अमरनाथ स्वयंभू लिंग: आज एक जोड़ा कबूतर का अमरनाथ गुफा में दिखलाई पड़ता है, यहाँ महामाया शक्तिपीठ भी

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2055

कश्मीर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग है। कुछ लोग इन्हीं को अमरेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग मानते हैं। यहां का शिवलिंग तथा गुफा – मंदिर दोनों मानवाकृत न होकर प्राकृतिक हैं।

या कुंदेंन्दु तुषार हार धवला या शुभ्रावस्त्रावृत्ता।
या वीणा वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना ।।
या ब्राह्माच्युत प्रभर्तिभिदेवै सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।
मां सरवस्ती की कृपा से अपनी भोले बाबा अमरनाथ बर्फानी की यात्रा का विृत्तांत लिपिबद्ध किया।
‘ध्यायेत् नित्यम् महेशं रजत गिरि निभं चारू चन्द्रावतंशम् रत्नाकल्पोत् ज्वालागम् परशु मृगवरा भीति हस्तम् प्रसन्नम्।
पद्मनाशं समन्नतात् स्तुतिमामर्गण्ये् व्याघ्रकृति वसानं विश्वाद्यम् विश्ववन्द्यम् निखिल भय हरम् पंच्वक्रम त्रिनेत्रम् ।।
जनश्रुति प्रचलित है कि अमरनाथ की इसी पवित्र गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।

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श्रावण पूर्णिमा को होती है यात्रा विशेष 

पुण्यवान स्थान की यात्रा विशेष रूप से श्रावण पूर्णिमा को होती है। यहां की गुफा में तीन हिमलिंग – से दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें श्रद्धालु शिव, पार्वती और गणेश के लिंग बतलाते हैं। गुफा की छत से बूंद – बूंद जल टपकता रहता है और उसी से लिंगाकृति बनती रहती है। यहां के हिमलिंग की विलक्षण महिमा है। इसी कारण ही  लोग इसे ज्योतिर्लिंग कहते हैं। वास्तव में शिवपुराण में दिए गए विवरण के अनुसार यह शिवलिंग द्वादश ज्योतिलिंगों की गणना में नहीं आता।

अमरनाथ की कथा

धार्मिक मतानुसार भगवान शिव इस गुफा में पार्वती को अमर कथा सुनाते हैं। इसी गुफा में कबूतर के दो अंडे घोंसले में रखे थे, जिस पर भगवान शिव का ध्यान नहीं गया और जो अमर कथा उन्होंने पार्वती को सुनाई, उसे अंडे के अंदर कबूतरों ने भी सुन लिया और वे भी अमर हो गए और हजारों वर्षों के पश्चात् भी आज एक जोड़ा कबूतर का अमरनाथ गुफा में दिखलाई पड़ जाता है, जब कि वहां पर तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि हिम शिवलिंग केवल जुलाई – अगस्त में ही निर्मित होता है। अन्य महीनों में नहीं। पर ऐसा नहीं है, हिमलिंग पूर्णतया लुप्त नहीं होता है, छोटे रूप में हमेशा विद्यमान रहता है। इसी के साथ पार्वती व गणेश के हिमलिंग भी यहां निर्मित होते हैं।

अमरनाथ के दर्शनीय स्थल

शिव की पवित्र गुफा : यह एक प्रकार का प्राकृतिक रूप से निर्मित अनगढ़ मंदिर का रूप है। यह गुफा लगभग 50 फीट लंबी, 30 फीट चौड़ी व 15 फीट ऊंची है, इसी गुफा के द्वार पर बड़ा हिमलिंग निर्मित होता है। साथ में दो छोटे हिमलिंग भी बनते हैं। बड़ा हिमलिंग शिव का व छोटे हिमलिंग गणेश व पार्वती जो के रूप हैं। आश्चर्य है कि ये हिमलिंग ठोस पक्की बर्फ के बने होते हैं जबकि बाहर हर स्थान पर बर्फ कच्ची होती है। इनके दर्शन करके प्रत्येक यात्री एक प्रकार की शांति का अनुभव करता है।

महामाया शक्तिपीठ: यहां सती पार्वती का कंठ गिरा था, अतः छोटे हिमलिंग को शक्तिपीठ की मान्यता है तथा भैरव के त्रिसंध्येश्वर का नाम दिया गया है। अमर गंगा ऊंचाई पर स्थित इस प्राकृतिक गुफा में पहुंचने से पहले हिमनद ग्लेशियर बर्फ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। इस दुधिया ग्लेशियर को अमर गंगा कहा जाता है।

अमरनाथ यात्रा के दो मार्गों …..

यात्रा के मध्य भी दर्शनीय स्थल

( 1 ) यह मार्ग श्रीनगर से 70 किलोमीटर दूर बालताल होकर जाता है। यह मार्ग छोटा अवश्य है, पर काफी खतरनाक है और बरसात में खतरा बढ़ जाता है।

( 2 ) दूसरा मार्ग पहलगांव से प्रारंभ होता है जो चंदनवाड़ी शेषनाग, पंचतरणी होकर जाता है। अधिकांश यात्री इसी मार्ग से यात्रा करते हैं। प्रथम मार्ग की जम्मू से दूरी 400 किलोमीटर है जबकि दूसरे मार्ग की दूरी 450 किलोमीटर है। अमरनाथ को यात्रा कठिन होते हुए भी अद्भुत आनंद देने वाली है। पिछले कई वर्षों से कश्मीर में आतंकवाद के कारण यात्रा मार्ग में सेना और पुलिस द्वारा विशेष सुरक्षा प्रबंध किया जाने लगा है। सावन- पूर्णिमा के पवित्र दिवस पर अमरनाथ के हिमपिंड के दर्शन करने के लिए अब यात्रियों को महीने दो महीने पहले नाम का पंजीकरण कराना होता है। उसी के आधार पर जम्मू कश्मीर के पर्यटन विभाग द्वारा जम्मू  नगर से अमरनाथ की यात्रा का प्रबंध किया जाता है।

