चुभन का अहसास कराते कहीं, हर क्षण उम्मीद जगाते नई….

0
239

जीवन और कैक्टस
मरु से जीवन में,
पनपता हुआ कैक्टस,
धीरे-धीरे अपनी जड़ों को सींच रहा,
कतरा -कतरा पानी से,
बिंधा हुआ कांटों से ,
कदम बढ़े गर कभी ,
जख्म देता ,टीसता कहीं कोई,
पुहुप खिलते रंग-बिरंगे उनमें कई ,
“खिले “कब ‘मुरझा’ गए किसी को खबर नहीं,
देखते हैं दूर से कर कभी रखते नहीं ,
बिंध न जाए कर ,उनके ही कहीं,
बैठकों की सजावट का हिस्सा बने,
दूर से ही वाह-वाही पातें कहीं,
गुणों की खान होते हुए भी,
चुभन का अहसास कराते कहीं ,
जीवन का हिस्सा बने,
हर क्षण उम्मीद जगाते नई ।

डा• ऋतु नागर

Advertisment
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here