अवशोषित करने की क्षमता रखता है। यह धागा शनि, भैरव या काली से जुड़ी शक्ति से अभिमंत्रित होने के कारण नकारात्मक शक्तियों को खींचकर सुरक्षा प्रदान करता है ।   

2.2. गृह्यसूत्रों में संस्कारों द्वारा आत्म-रक्षा

शास्त्र संदर्भ: गोभिल गृह्यसूत्र (अथर्ववेद परिशिष्ट) गृह्यसूत्र, जैसे कि गोभिल गृह्यसूत्र , मनुष्य के आचरण और संस्कारों को नियंत्रित करते हैं।   

  • उच्च आचरण ही कवच: गृह्यसूत्रों का उद्देश्य मनुष्य जाति को नियमानुसार जीवन जीने और असत् कर्मों से बचने के लिए प्रेरित करना है । यह उच्च आचरण और संस्कारों का पालन करना ही एक प्रकार का आंतरिक कवच है, जो व्यक्ति को अवनति और नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचाता है।   
  • शुद्धि हेतु मंत्र: कर्मकांडों में शांति मंत्रों का पाठ करते हुए जल का छिड़काव करने का विधान है, जिससे गृह और शरीर की शुद्धि होती है तथा रक्षांसि (राक्षसों) और भूत-प्रेत से बचाव होता है । इस प्रकार, दैनिक शुद्धता और संस्कार दृष्टि दोष से उत्पन्न समस्याओं के निवारण में सहायक सिद्ध होते हैं।   

खंड III: पौराणिक कवच एवं दिव्य मंत्रों द्वारा निवारण

दृष्टि दोष निवारण के लिए हिंदू शास्त्रों में कई शक्तिशाली कवच (सुरक्षात्मक स्तोत्र) वर्णित हैं, जो सीधे नकारात्मक शक्तियों पर प्रहार करते हैं।

3.1. श्री पंचमुखी हनुमत कवच: दृष्टि दोष विनाशक मंत्र

शास्त्र संदर्भ: हनुमत रहस्य सुदर्शन संहिता दृष्टि दोष के निवारण के लिए यह कवच सबसे शक्तिशाली और प्रामाणिक उपाय है। इसका शास्त्रीय संदर्भ पंडित शिवदत्त मिश्र शास्त्री विरचित हनुमत रहस्य सुदर्शन संहिता में मिलता है ।   

  • विशिष्ट उद्देश्य: इस कवच का पाठ विशेष रूप से शत्रु नाश, भय मुक्ति, ग्रह दोष निवारण और नजर बाधा को दूर करने के लिए किया जाता है ।   
  • प्रत्यक्ष उल्लेख: इस कवच में एक विशिष्ट मंत्रांश का प्रयोग किया गया है जो सीधे दृष्टि दोष के विनाश का आह्वान करता है: “…सर्व शत्रु संहारण रुद्र रूपाय महाबलाय संकट त्राण कारणम सर्व दोष निवारय. नमो हनुमते नमः… दृष्टि दोष विनाशकाय. हु फट स्वाहा” । यह स्पष्ट उल्लेख इसे दृष्टि दोष निवारण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बना देता है।   
  • पंचमुखी स्वरूप की शक्ति: हनुमान जी का यह स्वरूप पांच दिशाओं से आने वाले संकटों—भूत-प्रेत, विष बाधा, शत्रु, ग्रह दोष और वशीकरण—से रक्षा करता है । इस कवच का पाठ मंगलवार या शनिवार को करना श्रेष्ठ माना गया है ।   

3.2. श्री दुर्गा कवच द्वारा सर्वांग रक्षा

शास्त्र संदर्भ: मार्कण्डेय पुराण (श्री दुर्गा सप्तशती) दुर्गा कवच, जिसे देवी कवच भी कहते हैं, मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत श्री दुर्गा सप्तशती का भाग है। यह संपूर्ण आरोग्य का वरदान देता है और शरीर के समस्त अंगों की रक्षा करता है।   

