सात लाख रामभक्तों की आहूतियों और पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद अब होगा अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण

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सनातनजन डेस्क । जगत के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम। सनातन धर्मियों की अटूट आस्था। श्री राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाते ही नहीं हैं, बल्कि हैं भी। ऐसे श्री राम का मंदिर पांच सौ वर्ष पहले विदेशी क्रूर आततायियों ने ध्वस्त कर दिया। मंदिर जरूर ध्वस्त कर दिया गया लेकिन सनातन धर्मियों का हौसला पस्त करने में वे नाकाम रहें। सैकड़ों वर्षों तक उन क्रूर आततायियों ने शासन भी किया, लेकिन वे सनातन धर्मियों की आस्था की लौ को नहीं बुझा पाये। इतिहास साक्षी है कि अयोध्या में श्री राम मंदिर को लेकर अब तक 76 युद्ध लड़े जा चुके हैं। सात लाख से अधिक लोगों ने श्री राम मंदिर के लिए अपने प्राणों की आहूति दी हैं। जाने कितनी बार सरजू के तट इसी श्री राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए रक्तरंजित हुए हैं। श्री राम भक्तों और सनातन धर्म के रक्षकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। बाबर के काल में हुए हिंदुओं की आस्था पर क्रूर प्रहार का दंश पांच सौ वर्षों तक हिंदू किसी न किसी रूप में झेलते रहे हैं, सहते रहे हैं, फिर मौन रहते श्री राम की आस्था की लौ जलाए रहे हैं। वह भी सिर्फ इसलिए कि भगवान श्री राम की जन्म भूमि पर मंदिर बनाना ही है। वैसे तो मुगलकाल में श्री राम का मंदिर ही नहीं ध्वस्त हुआ है, अपितु जाने कितने मंदिर ध्वस्त किए गए हैं, जिनका ब्यौरा भी शायद ही किसी के पास होगा। कालांतर में आततायियों का मुगलकाल समाप्त हुआ और सत्ता की बागडोर ब्रिटिश सम्राज्य के हाथों में आ गयी। यह कालखंड भी हिंदू भावनाओं पर कठोराघात से अछूता नहीं रहा। लाखों वर्ष पुरानी सनातन संस्कृति की समाप्ति के लिएनए- नए कुचक्र ब्रिटिश शासकों ने भी रचे, वे विफल हुए और आजाद भारत की डोर स्वदेशी शासकों के हाथों में आ गई।

आपसी प्रेम व भाईचारे के नाम पर सो- कॉल्ड स्वदेशी शासकों ने हिंदू भावनाओं को दरकिनार कर दिया। 1947 से लेकर 8० के दशक के अंत तक वे अपने मंसूबों में कामयाब भी हुए। नब्बे के दशक के बाद श्री राम जन्म भूमि को लेकर विश्व हिंदू परिषद व भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी की अगुवाई में जो आंदोलन खड़ा हुआ, उसने राम विरोधियों के मंसूबों पर पानी फेरना शुरू कर दिया। हिंदुओं की जन शक्ति आंदोलन का रूप लेती जा रही थी। लेकिन यहां के सियासतदान उस समय भी हिंदुओं की भावनाओं से कठोराघात करने से बाज नहीं आ रहे थे । यहां तक बाबरी विध्वंस के पहले 8० के दशक के अंत में जिस तरह से हजारों हिंदुओं का बर्बरता पूर्वक देसी शासकों ने काल का ग्रास बनाया, उसे तो तमाम ऑन लाइन मीडिया में देखा जा सकता हैं। शर्मनाक बात यह रही कि इन हजारों कार सेवकों को काल ग्रास बनाने के बाद भी उनमें रंज मात्र का दुख नहीं नजर आया। जिस काल खंड में हजारों कार सेवकों को बर्बरता पूर्वक मारा गया, उस कालखंड में यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे । उन्होंने कभी हजारों राम भक्तों के अकाल मारे पर अफसोस तक जाहिर नहीं किया। यहां तक कि दशकों तक इन सो कॉल्ड सैक्युलर नेताओं ने राम मंदिर को लेकर कटाक्ष किए और भाजपा व राम भक्तों से मंदिर के निर्माण की तारीख पूछ कर पांच सौ वर्षों से जले हिंदुओं के बदन पर नमक छिड़क कर उनका उपहास उड़ाते रहे, लेकिन राम भक्त भी अडिग रहे, ‘सौगंध राम की खाते हैं-हम मंदिर वहीं बनाएंगे।’नारे के साथ आंदोलन की आहूतियां देते रहे। दूसरी ओर सक्युलर मुलायक सिंह यादव सरीखे तमाम नेता हिंदुओं से मंदिर की निर्माण की तारीख पूछने में व्यस्त रहे। हिंदुओं की भावनाओं का उपहास करने वाले नेता व अन्य सेक्युलर कहते रहे कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे-पर तारीख नहीं बताएंगे।

