आसनों का राजा है सिद्धासन

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सिद्धासन को सभी आसनों का राजा कहा जाता है। साधकों के लिए आसन परमोपयोगी सिद्ध हुआ है। यह ध्यान रहे कि यह आसन तीन घंटे तक बैठने से सिद्ध होता है।

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इसे नियमित रूप से करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है, इसलिए इस आसन को नियमित रूप से निश्चित समय पर किया जाए तो उत्तम परिणाम सामने आते हैं। आसन की अवधि में स्वयं पर निम्न बताई विधि के अनुसार नियंत्रण करने का प्रयास करना चाहिए।

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सिद्धासन करने की विधि-

पहले शांतिपूर्वक अपने आसन पर बैठ जाए। बाद में अपने बायें पैर की एड़ी-गुदा और अंडकोष के बीच लगायें और दाहिने पैर की एड़ी मूत्रेन्द्रिय के ऊपरी भाग पर रख्ों और दोनों पैरों के पंजे, जांघ और पिंडलियों के बीच में स्थिर रख्ों। फिर बाद में अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बांधकर मुद्रा में सामने एड़ी के ऊपर रख्ों अथवा हाथों को घुटनों पर रख सकते हैं। बाद में मेरूदंड यानी रीढ़ को सीधा करके दृष्टि को भौंहों के बीच स्थिर करके शांतिपूर्वक बैठ जाएं।

सिद्धासन के लाभ-

इससे शीघ्र मन को शांति का अनुभव होता है। जिन्हें अखंड ब्रह्मचर्य की रक्षा करनी हो, उन्हें नित्य ही इस आसन को करना चाहिये। मन पर इस आसन के करने से नियंत्रण प्रभावी होता जाता है। जैसे-जैसे साधना आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे साधक का अपने ऊपर नियंत्रण बढ़ता जाता है।

प्रस्तुति – स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर (सेवानिवृत्त तहसीलदार/ विशेष मजिस्ट्रेट, हरदोई)

नोट: स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर के पिता स्वर्गीय पंडित भीमसेन नागर हाफिजाबाद जिला गुजरावाला पाकिस्तान में प्रख्यात वैद्य थे।

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