  • नेत्रों की सुरक्षा: यह कवच पाठ प्रत्येक अंग की सुरक्षा का संकल्प लेता है। नेत्र संबंधी दोषों से रक्षा के लिए, कवच में चक्षुषोर्मध्ये (नेत्रों के मध्य भाग) की रक्षा शङ्खिनी देवी द्वारा और भौहों की रक्षा यशस्विनी देवी द्वारा करने का विधान है ।   
  • नियमित पाठ का महत्व: नियमित रूप से दुर्गा कवच का पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और साधक बुरी शक्तियों (महामारी, आपदा) से सुरक्षित रहता है। कवच का पाठ करते समय पवित्रता, श्रद्धा और समर्पण अत्यंत आवश्यक है ।   

3.3. बाल-ग्रह एवं सर्व ग्रह भय निवारण मंत्र

बच्चों को लगी बुरी नज़र या भय निवारण हेतु पुराणों में विशिष्ट मंत्र दिए गए हैं।

  • विष्णु नाम का महत्व: पुराणों में भगवान विष्णु (गोविंद/माधव) का आह्वान करते हुए एक मंत्र वर्णित है, जो डाकिनियों, भूतों, पिशाचों, यक्षों, राक्षसों और सभी बाल ग्रहों (जैसे कोटरा, रेवती, पूतना) के भय का नाश करता है। इन सभी भयकारी शक्तियों से रक्षा के लिए विष्णु नाम ग्रहण करने को कहा गया है ।   
    • मंत्र संदर्भ:मनो योगेश्वर कृष्ण गर्भस्तुते बुद्धिम आत्मानं भगवान पर क्रीडम पातु गोविंद सयानं पातु माधवंत वैकुंठ आसीन श्री पति भुंजानं यज्ञपातु सर्व ग्रह भयंकर…” ।   
उपाय (Remedy) वर्णन का स्वरूप स्रोत ग्रंथ (Scriptural Source) मुख्य निवारण
श्री पंचमुखी हनुमत कवच प्रत्यक्ष दृष्टि दोष विनाशक मंत्र हनुमत रहस्य सुदर्शन संहिता दृष्टि दोष, शत्रु बाधा, भय मुक्ति, ग्रह दोष    

श्री दुर्गा कवच पाठ सर्वांग शारीरिक एवं मानसिक रक्षा मार्कण्डेय पुराण (दुर्गा सप्तशती) महामारी, आपदा, अंगों की रक्षा (नेत्र सहित)    

बाल ग्रह रक्षा मंत्र विशिष्ट बाल ग्रहों एवं पिशाचों से मुक्ति पुराणों में वर्णित (स्कन्द/गरुड़ आदि) डाकिनी, भूत, प्रेत, यक्ष, बाल ग्रहादि से भय मुक्ति    


 

खंड IV: तांत्रिक एवं शक्ति परंपरा में दृष्टि दोष शमन

तांत्रिक और शक्ति परंपराएं नकारात्मक ऊर्जाओं को अवशोषित और विसर्जित करने पर केंद्रित हैं, जिसके लिए विशिष्ट अनुष्ठानों का प्रयोग किया जाता है।

4.1. माता काली और श्री भैरव उपासना

शास्त्र संदर्भ: तंत्र शास्त्र एवं पुराण (भैरव तंत्र/काली तंत्र)

  • मां काली की साधना: माता काली को शत्रु बाधा और तंत्र बाधा से मुक्ति देने वाली देवी माना जाता है । तांत्रिक पद्धतियों में    

    ‘क्रीं हं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा’ जैसे बीज मंत्रों का जप करके (27 या 11 माला) तांबे के सिक्के को लाल धागे में अभिमंत्रित कर गले में धारण किया जाता है, जिससे हर प्रकार के तंत्र-मंत्र और दुर्घटना से सुरक्षा मिलती है ।   

  • भैरव उपासना: भगवान काल भैरव की उपासना भय और संकट से मुक्ति दिलाती है। इस साधना में सरसों और काले तिल को सिन्दूर और तेल में मिलाकर विशिष्ट मंत्रों (ऊँ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व बाधा नाशय नाशय मारय…) के साथ अर्पित किया जाता है । पूजा के बाद सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते हैं और जल का छिड़काव किया जाता है ।   