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बाबर भारत भूमि पर आया और लूटपाट शुरू की। फिर साम्राज्य स्थापित किया। 21 मार्च, 1528 को हमलावर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोप से यहां पर राम मंदिर को ध्वस्त कर दिया। उसके बाद से लेकर अभी तक मंदिर के लिए 76 युद्ध लड़े जा चुके हैं। बताया जाता है कि सात लाख से अधिक लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। अयोध्या प्रकरण को किसी आस्था स्थल के लिए विश्व में इतना लंबा व रक्तरंजित संघर्ष कहा जा सकता है। विजीगिषा का प्रदर्शन भारतीयों ने भी किया है, जो विश्वास के आधार पर आसान नहीं था इस प्रण को पूरा करना, इसके लिए हिदू समाज ने उपेक्षा, उपहास और कड़े विरोध के कठिन चरणों से गुजरना पड़ा है। राम मंदिर आंदोलन के आधुनिक स्वरूप के पहले चरण में इसका खूब मजाक बनाया गया और विरोध हुआ तो इस कदर कि मुलायम सिह यादव जैसे सेक्युलर नेताओं ने निहत्थे लोगों पर गोलियां-लाठियां चलवा कर सरयू के पानी को लाल कर दिया। व्यंग्य करने वाले कहते रहे कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे-पर तारीख नहीं बताएंगे’, लेकिन समाज की विजीगिषा व जिजीविषा ने असंभव से लगने वाले काम को संभव कर दिखाया है। श्रीराम मंदिर आंदोलन कोई साधारण संघर्ष नहीं है, बल्कि जीवंत इतिहास है हिदू समाज की जिजीविषा यानी जीवन के प्रति ललक व कला और विजीगिषा यानी जीत के लिए तड़प और संघर्ष की कला का। मंदिर आंदोलन से जुड़े हर प्रमाण व हर अवशेष को संग्राहलय में कोहेनूर हीरे की भांति संभाल कर रखा जाना चाहिए। यह हमारी सबसे अमूल्य एतिहासिक धरोहरों में से एक है। आने वाली पीढ़ी को बताया जाना चाहिए कि किस तरह एक समाज ने पांच सौ साल संघर्ष किया और लाखों जीवन का बलिदान दिया। मरे-खपे, गिरे-उठे, कभी आगे बढ़े तो कभी पीछे हटे, मारा-मरे लेकिन लड़ना नहीं छोड़ा। विपरीत परिस्थितियों में भी जीतने, अंतिम विजय हासिल करने, समाज को जीवंत, संगठित रखने की कला सीखनी हो तो राम मंदिर आंदोलन से बड़ा कोई और उदाहरण नहीं हो सकता है। पांच अगस्त का दिन सबक है उन लोगों के लिए भी जो ‘गजवा-ए-हिन्द’ रूपी शेखचिल्ली का सपना संजोये हुए हैं। अब जब राम भक्तों का अयोध्या में श्री राम मंदिर का सपना सकार होने जा रहा है, उसके भूमि पूजन में चंद घंटे बचे है तो यह सो-कॉल्ड सेक्युलर कुचक्र रच रहे हैं। कुछ चेहरे सामने आ रहे हैं तो कुछ पीठ पीछे से कुचक्र रच रहे हैं। मकसद एक है कि हिंदुओं को बांटना, हिंदुओं को कमजोर करना और हिंदू समाज में मतभेद व मनभेद बढ़ाना, उनके हौसले को तोड़ना, लेकिन वह सो-कॉल्ड सेक्युलर यह नहीं जानते है कि सनातन संस्कृति अमिट है, न आदि है और न ही इसका अंत है। वह मिट जाएंगे, उनके वंशज मिट जाएंगे, पर हिंदू संस्कृति जीवन्त है और रहेगी।

