माणिक्य कब व कैसे करें धारण, जाने- गुण, दोष व प्रभाव 

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से माणक भी कहा जाता है। यह बेहद मूल्यवान रत्नों में शामिल है। संस्कृत में इसके अनेका-नेक नाम हैं। लोहित, पद्यराग, शोणरत्न, रवि रत्न, सौगन्धिक, कुरुविंद, शोणोपल व वसु आदि नामों से भी इसे जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे रूबी के नाम से जाना जाता है। उर्दू फारसी में याकूत के नाम से जाना जाता है।
सामान्य तौर पर देखा जाए तो माणिक्य तीन प्रकार के पत्थरों से निष्पन्न होता है। सौगन्धिक पत्थर से उत्पन्न माणिक्य भौंरे यानी की भ्रमर के रंग का होता है। इसकी चमक बेहत तेज होती है। पर कुरुबिंद पत्थर से निकलने वाला माणिक्य शुक्ल-कृष्ण मिश्रित, मंद कांतियुक्त और अन्य धातुओं से विद्ध होता है। स्फटिक पत्थर से निकला माणिक्य अनेक रंगों, अद्भुत कांतिवाला और विशुद्ध होता है। यह लाल, रक्त कमल तुल्य, सिन्दूरी, हल्के नीले रंगों में पाया जाता है। असली व निर्दोष माणिक्य हल्की नीली आभा से युक्त होता है। जिससे लाल रंग की किरण्ों निकलती प्रतीत होती है। इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे सूर्य रत्न माना जाता है।

माणिक्य की पृष्ठभूमि

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माणिक्य अत्यन्त प्राचीन रत्नों में शामिल है। दुनिया का सबसे श्रेष्ठ और शुद्ध माणिक्य बर्मा यानी म्यांमार में मिलता है। बर्मा के इतर यह रत्न काबुल, श्री लंका और भारत में गंगा नदी के किनारे पर पाया जाता है। साथ ही विन्ध्याचल और हिमालय के पहाड़ी क्ष्ोत्रों में भी मिलता है। कश्मीर में भी इसे यदा-कदा प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण भारत के कीगियन में इसकी खान है। यह अफ्रीका के टैगानिका स्थान में भी मिलता है। लेकिन चुरचुरा होने के कारण इसे उत्तम नहीं माना जाता है। बर्मा की खानों में सदियों से यह मौजूद रहा है। इनमें से कुछ खाने उत्तरी बर्मा के मोगोल जिले में स्थित हैं। यह माणिक्य भंडार का छोटा का इलाका है। इस पर एक ब्रिटिश कम्पनी रूपी माइंस लिमिटेड का अधिकार है। इससे पहले यहां के राजवंशों का इन खानों पर अधिकार था। सन् 188० के दशक में जब बर्मा ब्रिटिश शासन के अधीन हुआ तो यहां के राजा का अधिकार इन खानों पर से समाप्त हो गया। बेहद बेशकीमती माणिक्य बर्मा के राजवंशों के पास हुआ करते थ्ो, लेकिन उनमें अनेक रत्न उनके हाथों से निकलकर ब्रिटेन, अमेरिका व अन्य देशों में पहुंच गए। सन् 1875 में बर्मा के राजा ने कुछ व्यक्तिगत कारणों से दो अच्छे किस्म के माणिक्य बेच दिए थ्ो। इनमें से एक 47 कैरेट तो दूसरा माणिक्य 37 कैरेट का था।

आइये जानते है कि कृतिम माणिक्य क्या है

कृतिम माणिक्य का जन्म करीब 91 वर्ष पूर्व हुआ था। इसका मूल्य प्राकतिक व शुद्ध माणिक्य की तुलना में बहुत ही कम है।

माणिक्य के गुण क्या है

वैसे तो माणिक्य गुणों की खान है, पर पांच मुख्य गुण होते है, जिनका उल्लेख हम करने जा रहे है। यह स्निग्ध, कांतियुक्त, अच्छे पानी वाला, धारदार और चमकीला होता है। इसे हाथ में लेने से हल्की गर्मी और कुछ भारीपन महसूस होता है।