तंत्र का ऊर्जा विसर्जन सिद्धांत: तांत्रिक क्रियाओं में काली (काले तिल, कोयला) या भैरव से संबंधित वस्तुओं का प्रयोग इस सिद्धांत पर आधारित है कि ये वस्तुएं नकारात्मक ऊर्जा (बुरी नज़र) को तेजी से अपनी ओर खींचती हैं और अवशोषित करती हैं। बाद में इन सामग्रियों (जैसे माला, तिल, दीपक) का जल प्रवाह या भूमि विसर्जन कर दिया जाता है ताकि वह ऊर्जा समाप्त हो जाए ।   

4.2. यंत्र, कवच और रक्षा सूत्र का प्रयोग

  • नज़र दोष यंत्र: नज़र दोष यंत्र और गोमती चक्र जैसे विशिष्ट सुरक्षा कवच (सिद्ध रुद्राक्ष कवच, ह्रीं यंत्र) को नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए धारण किया जाता है ।   
  • रक्षा सूत्र (काला धागा): काला धागा शनि ग्रह से जुड़ा हुआ माना जाता है, और इसे धारण करने से कुंडली में शनि मजबूत होता है। यह काली ताकतों और बुरी नज़र से रक्षा करता है ।   
    • विधि: तांत्रिक मत के अनुसार, काला धागा मंगलवार या शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में सिद्ध कराकर बांधना चाहिए। पुरुषों को दाहिने हाथ में, जबकि महिलाओं को बाएं हाथ या टखनों में इसे बांधने की सलाह दी जाती है । काला रंग, मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित होकर, एक अदृश्य सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है ।   

खंड V: द्रव्य, रत्न एवं आचार आधारित लोक-शास्त्रीय उपाय

ये उपाय जनमानस में प्रचलित हैं, जिनका समर्थन ज्योतिषीय ग्रंथों और धार्मिक परंपराओं के विशिष्ट अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन में मिलता है।

5.1. रत्नशास्त्र द्वारा दृष्टि दोष निवारण

शास्त्र संदर्भ: रत्नशास्त्र एवं ज्योतिष ग्रंथ रत्नशास्त्र (Gemology) यह मानता है कि रत्न धारण करने से ग्रहों की स्थिति सुधरती है और शारीरिक-मानसिक विकार दूर होते हैं ।   

  • मूंगा (Coral): मंगल ग्रह का रत्न मूंगा, हृदय रोग और मिरगी के साथ-साथ दृष्टि दोष से भी मुक्ति दिलाता है । इसे बालकों को धारण कराने से उन्हें सूखा रोग और पेट दर्द जैसी व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है। यह रत्न भूत-प्रेत, आंधी-तूफान और छल-माया से भी रक्षा करता है । यह आंतरिक शक्ति (मंगल बल) को मजबूत करता है, जिससे बाहरी नकारात्मकता बेअसर हो जाती है।   
  • पुखराज (Topaz): पुखराज रत्न पेट और नेत्र विकारों को दूर करता है, दैवीय आपदाओं से रक्षा करता है, तथा धारणकर्ता में सात्विक गुणों और सदाचार का संचार करता है ।   

5.2. नमक, राई, मिर्च का अध्यात्मशास्त्रीय आधार

शास्त्र संदर्भ: कुदृष्टि उतारने की पद्धतियां (भाग १) (सनातन संस्था) नमक, राई (सरसों के बीज) और सूखी लाल मिर्च से बुरी नज़र उतारने की पद्धति भारत में अत्यंत लोकप्रिय है । यद्यपि इसका उल्लेख सीधे वेदों या प्रमुख पुराणों में नहीं है, इसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार आधुनिक धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत है।