अयोध्या: 1527 से 1857 तक का संघर्ष

के. तिवारी

• जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय श्रीराम जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। (फैजाबाद जिला गजेटियर पृष्ठ 173 के अनुसार बाबर 29 मार्च 1527 को अयोध्या पहुंचा था।)
• ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा। जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना।
• सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया और मीर बाँकी के माध्यम से बाबर को उकसा कर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया।
• दुःखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित कीं और खुद हिमालय की ओर तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारों पुजारियों के सिर काट लिए गए।
• जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे, अयोध्या पहुंचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर 1 लाख चैहत्तर हजार लोगों के साथ बाबर की सेना के 4 लाख 50 हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।
• रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे, जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े 17 दिनों तक जन्मभूमि की रक्षा के लिए घोर संग्राम करते हुए राजा महताब सिंह सहित लाखों वीरों ने इस धर्मयुद्ध में अपने जीवन के प्राणों की आहुति दे दी।
• इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखते हैं कि एक लाख चौहत्तर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।
• हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है कि जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नींव मस्जिद बनवाने के लिए दी थी।
• जन्मभूमि के रक्षार्थ अगली मुहिम पंडित देवीदीन पाण्डेय द्वारा आरंभ की गई। उन्होंने सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित कर आहृवान किया कि आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा।
• देवीदीन पाण्डेय के आह्वान पर दो दिन के भीतर 90 हजार क्षत्रिय इकट्ठा हो गए। दूर-दूर के गांवों से समूहों में इकट्ठा होकर जन्मभूमि के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया। शाही सेना से लगातार 5 दिनों तक युद्ध करते हुए रामभक्तों ने जन्मभूमि के रक्षार्थ बलिदान दिया।
• इसके 15 दिन बाद जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ 25 हजार सैनिकों के साथ मीर बाँकी की विशाल और शस्त्रों से सज्जित सेना पर आक्रमण किया। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा।
• जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी जयराज कुमारी ने उनके संकल्प को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि के लिए मुगल सेना पर हमला बोला। कई दिनों तक छापामार युद्ध के बाद इन वीरांगनाओं ने राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। इसके बाद स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्त साधू-सन्यासियों और आम लोंगों को इकट्ठा करके मुगल सेना से संघर्ष किया।
• अगले संघर्ष का नेतृत्व स्वामी बलरामाचारी जी ने अपने हाथों में लिया। रामभक्तों की मजबूत सेना तैयार कर जन्मभूमि के उद्धारार्थ 20 बार आक्रमण किये। इन 20 हमलों में 15 बार स्वामी बलरामाचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्पकालिक था। पर, इससे सम्पूर्ण अयोध्या अंचल में नवीन चेतना जागृत हुई, जिससे अकबर को मस्जिद के प्रांगण में मंदिर स्वीकारना पड़ा।
• औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु रामदास महाराज जी के शिष्य बाबा वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों में अयोध्या के आस-पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया, जिनमें सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे।
• ये सारे वीर ये जानते हुए भी कि उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं हैं अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।
• समर्थ गुरु रामदास जी के शिष्य बाबा वैष्णवदास जी के नेतृत्व में हजारों चिमटाधारी साधुओं की सेना ने मुगल सेना को मार भगाया। प्रतिक्रिया स्वरूप औरंगजेब ने जन्मभूमि पर पड़ी झोपड़ी भी नष्ट कर दी, जहां हिन्दू पूजा करते थे।
• सन् 1680 में बाबा वैष्णवदास जी ने सिक्खों के गुरु गुरु गोविंद सिंह से युद्ध में सहयोग के लिए पत्र लिखा। संदेश पाकर गुरु गोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रह्मकुंड पर अपना डेरा डाला। (ब्रह्मकुंड वही जगह है जहां आजकल गुरु गोविंद सिंह की स्मृति में सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है।)
• बाबा वैष्णवदास जी एवं गुरु गोविंद सिंह जी जन्मभूमि की रक्षा हेतु एक साथ रणभूमि में कूद पड़े। इन वीरों के सुनियोजित हमलों से मुगलों की सेना के पाँव उखड़ गये और सैय्यद हसन अली भी युद्ध में मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया।
• औरंगजेब ने सन् 1664 में एक बार फिर श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण किया। इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी, नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गई। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमें फेंककर चारों ओर दीवार उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप ‘गज शहीदा‘ के नाम से प्रसिद्ध है और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है।
• नवाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वीं में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व में बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये।
• लखनऊ गजेटियर में कर्नल हंट लिखता है- लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नवाब ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दी, पर उसने हिन्दुओं को जमीन नहीं सौंपी।
• फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा है कि ‘इस संग्राम में बहुत ही भयंकर खून-खराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डालीं, मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया। मगर, हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहंुचाई। अयोध्या में प्रलय मचा हुआ था।
• इतिहासकार कनिंघम लिखते हैं कि ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम बलवा था। हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया। चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया, जिसमें पुनः रामलला की स्थापना की गई।
• सन 1857 की क्रांति में बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरणदास ने एक मौलवी अमीर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ में दोनों को एक साथ अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। जब अंग्रेजों ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप में विकसित हो रहा है तब उन्होंने इस पेड़ को कटवा दिया।
• गोरक्षपीठ के श्री गोपालनाथ जी महराज ने आन्दोलन शुरू किया, उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. उनके लिए जोधपुर रियासत सहित कई क्षत्रिय रियासतों द्वारा मुक्त करने के लिए दबाव बनाया गया लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें रिहा नहीं किया तत्पश्चात नेपाल नरेश द्वारा दबाव बनाया गया और गोरखा रेजिमेंट को हटाने की धमकी डी गयी तब इन्हें रिहा किया गया .

• ब्रिटिश-महारानी विक्टोरिया ने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की जानकारी पाकर, बाबरी मस्जिद का नक्शा मंगवाया और प्रांगण के बीच रेखा खीचकर आदेश किया कि इस रेखा पर दीवार बनवा दी जाए। मुसलमान भीतर नमाज पढ़े और हिंदू बाहर के चबूतरे पर पूजा-पाठ करें।

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