शुद्धता की जांच कैसे करें

प्राकृतिक, असली और विशुद्ध माणिक्य की जांच चार तरह से कर सकते हैं।
1- यदि माणिक्य को कमल की कली पर रख दिया जाए तो वह तुरंत खिल जाता है। अगर ऐसा न हो तो समझना चाहिए कि माणिक्य नकली, अशुद्ध और कृतिम है।
2- माणिक्य को गाय के दूध में डालने पर दूध गुलाबी रंग का दिखाई देने लगता है।
3- माणिक्य को किसी कांच के पात्र में रखने से ऐसा लगेगा कि जैसे उस पात्र से रक्तिम किरण्ों फूट रही है, यानी निकल रही है।
4- यदि माणिक्य को चांदी के थाल में रखकर सूर्य के सामने रखा जाए तो वह थाल लाल रंग से भर उठेगा।

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इन चारों तरीकों में से पहला तरीका सबसे श्रेष्ठ है। इसकी कसौटी पर खरा उतरने वाला माणिक्य ही शुद्ध होता हे। इसके अलावा भी कुछ पहलू है, जिससे शुद्ध माणिक्य की पहचान की जाती है। दोष युक्त माणिक्य सिर्फ प्रभावहीन ही नहीं होता है, बल्कि उसे धारण करने वाले को भी प्रतिकूल फल प्राप्त होता है, इसलिए माणिक्य को खरीदने व धारण करनेे में बेहद सावधानियां बरतने की जरूरत है।

ऐसे माणिक्य बिल्कुल भी धारण नहीं करने चाहिए

दोषयुक्त माणिक्य मनुष्य के लिए हानिकारक होते है, इन्हें धारण नहीं करना चाहिए।
1- जो माणिक्य सुन्न होता है, कहने का आशय यह है कि जिसमें चमक नहीं होती है, यदि इसे गलती से धारण कर लिया जाए तो धारक अपने भाइयों से किसी न किसी रूप में पीड़ित हो जाएगा।
2- माणिक्य धूम्र हो यानी उसका रंग धुएं सरीखा हो तो इसे धारण करने वाले पर दैवी प्रकोपा होता है।
3- जो दुरंगा हो यानी जिसमें कोई भी दो रंग हो तो यह पिता के लिए कष्ट का कारण बनता है।
4- जो दूधिया या दूधक हो यानी जिसका रंग दूध के जैसा हो तो यह पशुधन का नाश कर चित्त को अशांत कर देता है।
5- जो जालक हो अर्थात जिसमें आड़ी तिरछी रेखाएं हो तो इसको धारण करने से घर में कलह पैदा होती है।
6- जो चीरित हो यानी जिसमें चीरा लगा हो तो यह भी अशुभ ही होता है। इससे शस्त्र से आघात का कारक बनता है
7- जो एकाधिकी हो यानी जिसमें एक साथ कई दोष हो तो ऐसा माणिक्य अशुभ ही होता है। ऐसा माणिक्य मृत्युकारक भी हो सकता है। अप्रिय घटनाओं का कारक बनता है।
8- जिसमें गढ्डा हो तो इसे धारण करने स बीमारियां होती है।
9- जो माणिक्य मटमैला हो, इसे धारण करने से बीमारियां लगती है, विश्ोषकर पेट के रोग लगते हैं। यह अशुभ होता है।
1०- जो माणिक्य त्रिशूल या त्रिभुज यानी त्रिकोणात्मक हो। ऐसा माणिक्य संतान की उत्पत्ति में बाधा उत्पन्न करता है।
11- जो माणिक्य सफेद या कालिमा युक्त हो। ऐसा माणिक्य कीर्ति, यश, मान-सम्मान और धन की हानि कराने वाला होता है।

आइये जानते है लालड़ी यानी माणिक्य की मणि क्या है

इस रत्न का इस्तेमाल वह लोग कर सकते है तो माणिक्य खरीदने में स्वयं को अक्षम पाते है। वह लालड़ी पहन सकते है।

फारसी में इसे लाल कहते हैं। माणिक्य की तुलना में इसकी कीमत काफी कम होती है। यह दस तरह की होते हैं।
1- सिदूरी रंग का होता है।
2- कनेर के फूल जैसे रंग का होता है।
3- गुलाबी रंग का होता है।
4- जमे हुए खून के समान रंग वाला होता है।
5- मोतिया रंग वाला होता है।
6- सूर्ख रंग वाला होता है।
7- अनार की कली के रंग का होता है।
8- साफ रक्तिम होता है।
9- चैत महीने में फूलने वाले गुलाब की तरह होता है।
1०- गेरुवा रंग का होता है।

