कांग्रेस की सियासत में लगा वह दंश: विरोध में परिपक्वता का आचरण करना भी उतना ही अपरिहार्य

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नयी दिल्ली । किसानों की मांग जायज है या नहीं, यह तो किसान ही जाने, इस विषय में हम चर्चा नहीं कर रहे हैं। बल्कि आज हम कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की उस सियासत पर चर्चा जरूर करेंगे। जिसकी शुरुआत उनके पुत्र श्री राहुल गांधी ने थी। कानून फाड़ने की सियासत कांग्रेस के लिए नई नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मनमोहन सरकार के दौरान इस परिपाटी की शुरुआत की थी, इसी के साथ ही राहुल गांधी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए थे। वह इस कारनामे के साथ चर्चा में तो जरूर आ गए थे लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव उन्हें अपने राजनैतिक जीवन में देखने को मिला था। सियासत में लगा वह दंश आज भी उनके दामन पर हरा है। आज तक वे इस दंश से उबर नहीं पाए। नतीजा यह है कि राहुल गांधी पर देश की जनता पिछले दो चुनावों में अपना भरोसा नहीं दे पाई, इसके पीछे उनकी कहीं ना कहीं राजनीति की उनकी अपरिपक्व सोच ही है, अब जब कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कानून को फाड़ने की बात कह दी है तो कहीं ना कहीं उनकी सोच पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है। गौरतलब है कि सियासत में विरोध आवश्यक है। विरोध किया भी जाना चाहिए, लेकिन विरोध में परिपक्वता का आचरण करना भी उतना ही अपरिहार्य है। जो कि प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं में नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस ने अगर अपनी सियासत की कार्यशैली में अमूलचूक बदलाव नहीं किया तो इसमें शंका नहीं है इसका अत्यधिक घोर नकारात्मक परिणाम कांग्रेस पार्टी को भविष्य में भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा है कि केंद्र की सत्ता में आने पर हाल में पारित किसान विरोधी तीनों कानूनों को फाड़ कर रद्दी की टोकरी में डाल देंगे।

कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने शुक्रवार को यहां पत्रकारों से कहा कि श्रीमती गांधी और श्री राहुल गांधी ने वादा किया है कि कांग्रेस जब केंद्र की सत्ता सम्भालेगी तो वह सबसे पहले किसान विरोधी इन तीनो कानूनों को खत्म करेगी।

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उन्होंने कहा कि कांग्रेस शुरू से इन तीनों कानूनों का विरोध करती रही है। इन कानूनों का विरोध करने के कारण संसद में उसके सांसदों को निलंबित तक होना पड़ा है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां किसानों को इन कानूनों के कारण नुकसान नहीं हो इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए अलग कानून बनाया जा रहा है।

प्रवक्ता ने कहा कि किसान किसी दल विशेष का नहीं बल्कि सभी का होता है और वह अपनी मेहनत से सभी के पेट की भूख मिटाने का काम करता है इसलिए किसान की बात सुनी जानी चाहिए।

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