औरंगाबाद, 26 अक्टूबर (एजेंसियां)। बिहार के औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगर देव में स्थित देव सूर्य मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और आस्था का एक अनोखा प्रतीक भी है। माना जाता है कि इस त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर का निर्माण स्वयं देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था। यह मंदिर अपनी भव्यता, कलात्मक सौंदर्य और धार्मिक महत्ता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है।
#पौराणिक_इतिहास_और_विश्वकर्मा_का_योगदान,
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान विश्वकर्मा ने देव में इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण किया था। इसकी दिव्यता और स्थापत्य शैली ऐसी है कि इसे देखने वाला हर व्यक्ति आश्चर्यचकित रह जाता है। देव सूर्य मंदिर अपने त्रिमूर्ति स्वरूप वाले भगवान भास्कर के लिए प्रसिद्ध है, जिनकी पूजा पालनकर्ता, संहारकर्ता और सृष्टिकर्ता के रूप में की जाती है।
#अद्वितीय_वास्तुकला_और_कला,
यह मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला की दृष्टि से अनूठा है। लगभग 100 फीट ऊंचा यह मंदिर बिना सीमेंट या चूना-गारा के जोड़ा गया है। आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार और त्रिभुजाकार पत्थरों को बारीकी से काटकर जोड़ने की कला भगवान विश्वकर्मा की दिव्य शिल्पकला का जीवंत उदाहरण है। मंदिर के पत्थरों की जटिल जड़ाई, बारीक नक्काशी और सुगठित ढांचा इसे स्थापत्य सौंदर्य का अनुपम नमूना बनाते हैं।
#पश्चिमाभिमुख_मंदिर_की_विशेषता,
पूरे भारत में यह एकमात्र सूर्य मंदिर है जिसका मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है। सामान्यतः सूर्य मंदिरों का द्वार पूर्व की दिशा में होता है, लेकिन देव मंदिर की यह अनोखी दिशा इसे विशिष्ट बनाती है। मंदिर में भगवान सूर्य की तीन अद्वितीय प्रस्तर मूर्तियां हैं— उदयाचल (प्रातः सूर्य), मध्याचल (मध्य सूर्य) और अस्ताचल (अस्त सूर्य)। ये तीनों रूप सूर्यदेव के त्रिमूर्ति स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं।
#शिलालेख_में_लिखित_इतिहास,
मंदिर के बाहरी भाग में ब्रह्म लिपि में अंकित एक प्राचीन शिलालेख मौजूद है, जिसका संस्कृत में अनुवादित श्लोक यह बताता है कि त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ कराया था। इस शिलालेख के अनुसार, वर्ष 2016 में मंदिर के निर्माण काल के एक लाख पचास हजार सोलह वर्ष पूरे हो चुके थे। यह तथ्य इस मंदिर की प्राचीनता और पौराणिक गौरव को और अधिक प्रामाणिकता प्रदान करता है।
#छठ_महोत्सव_का_केंद्र,
देव सूर्य मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध छठ महापर्व का प्रमुख केंद्र है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु और छठव्रती यहां पहुंचकर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं। इस दौरान मंदिर परिसर में चार दिवसीय भव्य मेला लगता है, जो भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक उल्लास का अद्वितीय संगम बन जाता है।
#आस्था_का_अटूट_केंद्र,
देव सूर्य मंदिर में पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास जनमानस में गहराई से स्थापित है। यही कारण है कि सदियों से यह मंदिर न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश और विदेशों के श्रद्धालुओं का तीर्थ स्थल बना हुआ है।
देव सूर्य मंदिर अपनी दिव्य भव्यता, अद्भुत स्थापत्य और धार्मिक महत्ता के कारण न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, शिल्पकला और आस्था की विरासत का जीवंत प्रतीक भी है।