लालड़ी को कैसे पहचाने, आइये जानते हैं

शुद्ध लालड़ी को दोपहर की धूप में रूई में रखने पर वह कुछ ही देर में गर्म हो जाता है और उसकी गर्मी से रूई जल उठती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो लालड़ी को नकली समझना चाहिए।

लालड़ी के गुण

लालड़ी के गुण माणिक्य के समान होते हैं, इसलिए कभी-कभी माणिक्य को लालड़ी और लालड़ी को माणिक्य समझ लिया जाता है। अक्सर अनुभवी जौहरी भी इसे पहचानने में गलती कर देते हैं। ब्रिटिश ताज में लाल का एक बड़ा र‘ है, जिसे पूर्व में माणिक्य समझा जाता था, लेकिन वास्तव में कैटकिज यानी स्पाइनेल था। जानकार जौहरी लालड़ी और माणिक्य का भ्ोद बेहद सावधानी से करते हैं। जबकि आम लोग इन दोनों में बहुत ही मुश्किल से भ्ोद कर पाते है।

लालड़ी का प्रभाव क्या होता है

लालड़ी बहुत ही शीघ्र प्रभावित करता है। इसमें संदेह नहीं है। इसको धारण करने से दरिद्रता दूर होती है। तमाम तरह की सम्पत्ति में वृद्धि होती है। धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है। तीर्थ यात्रा का योग बनता है। घर में भूत-प्रेत की छाया और व्याधिक दूर हो जाती है। यदि जन्म कुंडली में सूर्य अकारक हो तो इसको धारण करने से सूर्य सकारक हो जाता है।

जानिए, दुष्परिणाम

यदि लालड़ी शुद्ध न हो तो बहुत नुकसान पहुंचाता है। यह बेहद हानिकारक सिद्ध होता है। इसलिए इसे अत्यन्त सावधानी से धारण करना चाहिए। दोषपूर्ण लालड़ी को कभी नहीं धारण करना चाहिए। हानिकारक लालड़ी की कुछ जानकारी हम आपको बताने जा रहे हैं, ध्यानपूर्वकर पढ़िये।
1- जो धूमिल या अस्पष्ट हो ऐसी लालड़ी प्राणघातक होती है।
2- जिसमें खड़ी लकीर दिखाई दे तो इससे शस्त्र बाधा उत्पन्न होती है।
3- इसमें कई छोटी लकीरें दिखाई दें तो यह स्त्री के लिए हानिकारक होता है।
4- लालड़ी में काले-काले धब्बे दिखाई दें तो यह धन का नाश करता है।
5- लालड़ी में दो रंग होते हैं तो ऐसा लालड़ी विरोधियों की संख्या बढ़ाता है।
6- ऐसी लालड़ी जिसमें जाल हो, ऐसी लालड़ी शरीर के लिए घातक होता है।
7- लालड़ी जिसमें गढ्डा दिखाई देता है, वह पशुधन के लिए हानिकारक होता है।
8- लालड़ी जिस में आर-पार आसानी से न देखा जा सके, यह हृदय रोग को उत्पन्न करने वाला होता है।
9- लालड़ी जिसमें बिंदु या सफेद दाग हो, ऐसी लालड़ी रोग का कारका होता है।
1०- लालड़ी जिसमें काले बिंदु हो, वह शस्त्र बाधा उत्पन्न करता है।
11- लालड़ी शहद जैसे बिंदु वाली हो तो यह मृत्युकारक होती है।
12- लालड़ी जिसमें हल्के लाल रंग के छींटें दिखाई दें, वह संतान बाधा उत्पन्न करता है।

