चक्षु , नेत्र,दृग , विलोचन, लोचन,अक्षि या कहें इन्हें नयन ,
ईश का दिया अनमोल वरदान ये नयन ,
हर प्राणी के आनन में बसते ये दो नयन,
ये नयन भी ना हाले दिल बयां करते हैं,
बिन कहे ही बहुत कुछ कह जाते ये नयन,
चाह कर भी कुछ ना छुपा पाते ये नयन,
सुख हो या दुःख हो छलछला उठते ये नयन,
जग के रंगोंरूप दिखाते ये नयन,
कभी इश्क तो कभी कत्ले वज़ह बन जाते ये नयन,
कवि की कविता, शायर की शायरी,
कलाकार की कला को निखारते ये नयन,
जिंदगी का समस्त लेखा-जोखा दिखाते ये नयन,
जग में आते ही खुलते ये नयन,
जग से विदा होते, बंद होते ये नयन,
इन नैनो को यूं व्यर्थ ना जाने देना,
किसी और के चेहरे से पुनः जीवन देना,
किसी के लिए ताउम्र, यादगार बन जाएंगे,
तुम्हारे ये दो नयन।
डा• ऋतु नागर
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