यात्रा का प्रारंभ ( प्रथम मार्ग ) : अमरनाथ जाने वाले सभी यात्रियों को जम्मू में एकत्र होकर टिकर तथा रसीद प्राप्त करनी होती है। कार, बसों और मिनी बसों का काफिला सुबह के समय जम्मू से रवाना होका दिनभर श्रीनगर के राजमार्ग पर चलता है। जवाहर सुरंग होते हुए संध्या तक गाड़ियां श्रीनगर से आगे पहलगाम के आधार शिविर ( बेस कैंप ) तक पहुंच जाती हैं। यहाँ रात्रि विश्राम तथा भोजन का प्रबंध रहता है। पहलगाम एक छोटा – सा सुंदर कस्वा है। अगले दिन यात्री दुधिया – घाट वाली लिद्दर नदी के किनारे – किनारे चलते हुए पहलगाम से लगभग 16 किलोमीटर दूर चंदनवाड़ी पहुंचते हैं और रात्रि को वहीं विश्राम करते हैं।

चंदनवाड़ी : चंदनवाड़ी के बारे में कहा जाता है कि महादेव ने इसी स्थान पर अपने मस्तक के चंदन तथा चंद्रमा को छोड़ा था, अत : यह क्षेत्र चंदनवाड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अमरनाथ पहुंचने के लिए चढ़ाई वाली कठिन यात्रा चंदनवाड़ी के बाद से प्रारंभ होती है। यात्री पैदल पिट्ट व खच्चरों द्वारा शेषनाग की ओर रवाना होते हैं। चंदनवाड़ी से 13 किलोमीटर दूर है।

शेषनाग : शेषनाग स्वच्छ नीले जल से पूर्ण एक सुंदर झील है। प्राचीन मान्यता है कि भोले शंकर ने अमरकथा सुनाने के लिए जाते समय शेषनाग को यहा नियुक्त किया। यहां यात्रियों के लिए रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। रात्रि को यहां ठहरकर सुबह में कठिन पैदलमार्ग से यात्रा पुनः आरंभ होती है, जो महागुनस पर्वत से होती हुई पंचतरणी पहुंचती है। शेषनाग से पंचतरणी की दूरी 17 किलोमीटर है।

पंचतरणी: दंतकथा है कि शिवशंकर ने यहा तांडवनृत्य किया था। उनकी जटाओं के खुलने से गंगा की पांच शाखाएं जलधाराओं के रूप में बह निकली थीं। इसीलिए पांच सरिताओं वाले इस स्थल को पंचतरणी कहते हैं। यहां ठंड अधिक होती है, अतः यहीं रात्रि विश्राम का प्रबंध रहता है। यहां से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 6 किलोमीटर है, किंतु मार्ग दुर्गम तथा फिसलन भरा है। केवल 3 किलोमीटर आगे बढ़ने पर प्रसिद्ध गुफा दिखाई देने  लगती है। श्री अमरनाथजी ऊंचाई पर स्थित इस प्राकृतिक गुफा में पहुंचने से पहले हिमनद  (ग्लेशियर) से बर्फ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। इस दूधिया ग्लेशियर को  अमरगंगा कहते हैं।

दूसरा मार्ग : जम्मू से बस, टैक्सी द्वारा यात्री सीधे बालताल तक पहुंच जाते हैं, जहां बेस कैंप होता है। इस कैंप से श्री अमरनाथजी की गुफा मात्र 14 किलोमीटर दूर स्थित है। दूसरे दिन यात्री पैदल या पोनी ( छोटे घोड़े ) खच्चर द्वारा पवित्र गुफा तक पहुंच जाते हैं। यह मार्ग अत्यंत कठिन व जोखिम भरा है, अत : स्वस्थ मानव ही इस मार्ग से यात्रा कर सकते है| महिला, बुजुर्गों, बच्चों  हेतु यह मार्ग उचित नहीं है। दूसरे  मार्ग से यात्री उधमपुर खुड, पटनीटाप, मावन बनिहाल व अनंतनाग होते हए श्रीनगर पहुंचते है|  दूसरे दिन श्रीनगर के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करते है|  अगले दिन वहां से सोन मार्ग होते हुए सीधे बालताल पहुंच जाते है। चूंकि ये यात्रा बसों या टैक्सी आदि द्वारा की जाती है, अत : यात्री पैदल या पोनी से पवित्र गुफा तक पहुंच कर अमरनाथजी के दर्शन करते हैं। दर्शन के पश्चात् उसी दिन वापस बेस कैंप वालताल तक पहुंच जाते हैं। अमरनाथ दर्शन सागर तल से करीब 13,500 फीट की ऊंचाई पर प्रकृति द्वारा निर्मित विशाल गुफा है, जिसमें बर्फ से बने श्वेत हिमलिंग के दर्शन होते हैं। सावन की पूर्णिमा के दिन शिवलिंग के साथ ही हिम निर्मित पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और शेषनाग के दर्शन भी होते हैं। यह भी आश्चर्यजनक बात है कि ऐसी कड़ी ठंड में भी वहां पर कबूतर का एक जोडा देखने को मिलता है ऐसा कहा जाता है कि कबूतर के इस जोड़े ने शिव द्वारा पार्वती को सुनाई अमरकथा सुन ली थी, तभी से वह अमर हो गया है। दर्शन के समय पूरी गुफा दर्शनार्थियों द्वारा किए गए मंत्रजाप तथा भोले शंकर की जय की ध्वनि से गूंज उठती है।

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