माणिक्य का धारक कौन व्यक्ति होना चाहिए

माणिक्य सूर्य का रत्न है। सर्व विदित है कि सूर्य कालपुरुष की आत्मा कहे जाते हैं। यह पुरुष ग्रह तांबे के समान रंग वाला, देदीप्यमान और पूर्व दिशा के स्वामी है। अगर जन्मकुंडली में सूर्य की स्थिति ठीक न हो तो माणिक्य आवश्य पहचना चाहिए। जन्म कुंडली में सूर्य की निम्न उल्लेखित स्थितियों में भी माणिक्य धारण किया जा सकता है।
1- अगर सूर्य द्बादश भाव में स्थित हो तो वह आखों के लिए हानिकारक सिद्ध होता है, इसलिए आंखों की सुरक्षा के लिए माणिक्य पहनना चाहिए।
2- अगर सूर्य लग्न में हो तो लग्नस्थ सूर्य संतान बाधा, अल्प संतति और स्त्री के लिए कष्टप्रद होता है। ऐसे व्यक्ति को माणिक्य कभी नहीं धारण करना चाहिए।
3- धन स्थान यानी द्बितीय भाव में सूर्य धन प्राप्ति में बाधक होता है। ऐसा व्यक्ति नौकरी में कई तरह के व्यवधान व कष्ट झेलता है। ऐसी स्थिति में माणिक्य धारण करना अत्यन्त लाभदायक होता है।
4- अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के तृतीय भाव में सूर्य हो और उसके छोटे भाई जीवित न रहते हो तो उसे सूर्य को प्रसन्न करने के लिए माणिक्य आवश्य धारण करना चाहिए।
5- चौथ्ो स्थान में सूर्य आजीविका की बाधाएं उत्पन्न करता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए।
6- यदि सूर्य भाग्येश, धनेश या राज्येश होकर छठें या आठवें स्थ्ज्ञान में हो तो माणिक्य पहनना उपयोगी साबित होता है।
7- अगर जन्म काल में सूर्य कहीं पर भी स्थित होकर अपने नक्षत्रों- उत्तरा फाल्गुनी, कृत्तिका या उत्तराषाढ़ा को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो व्यक्ति को माणिक्य पहनना चाहिए।
8- अगर सूर्य पंचम भाव का स्वामी हो तो अत्यधिक लाभ और उन्नति के लिए माणिक्य पहनना लाभ प्रद व उपयोगी सिद्ध होता है।
9- सूर्य यदि सप्तम भााव में हो तो सूर्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना लाभप्रद रहता है।
1०- अगर जन्म कुंडली में सूर्य अष्टमेश या षष्ठेश होरक पंचम या नवम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए।
11- यदि जन्म कुंडली में सूर्य अपने भाव से अष्टम स्थान में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति को शीघ्र माणिक्य पहनना चाहिए।
12- एकादश भाव में सूर्य पुत्रों के बारे में चिंता उत्पन्न करता है और बड़े भाई के लिए हानिप्रद होता है। ऐसे जातकों को भी माणिक्य आवश्य पहनना चाहिए।

राशियों के लिए मुताबिक माणिक्य का प्रभाव

1- मेष लग्न में सूर्य पंचक त्रिकोण का स्वामी और लग्नेश मंगल का मित्र है, इसलिए मेष लग्न के व्यक्ति बुद्धि अभिवृद्धि, संतान-सुख एवं राजकृपा प्राप्त करने के लिए माणिक्य धारण कर सकते हैं। सूर्य क महादशा में इसे धारण करना इसे अत्यन्त लाभप्रद होगा।
2- कुम्भ लग्न में सूर्य सत्पम भाव का स्वामी होता है, सप्तम भाव मारक स्थान में होता है। साथ ही सूर्य, कुम्भ लग्न के स्वामी शनि का शत्रु है, इसलिए कुम्भ लग्न के जातकों को माणिक्य किसी भी रूप में लाभदायक नहीं होगा।
3- मीन लग्न के जातक को भी माणिक्य धारण करना लाभदायक नहीं होगा।
4- मकर लग्न के लिए सूर्य अष्टम भाव का स्वामी है। मकर लग्न का लग्नेश शनि हैं। सभी को मालूम है कि शनि व सूर्य में परम शत्रुता है, इसलिए इस लग्न के जातक को माणिक्य कभी नहीं धारण करना चाहिए।
5- धनु लग्न में सूर्य नवम भाव का स्वामी होता है। जो कि भाग्य का द्योतक माना गया है। इस लग्न में लग्नेश बृहस्पति का मित्र है, इसलिए इस लग्न के जातक आर्थिक लाभ, भाग्योन्नति एवं पितृ-सुख आदि के लिए इसे धारण कर सकते हैं। सूर्य की महादशा में यह विश्ोष रूप से लाभप्रद होता है।
6- वृष लग्न में सूर्य चतुर्थ केंद्र का स्वामी हैं, परन्तु वह लग्नेश शुक्र का शत्रु हैं, इसलिए इस लग्न के व्यक्तियों को माणिक्य केवल सूर्य की महादशा में ही धारण करना शुभ होता है। इससे मानसिक शांति, मातृ सुख और वाहन लाभ प्राप्त होता है।
7- मिथुन लग्न में सूर्य तृतीय भाव का स्वामी होता है, इसलिए इस कुंडली के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना कभी भी लाभकारी होगा।
8- कर्क लग्न में सूर्य धन भाव का स्वामी है। साथ ही साथ वह लग्नेश चंद्रमा का मित्र है, इसलिए इस लग्न के व्यक्ति धनाभाव या आंखों में कष्ट के समय माणिक्य पहन सकते हैं, लेकिन द्बितीय स्थान धन भाव के साथ मारक भाव भी होता है, इसलिए माणिक्य के साथ-साथ मोती भी पहनने से ही लाभ प्राप्त होगा।
9- सिंह लग्न में सूर्य लग्नेश है, इसलिए इस लग्न के लोगों के लिए माणिक्य अन्यन्त लाभकारी रहता है। इस लग्न के जातकों को यह रत्न आजीवन धारण करना चाहिए। इसके कारण धारक दुश्मनों के बीच भय रहित रह सकता है। इससे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा होती है। साथ ही आयु में वृद्धि होती है।
1०- कन्या लग्न में सूर्य द्बादश भाव का स्वामी हैं। इसलिए इस लग्न के जातकों को कभी माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए।
11- तुला लग्न में लग्नेश शुक्र है, इसलिए इस लग्न के जातकों को केवल सूर्य की महादशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए।
12- वृश्चिक लग्न में सूर्य दशम भाव का स्वामी और लग्नेश मंगल का मित्र है, इसलिए राजकृपा,व्यवसाय-नौकरी में उन्नति व मान-सम्मान के लिए जातकों को माणिक्य धारण करना विश्ोष रूप से लाभप्रद होता है।

