नवल विहान, नवोदित हुआ भास्कर,
रुक ना सकी, जीवन गति कभी भी,
हर पल होता है परिवर्तन,
सुख-दुख आते-जाते रहते ,
जीवन का सिद्धांत यही है!
चलो! अब तम को हरा, प्रकाश की ओर बढ़ते हैं,
अपने अंतर्मन में नया विश्वास भरते हैं,
गमों को भूल, नयी खुशियों का आगाज़ करते हैं,
बेरंगी जीवन में नवरंग भरते हैं,
एक नवीन पथ का निर्माण करते हैं,
चलो पुन: जीवन की शुरुआत करते हैं।
डॉ• ऋतु नागर
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…………..यहां कर्म अपना है और कुछ भी नहीं ! ………सफलता का सूत्र भी यही है