मुंबई, 1 नवंबर (धार्मिक डेस्क)। हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक Dev Uthani Ekadashi — जिसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है — आज बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस वर्ष यह व्रत एवं पूजा-पद्धति विशेष महत्व ले लेकर आई है, क्योंकि यह व्रत चार-महीने की पवित्र अवधि Chaturmas के समाप्ति के बाद आता है और सभी शुभ कार्यों का आरंभ माना जाता है।
आधिकारिक समय के अनुसार, एकादशी तिथि आज सुबह 09:11 बजे से आरंभ हुई है और कल सुबह 07:31 बजे तक चलेगी। पारणा (व्रत खोलने) का मुहूर्त आज दोपहर 01:11 बजे से 03:23 बजे तक निर्धारित किया गया है।
ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो, इस दिन भगवान Vishnu को चार-महीने की निद्रा से जागते हुए माना जाता है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि इसी दिन भगवान विष्णु जागरण करते हैं, और उसी समय से शुभ कार्यों की पुनरारंभि होती है।
पूजन-विधि में ब्रह्ममुहूर्त से स्नान करने के बाद घर एवं पूजा कक्ष को स्वच्छ करना अनिवार्य है। तत्पश्चात् लकड़ी की पट्टी पर विष्णु-मूर्ति तथा श्री यन्त्र स्थापित करके पूजा आरंभ की जाती है। पूजा के दौरान देसी घी का दीपक जलाना, तुलसी पत्र से पूजा करना, पंचामृत, फल-मिष्ठान अर्पित करना, तथा स्त्रियाँ खड़िया और गेऊरू चाक से भागवत एकादशी की रेखा भी बनाती हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने वाले लोग पूर्व जन्म का पाप नष्ट कर सकते हैं, मोक्ष-मार्ग को सरल कर सकते हैं तथा जीवन में समृद्धि एवं शांति प्राप्त कर सकते हैं।
इस व्रत-दिन का सामाजिक-संस्कृतिक महत्व भी बहुत गहरा है। चार-महीने के चातुर्मास के दौरान श्रद्धालुओं को जन-साधारण कार्यों एवं गृह-विवाह एवं अन्य शुभ कर्मों से विरत रहने की परंपरा होती है। इस अवधि के अंत में यह एकादशी शुभ कर्मों की पुनरारंभि का प्रतीक बन जाती है।
इस वर्ष की श्रद्धालुओं की तैयारियाँ सामान्य से बढ़कर रही हैं। कई मंदिरों और पूजा-स्थलों पर विशेष सजावट व धार्मिक आयोजन किये जा रहे हैं। विभिन्न सामाजिक-धार्मिक समूहों द्वारा प्रभात आरती, दीप-यात्रा और भजन-कीर्तन का आयोजन भी किया गया है।
व्रत के दौरान स्नान, उपवास, राष्ट्र-प्रार्थना, दान-पुण्य तथा वचन शुद्धि पर विशेष बल दिया जाता है। देखा गया है कि आजकल युवा और नवयुवतियों द्वारा भी इस व्रत को बड़ी निष्ठा से निभाया जा रहा है, जो पारंपरिक धार्मिक कार्यों में बढ़ती भागीदारी का संकेत है।
इस प्रकार, Dev Uthani Ekadashi न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से भी एक नए आरंभ का प्रतीक बनती जा रही है। इस दिन की पुण्यभूमि में कृत कर्म एवं सच्चा निष्ठावान श्रद्धा-भाव भविष्य के लिए सकारात्मक दिशा तय करते हैं।
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