कैसे करें माणिक्य का प्रयोग

कम से कम ढाई रत्ती का शुद्ध माणिक्य रविवार, सोमवार या बृहस्पति वार को खरीदकर सोने की अंगूठी जड़वाना चाहिए। फिर शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय पहनना चाहिए।

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धारण करने से पूर्व इसे कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिए। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चंदन और धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए। साथ ही सात हजार बार निम्नलिखित मंत्र का जप करना चाहिए। इसे दाये हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।

मंत्र है- ऊॅँ घृणि:सूर्याय नम:।

 

माणिक्य के विकल्प भी जाने
माणिक्य चूंकि बहुत मूल्यवान है, इसलिए आप इसके बजाए चाहे तो इसके स्थान पर लालड़ी यानी स्पाइनेल, लाल रंग का तामड़ा यानी गारनेट, सूर्यकांत मणि या जिरकॉन पहन सकते हैं। यदि माणिक्य के रंग का अकीक यानी एजेट मिल जाए तो उसे भी धारण किया जा सकता है।

 

माणिक्य से इन रोगों का उपचार भी है संभव 

माणिक्य रक्त सम्बन्धित विकारों के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है। माणिक्य के भस्म का सेवन करने से आश्चर्यजनक रूप से लाभ प्राप्त होता है। आयुर्वेद शास्त्र में माणिक्य के बारे में कहा गया है कि
माणिक्य दीपन वृष्यं कफवातक्षयार्तिनुत्।
अर्थ- माणिक्य वात-पित्तका नाश करने वाला और पेट के विभिन्न रोगों के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है। इसका भस्म दीर्घायु बनाता है। साथ ही यह क्षय रोग, उदर शूल, फोड़ा, धातु, विषनाश, आंखों की बीमारी और कोष्ठबद्धता में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध होता है। इन रोगों में इसकी भस्म इस्तेमाल करनी चाहिए। इसकी गोलियां भी बाजार में मिलती हैं। यह पीलिया नाशक एवं रक्ताल्पाता की अचूक दवा है।। इसके अलावा माणिक्य निमÝ उल्लेखित रोगों में भी विश्ोष रूप से प्रभावी है।

– यदि घर में माणिक्य हो तो उससे कीटाणुओं का नाश होता है।
– नामर्दी व खूनी बवासीर में माणिक्य की भस्म रामबाण है।
– अर्जीण की स्थिति माणिक्य सिंचित जल विश्ोष लाभकारी है।
– यदि किसी को संग्रहणी, अतिसार आदि रोग हों तो माणिक्य की अंगूठी पहनने से लाभ प्राप्त होता है।
– यदि खूनी दस्त हो रहे हों तो व्यक्ति को माणिक्य का धोया जल पिलाने से तत्काल लाभ होता है।

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