  • स्रोत ग्रंथ: सनातन संस्था का सात्विक ग्रंथ ‘कुदृष्टि (नजर) उतारने की पद्धतियां (भाग १)’ इस विधि के अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन और अनुभूतियों को प्रमाणित करता है ।   
  • कार्यविधि: नमक, राई और लाल मिर्च को एकत्रित कर प्रभावित व्यक्ति के ऊपर से विषम संख्या में घुमाया जाता है। माना जाता है कि मिर्च का तीखापन अनिष्ट शक्तियों के स्पंदन को नष्ट करने में व्यय होता है। यदि मिर्च को भूनने पर सूखी खांसी या तीखी दुर्गंध न आए, तो इसे कुदृष्टि का लक्षण माना जाता है, क्योंकि मिर्च की तीक्ष्णता नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने में लग जाती है ।   

5.3. वास्तु एवं गृह रक्षा के उपाय

  • नींबू और हरी मिर्च: शनिवार और मंगलवार को नींबू और हरी मिर्च को एक धागे में पिरोकर कार्यस्थल या घर के मुख्य द्वार पर लटकाया जाता है । ये तीव्र और तीक्ष्ण वस्तुएं नकारात्मक ऊर्जा के लिए अवरोधक का कार्य करती हैं   
  • अशोक/आम्र पल्लव: शुक्रवार को अशोक के पत्ते घर के मुख्य द्वार पर बांधने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे घर पर लगी नज़र उतर जाती है । ये पत्ते पवित्रता और शुभता के प्रतीक माने जाते हैं।   
  • घंटी और अगरबत्ती: अगरबत्ती की सुगंध नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करती है और वातावरण को शांत करती है। साथ ही, घंटी बजाना और गायत्री मंत्र या हनुमान चालीसा जैसे मंत्रों का जाप करना भी घर की सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करता है.   
उपाय (Remedy/Dravya) विधि का प्रयोजन आधारभूत मान्यता/शास्त्र संदर्भ प्रमाण की प्रकृति
नमक, राई, लाल मिर्च नकारात्मक ऊर्जा का स्थानांतरण/विसर्जन सनातन संस्था के अध्यात्मशास्त्रीय ग्रंथ अनुभूत/लिखित साक्ष्य  

मूंगा रत्न धारण दृष्टि दोष, शारीरिक बल वृद्धि रत्नशास्त्र/ज्योतिष शास्त्र ज्योतिषीय ग्रंथ  

काला धागा/तावीज़ ऊर्जा अवशोषण, सुरक्षा कवच तांत्रिक परंपरा/अथर्ववेद का मणिबंध सिद्धांत लोकाचार एवं तंत्र-परंपरा  

 

खंड VI: दृष्टि दोष से शाश्वत एवं आध्यात्मिक निवारण

सभी बाह्य उपाय (टोटके, रत्न, कवच) तब तक ही प्रभावी होते हैं, जब तक व्यक्ति आंतरिक रूप से शुद्ध और मजबूत न हो। हिंदू धर्मशास्त्र में, नकारात्मक प्रभावों से शाश्वत मुक्ति के लिए आत्मिक बल को सर्वोच्च उपाय माना गया है।

6.1. सत्वगुण की अभिवृद्धि और आत्म-शुद्धि

नकारात्मकता का मूल कारण अभिमान (Ahamkara) और अज्ञान (Mudhata) है, जिसके कारण व्यक्ति प्रभु की अवहेलना करता है और ईर्ष्यालु बनता है ।   

  • भक्ति और सेवा: निरंतर सत्संग, भगवान का चिंतन और निस्वार्थ संत सेवा करना अभिमान को नष्ट करता है । शास्त्रों में यह बताया गया है कि यदि कोई भक्त सेवा करता है और सेव्य (जिसकी सेवा की जा रही है) उससे प्रतिकूल व्यवहार भी करता है, लेकिन भक्त के मन में कोई फर्क नहीं पड़ता, तो वह सेवा निश्चित रूप से भगवत प्राप्ति कराती है । आंतरिक शुद्धि का यह स्तर नकारात्मक ऊर्जा के प्रभावों को स्थायी रूप से समाप्त कर देता है।   
  • बुनियादी आध्यात्मिक शिक्षा: बच्चों को बचपन से ही गायत्री मंत्र (शुद्ध बुद्धि हेतु) और हनुमान चालीसा (बल और संकटमोचन हेतु) का पाठ सिखाना अत्यंत आवश्यक है। ये दोनों मंत्र आत्मबल को इतना बढ़ाते हैं कि व्यक्ति जीवन में सफल होता है और उसकी सफलता की रोशनी में संसार कृतार्थ होता है ।   

