फेसबुक पर गलत सूचना या फर्जी खबरों का पता लगाना आसान नहीं है। एक अध्ययन के मुताबिक सोशल नेटवर्किंग साइट तथ्य और कल्पना के बीच के फर्क को और मुश्किल बना देती है।
‘मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम क्वार्टरली’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, प्रतिभागियों के शरीर में एक वायरलेस इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी (ईईजी) हेडसेट लगाया गया था जो फेसबुक चलाने के दौरान उनके मस्तिष्क की गतिविधि पर नजर रखता था।
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शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रतिभागियों ने केवल 44 प्रतिशत खबरों का ही सही ढंग से मूल्यांकन किया, उनमें से ज्यादातर लोगों ने उन खबरों को सच माना जो उनके स्वयं के राजनीतिक विचारों से मेल खाते थे।