शिखा रखने का वैज्ञानिक पहलू, चोटी रखने के लाभ

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सनातन परम्परा में चोटी यानी शिखा का हमेशा से विशेष महत्व रहा है। जिस स्थान पर शिखा यानी चोटी रखने की परंपरा है, वही पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी होती है। शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी मनुष्य के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी यानी शिखा सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, इसी के साथ में ब्रह्माण्ड से प्राप्त होने वाले सकारात्मक व आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण भी करती है।
वैदिककाल से सभी ऋषि-मुनी सिर पर चोटी यानी शिखा धारण करते रहे हैं, हालांकि अब इसका चलन कम हो गया है। माना जाता है कि शिखा रखने से मन स्थिर रहता है। एकाग्रता बढ़ती है। क्रोध पर प्रभावी नियंत्रण हो पाता है। मानसिक व वैचारिक शक्ति प्रबल होती है। परम्परा के अनुसार चोटी यानी शिखा पुरुष ही नहीं स्त्रियां भी रखती रही है। बच्चे का मुंडन और उपनयन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार के बाद ही बालक द्बिज कहलाता है। द्बिज का अर्थ है कि दूसरा जन्म होना। इसके उपरांत ही बालक को गुरुकुल में भेजने की परम्परा रही है। हर स्त्री व पुरुष को अपने सिर पर चोटी यानी कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिए।

जिस किसी की भी कुंडली में राहु नीच का हो या राहु खराब असर दे रहा है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखने की सलाह दी जाती है। हालांकि मुंडन संस्कार स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। जन्म के बाद बच्चे का मुंडन किया जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं, जो साधारण तरह से धोने से नहीं निकल सकते हैं, इसलिए एक बार बच्चे का मुंडन जरूरी होता है।

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सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचोबीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है। भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है। विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। हमारे ऋषियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था। इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है, इसीलिए शिखा का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है।

कब हो सकता है मुंडन व यज्ञोपवीत

बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है, जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है और बुद्धि तेज होती है। उपनयन संस्कार बच्चे के 6 से 8 वर्ष की आयु के बीच में किया जाता है। इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है, इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ भी कहते हैं। बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। वैदिक काल में 7 वर्ष की आयु में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जाता था।

मनुष्य शरीर के मर्म स्थान

वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं कि वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता हैं लेकिन मानव शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं, जिन पर आघात होने से तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहा जाता हैं। शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा हैं
मस्तकाभ्यन्तरो परिष्टात् शिरा सन्धि सन्निपातों ।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सधो मरण्म् ।
भावार्थ- मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे ‘अधिपतिमर्म’ कहा जाता हैं। यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं।
(सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : 6.28)
सुषुम्ना के मूल स्थान को ‘मस्तुलिंग’ कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों – कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों – हाथ, पैर,गुदा,इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनीही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों – की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता हैं। बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं।

शिखा रखने के लाभ

1- लौकिक – पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।

2- सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ,तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।
3- नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। सिर पर चोटी रखने से मनुष्य योगासनों को भी सही तरीके से कर पाता है।

मुख्य रूप से ब्राह्मणत्व की पहचान रही है शिखा, परम्परा व लाभ

1-परंपरा के मुताबिक हिदुओं में ब्राह्मण जब छोटे बच्चों को दीक्षा देते हैं या संस्कारित करते हैं तो उनके सिर के शेष बाल उतरवाकर एक चुटिया छोड़ देते हैं।
2- पहले सभी ब्राह्मण हर दिन अपने बाल पकड़ कर खींचते थे। प्रतिदिन साधना से पहले वह चुटिया को खींचकर कसकर बांधते थे। माना जाता रहा है कि ऐसा करने से साधना बेहतर होती थी और परमात्मा के प्रति गहरी भावना उत्पन्न होती थी।
3- सिर पर चोटी रखने का सबसे बड़ा कारण सुषुम्ना नाड़ी को बताया जाता है। कहा जाता है कि चोटी के ठीक नीचे ये नाड़ी होती है, जो कपाल तंत्र की दूसरी खुली जगहों की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील भी होती है।

4- माना जाता है कि सिर पर चोटी रखकर आसानी से ताप को नियंत्रित किया जा सकता है।
5- शरीर के पांच चक्र होते हैं, जिसमें से एक सहस्त्रार चक्र है, जो सिर के बीचो-बीच में होता है। इस जगह पर चोटी रखने से यह चक्र जाग्रत होता है। इसके साथ ही बुद्धि और मन भी नियंत्रित रहता है।
6- ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है, वह स्थान बौद्धिक क्षमता, बुद्धिमता और शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को सुचारू रखने में सहायक सिद्ध होता है।
9- आधुनिकता की वजह से आजकल अधिकतर ब्राह्मण सिर पर बहुत छोटी सी चोटी रख लेते हैं, जबकि शास्त्रों के मुताबिक ये बताया गया है कि चोटी की लंबाई और आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होनी चाहिए।
8- सिर की चोटी को कसकर बांधने की वजह से मस्तिष्क में दबाव बनता है और रक्त का संचार सही तरीके से होता है।

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