परमब्रह्म का अंश है जीव

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ईश्वर, परमेश्वर, परमात्मा आदि कुछ भी कह लें। हम अपने जीवन के कल्याण के लिए इस शक्ति की आराधना करते हैं। अपने देश भारत समेत विश्व के ज्यादातर लोगों की ईश्वर में आस्था है। यही ईश्वर संसार के सभी मानवों व जीवों का रखवाला है। ईश्वर के बारे में लोगों के मन में सवाल उठते हैं कि वह साकार हैं या निराकार। धर्म शास्त्रों में ईश्वर के बारे में बताया गया है।

सनातन यानी हिन्दू धर्म में ईश्वर भक्त साकार व निराकार दोनों तरह से उपासना करते हैं। वेद में ईश्वर को निराकार बताया गया है। कई लोग सवाल उठाते हैं कि ईश्वर जब निराकार है तो लोग मंदिरों में साकार रूप में मूॢतयों की पूजा क्यों करते हैं। इस बात को लेकर ईश्वर भक्तों में यदाकदा बहस भी देखने को मिलती है। साकार रूप में ईश्वर की पूजा करने वाले भक्तों का कहना है कि ईश्वर वास्तव में साकार ही है। वैसे मेरा मानना है कि ईश्वर साकार व निराकार दोनों है। हम खुद को ही ले लें। हम साकार हैं या निराकार? जाहिर है जवाब होगा कि हम साकार ही हैं। हमें लोग देख व महसूस कर सकते हैं। पदार्थों से निॢमत हमारा शरीर है और उसमें स्थित है आत्मा।

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यह हमारा साकार रूप है, लेकिन जब हम अपनी मां के गर्भ में प्रवेश करते हैं तो हम निराकार रहते हैं। कुछ समय बाद हमारे शरीर का निर्माण होता है। नौ माह के बाद हम जन्म लेकर साकार रूप में संसार के सामने आ जाते हैं। पूरा जीवन व्यतीत करने के बाद जब हम मृत्यु को प्राप्त करते हैं तो हम शरीर को छोड़कर फिर निराकार हो जाते हैं। यही क्रम चलता रहता है। हम दो अंशों से बने हैं। एक आत्मा व दूसरा शरीर। आत्मा परामात्मा का अंश है तो शरीर प्रकृति का अंश है। हम कह सकते हैं कि ईश्वर का शरीर संपूर्ण ब्रह्म्मांड की प्रकृति है और ब्रह्मांड की संपूर्ण ऊ$र्जा परामात्मा है।

भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपना विश्व रूप दिखाकर यह बात खुद बताई है। हिन्दू धर्म के अनुसार इस संसार में ईश्वर ने समय-समय पर अवतार लेकर अपना साकार रूप भी प्रकट किया है। ब्रह्मा, विष्णु व महेश के साथ ही राम, कृष्ण समेत सभी देवी व देवता ईश्वर के ही विभिन्न रूप हैं। वास्तव में ईश्वर एक ही है।

 

प्रस्तुति
रमेश चंद्र
वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ

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