6.2. शरणागति का सिद्धांत: परम बल का आश्रय

दृष्टि दोष और अन्य कष्ट कभी-कभी व्यक्ति के अपने प्रारब्ध कर्मों के कारण भी उत्पन्न होते हैं । ऐसे में, केवल बाह्य टोटके क्षणिक राहत देते हैं।   

  • परम सत्ता पर विश्वास: शास्त्रों में वर्णित है कि अंतिम और अचूक उपाय परम सत्ता की शरणागति (Total Surrender) है। यह शरणागति राम, कृष्ण, शिव, देवी या गुरु—किसी भी इष्ट के प्रति हो सकती है। पूर्ण विश्वास रखना कि परमात्मा क्षण-क्षण प्रतिपल साधक के साथ है, मन के सभी द्वंद्वों और प्रारब्ध के कर्मों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को पार करा देता है ।   

शरणागति व्यक्ति को आंतरिक धैर्य और शक्ति देती है, जिससे नकारात्मकता का मूल स्रोत (अज्ञान और अभिमान) ही समाप्त हो जाता है, और वह किसी भी बुरी नज़र के प्रभाव से मुक्त हो जाता है।

खंड VII:  शास्त्रीय अनुपालन का निर्देश

बुरी नज़र (दृष्टि दोष) से बचाव के लिए हिंदू धर्म शास्त्रों में एक सुव्यवस्थित, बहुआयामी सुरक्षा चक्र वर्णित है, जिसमें आंतरिक आध्यात्मिक उन्नति से लेकर बाह्य मंत्रों और अनुष्ठानों तक का समावेश है।

  1. सर्वोच्च शास्त्रोक्त निवारण: उपलब्ध शास्त्रीय स्रोतों में, हनुमत रहस्य सुदर्शन संहिता में वर्णित श्री पंचमुखी हनुमत कवच को सबसे प्रत्यक्ष और शक्तिशाली उपाय माना जाता है, क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से “दृष्टि दोष विनाशकाय” का उल्लेख है ।   
  2. आधारभूत सुरक्षा: दैनिक अनुष्ठान, जैसे दुर्गा कवच पाठ (मार्कण्डेय पुराण) और गायत्री मंत्र जाप, व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक अंगों को नकारात्मकता से बचाकर एक मजबूत सुरक्षात्मक घेरा बनाते हैं ।   
  3. द्रव्य और ऊर्जा विसर्जन: तांत्रिक एवं लोक-शास्त्रीय उपाय, जैसे नमक, राई, मिर्च का प्रयोग (सनातन संस्था द्वारा वर्णित अध्यात्मशास्त्रीय आधार) और काले धागे (अथर्ववेद के मणिबंधन सिद्धांत का विस्तार) का उपयोग नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित और विसर्जित करने के लिए किया जाता है ।   
  4. पवित्रता और समर्पण: सभी शास्त्रीय उपाय, चाहे वेदों से प्रेरित हों या पुराणों से, तभी प्रभावी होते हैं जब साधक पूर्ण श्रद्धा, पवित्रता और समर्पण के साथ उनका पालन करता है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना और तन्मयता से श्लोकों का उच्चारण करना अनिवार्य है, अन्यथा परिणाम प्राप्त नहीं होते ।   

निष्कर्ष रूप में, दृष्टि दोष से बचने का सर्वोत्तम मार्ग आंतरिक शुद्धि (सत्वगुण की वृद्धि और शरणागति) है, जिसे पंचमुखी हनुमत कवच और दुर्गा कवच जैसे शक्तिशाली मंत्रों के बाह्य समर्थन से मजबूत किया जाता है।

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‘बुरी नज़र’ (Evil Eye) से बचने के शक्तिशाली मंत्र और उपाय

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

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