लोकसभा चुनाव से पहले भूपेंद्र-धर्मपाल की सर्जिकल स्ट्राइक विपक्ष की कमर तोड़ देगी!

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मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। भाजपा का नेतृत्व कर रही टीम गुजरात अपने लक्ष्य के लिये गीता पढ़ कर व्यवहार करती है और राज्यों के नेतृत्व से रामायण पढ़ कर राजनीति का मार्गदर्शन देती है।जब लोकसभा चुनाव आता है तो अमूमन ऐसा दिखता है कि राज्य नेतृत्व जिनसे लड़ता है उन्हें भाजपा नेतृत्व आगे बढ़ कर गले लगाता है। लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में ऐसा ही दिखने लगा है। जिन दो दलों ने भाजपा और भाजपा नेतृत्व को जम कर निशाना बनाया उनसे हाथ मिलाने के लिये भाजपा का एक धड़ा बावला बना फिर रहा है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद इसके जीते-जागते नमूने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठों का सरदार और गृहमंत्री अमितशाह को तड़ीपार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फिर से मठ भेज देने की बात कह कर हमला करते रहे अब उन्हें पलक पावड़े बिछा कर स्वागत किया जा रहा है। दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भाजपा के मान मर्दन का एक भी अवसर नहीं छोड़ा था।भाजपा में सक्रिय कुछ ब्रोकर कार्यकर्ताओं के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले जयंत के वक्तव्यों को भूल जाने की सलाह दे रहे हैं। अखिलेश सरकार के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थिति कवाल में हुये दंगे जिसमे अपनी बहन के सम्मान के लिये सचिन और गौरव की शहादत हुई थी।इस दंगे में यदि उत्तर प्रदेश तत्कालीन भाजपा नेतृत्व न कूदा होता तो हिंदुओं की बहुत फजीहत हो रही थी। जयंत चौधरी दो जाट युवाओं की हत्या पर दुबक गये थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने एजेंडे के अनुसार दंगाईयों की कवच बन गये थे।

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ऐसे बिकट घड़ी में भी अजित चौधरी और जयंत चौधरी हिंदुओं पर हो रहे अन्याय पर मुंह नहीं खोले।जिसके कारण बहुत बड़ा वर्ग इन बाप बेटे से ऐसा नाराज हुआ कि अजित सिंह स्वर्गवासी हो गये लेकिन दोबारा बाप-बेटे दोनों लोकसभा नहीं पहुंच सके। भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री व्यवहार में भोले-भाले लेकिन राजनैतिक वार में मिसाइल हैं। जिसको टारगेट किया वह भाजपा के खेमे में गिरा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के समर्थकों को भाजपा में लाने के लिये उनका निर्णय अखिलेश यादव की नींद हराम कर दिया है।

उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और महामंत्री संगठन डॉ धर्मपाल की संयुक्त रणनीति ने जयंत चौधरी को बेदम कर दिया है। यूपी में विपक्ष अपने कार्यकर्ता बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है।भूपेंद्र सिंह के तेवरों को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि भगदड़ का अब तक सबसे बड़ा धक्का सपा मुखिया अखिलेश यादव को लगा है, जो लोकसभा चुनाव तक जिन ब दिन गहराता ही जायेगा। जिस सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन में लड़ कर जयंत चौधरी की पार्टी को 33 में 8 सीटें मिलीं हैं उनमें से अधिकांश नेता भाजपा में शामिल हो गये।बीजेपी अध्यक्ष बार-बार ये कहते हैं कि जयंत चौधरी की पार्टी से हम गठबंधन नहीं कर रहे हैं।उन्हें एनडीए के साथ लड़ना है तो भाजपा में शामिल हो जायें। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गैर जाट पिछड़ी जातियों के नेता भाजपा में आ गये हैं या तेजी आ रहे हैं।

पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी व अन्य दलों से जुड़े लोग भाजपा में शामिल हो गये। मुजफ्फरनगर से आरएलडी से पूर्व राज्यसभा सांसद राजपाल सैनी, सहारनपुर से सपा के पूर्व मंत्री साहब सिंह सैनी, हापुड़ से सपा के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सत्यपाल यादव, हापुड़ से सपा की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुनीता यादव, हापुड़ से सपा की ब्लॉक प्रमुख सिंभावली शालिनी यादव, मुजफ्फरनगर से बसपा के पूर्व प्रत्याशी विधानसभा खतौली शिवान सैनी प्रमुख चेहरों के रूप में शामिल हुये। जौनपुर से सपा के पूर्व मंत्री जगदीश सोनकर, पूर्व विधायक सुषमा पटेल, पूर्व विधायक गुलाब सरोज, हरदोई से सपा के पूर्व सांसद अंशुल वर्मा, वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सपा की पूर्व लोकसभा प्रत्याशी रही शालिनी यादव, वाराणसी से सपा की पूर्व जिला अध्यक्ष पीयुष यादव, लखनऊ से पूर्व कांग्रेस मीडिया चेयरमैन राजीव बक्शी, आगरा से बसपा पूर्व चेयरमैन जिला सहकारी बैंक गंगाधर कुशवाहा, बसपा के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी रवि भारद्वाज, हमीरपुर से सपा के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जितेंद्र मिश्रा, बसपा के विधानसभा तिंदवारी से प्रत्याशी दिलीप सिंह,तथा सीतापुर से बसपा के पूर्व प्रत्याशी सिधौली पुष्पेंद्र पासी सहित यूपी के विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता बीजेपी में आ गये हैं। अब जो नाम भाजपा में शामिल होने के लिये लाइन में है वह विपक्ष का शिरदर्द और बढायेगा।

यूपी की पर पैनी दृष्टि रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ए के सिंह ने कि विपक्षी पार्टियां अपने नेताओ को रोक नहीं पा रही है बीजेपी से भला कैसे लड़ेंगी? समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश सरकार के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक ज्यादा डरे हैं। जिसका उदाहरण अखिलेश यादव के टीयूटर अकाउंट में दिखता है।पिछले सत्रों में अखिलेश इन्हीं दोनों उपमुख्यमंत्रियों पर हमलावर रहे आगामी विधानसभा सत्र में भी अखिलेश इन्हीं पर निशाना साधते दिखेंगे। योगी आदित्यनाथ पर सीधे हमले से अखिलेश बचते हैं उसका कारण कुछ भी हो सकता है। वैसे अभी तक हर बार बाबा सदन के भीतर अखिलेश को बैकफुट पर ढकेलते देखे गये हैं।

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