उपवास देता है इन बीमारियों से मुक्ति, विज्ञान ने भी स्वीकारा महत्व

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हिंदू यानी सनातन धर्म में उपवास यानी व्रत का विशेष महत्व सदैव से रहा है। पूजा-पाठ, त्योहार या एकादशियों पर व्रत रखते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उपवास यानी व्रत से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी, मधुमेह आदि रोग होने की संभावनाएं भी कम रहती हैं।

आम तौर पर व्रत यानी उपवास को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता है, उसका महत्व भी स्वीकार किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं, उपवास या व्रत करने से हमारे शरीर पर भी इनका सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। आयुर्वेद में भी उपवास को विशेष महत्व दिया गया है। बीमारियां दूर करने के लिए उपवास रखा जाता है। माना जाता है कि इससे शरीर की बीमारी दूर होती है। शरीर के विषैले तत्व दूर होते हैं। इसे आयुर्वेद में सर्वोत्तम औषधि के रूप में स्वीकार किया गया है। वास्तव में उपवास का न सिर्फ धार्मिक अर्थ ग्रहण किया जाता है, बल्कि इसका चिकित्सीय महत्व भी सदा से रहा है। उपवास का अर्थ है कि खाली पेट रहना।

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उपवास यानी व्रत का लाभ हमें कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के अनेक प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस, आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान और कई तरह की मानसिक बीमारियों में होता है। कैंसर के उपचार में भी इसे उपयोगी माना जाता है। माना जाता है कि उपवास के प्रभाव से ट्यूमर के टुकड़े हो जाते है। हालांकि लीवर कैंसर में उपवास प्रभावी नहीं होता है।

वैसे तो उपवास यानी व्रत के अनेकानेक लाभ है, माना जाता है कि उपवास जितना लंबा होगा शरीर की उर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। साथ ही उपवास करने वाले की स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियां पुन: सक्रिय होकर काम करने लगती हैं।
ध्यान रहे कि हमारा शरीर एक स्वनियंत्रित व खुद को ठीक करने वाली प्रजाति का हिस्सा है। उपवास के जरिए यह अपने मेटॉबॉलिज्म को सामान्य स्तर पर ले आता है और ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकता है।

यह उपवास के शारीरिक लाभ होते हैं, इसके साथ ही इसका मन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। व्रत करने से हमारी संकल्प शक्ति प्रबल होती है। विचारों में दृढता भी आती है। यह सब लाभ होते हैं। निश्चित तौर पर होते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण पहलू यह आप उपवास को जरूर करें, लेकिन शरीरिक क्षमता को भी ध्यान में रखे। जरूरी हो तो चिकित्सक या आयुर्वेदाचार्य से इस बारे में चर्चा कर लें। उदाहरण के तौर पर गर्भवती स्त्रियों और शरीर से कमजोरव्यक्ति को बिना चिकित्सक या आयुर्वेदाचार्य के परामर्श के उपवास रखने से बचना चाहिए।

धार्मिक दृष्टि से अगर आप उपवास रख रहे हैं तो आपको दिन में निद्रा से बचना चाहिए। मन-वचन व कर्म से भी सात्विक रहना चाहिए। विचारों में पवित्रता का आश्रय लेना चाहिए। मान्यता यह भी है कि व्रत करते हुए यदि आप दिन में सो जाते है अर्थात निद्रा लेते हैं तो व्रत फलीभूत नहीं होता है।

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