गुप्त नवरात्रि की महिमा, सिद्ध होते हैं मनोरथ

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1976

साल में चार नवरात्रि होते हैं। दो गुप्त नवरात्रि होते हैं, जिन्हें माघ गुप्त नवरात्रि और आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इस दौरान रात के समय माता दुर्गा की गुप्त पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दौरान माता गुप्त मनोकामनाएं पूरी करती हैं और साधक को धन, ऐश्वर्या, सुख, शांति सहज ही पूजन से प्राप्त हो जाता है। गुप्त नवरात्रि तीन जुलाई से है। देवी के नौ रूपों की पूजा के साथ-साथ गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाएगी।

गुप्त नवरात्रि जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, यह अत्यन्त गुप्त होते हैं। इन नवरात्रि में पूजा-पाठ अत्यन्त गुप्त विधि-विधान से किया जाता है। आइये पहले जानते है कि गुप्त नवरात्रि क्या है, क्यों मनाए जाते हैं, कब से प्रचलन में आए और इनका क्या प्रभाव होता है? कौन लोग इन नवरात्रि को अधिक करते हैं। यह नवरात्रि कैसे करने चाहिए। आइये, शुरुआत करते है, उस कथा से, जिससे स्पष्ट होगा कि इनका जन सामान्य के मध्य में प्रचलन में कब से हुआ है?

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गुप्त नवरात्रि को लेकर एक कथा हम आपको बताते हैं, उसके अनुसार, एक समय की बात है कि परम तेजस्वी ऋषि श्रंगी के पास विलाप करती हुए दुखी एक स्त्री आई और उसने ऋषि को अपना दुखड़ा सुनाया। स्त्री ने ऋषि को कहा कि उसका पति गलत कामों में संलिप्त रहता है और वह बहुत ही अधर्मी है, अनाचार में डूबा रहता है, जब वह कोई धार्मिक कार्य, हवन या अनुष्ठान करने की कोशिश करती है, वह कभी भी सफल नहीं हो पाता है, वह अत्यन्त निराश व हताश हो चुकी है। ऐसा में क्या करे कि भगवती दुर्गा की कृपा उसके घर-परिवार पर पड़े। कुछ पल शांत रहने के बाद विचार कर ऋषि श्रंगी बोले कि वसंत और अश्विन ऋतु में आने वाले नवरात्रि का तो सभी को ज्ञान है, लेकिन गुप्त नवरात्रि जो आषाढ़ और माघ ऋतु में आते हैं। उनमें माता की विशेष कृपा होती हैं। इनमें नौ देवियों की पूजा न होकर 1० महाविद्याओं की उपासना होती है।

यह सुन कर उस स्त्री ने विधिपूर्वक कठोर साधना की। माता ने उसकी साधना से प्रसन्न होकर उसके घर में खुशियों भर दीं। अन्य दोनों नवरात्रि की ही तरह गुप्त नवरात्रों में भी नौ दिन का व्रत होता है। पहले दिन यानि प्रतिप्रदा को घटस्थापना होती है और फिर  प्रत्येक  दिन सुबह-शाम भगवती दुर्गा की पूजा-अर्चना विधिविधान से की जाती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या-पूजन के साथ व्रत सम्पन्न किया जाता है।

इसके अलावा वहीं जो साधक सिद्धियां प्राप्त के लिए यह नवरात्रि रखते हैं, वे दस महाविद्या की साधना करते हैं। तंत्र साधना के समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, इसीलिए हमारा परामर्श है कि यह साधना बिना गुरु के निर्देशन के न करें, यह विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं। हालांकि गुप्त नवरात्रि में भी उसी तरह पूजा की जाती है, जैसे कि शेष दोनों सामान्य नवरात्रि में होती है, लेकिन गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना विशेष रूप की जाती है। तंत्र साधना के लिए गुप्त नवरात्रि को विशेष महत्व माना गया है। इन नवरात्रों में साधक की इच्छा के अनुसार ही फल मिलता है। दस महाविद्याओं का अर्थ है, दस देवियां। साधक तंत्र साधना कर के उन्हें प्रसन्न करते हैं। इससे साधक को मनोवांछित सिद्धियां प्राप्त होती हैं और मुंह मांगी इच्छा पूर्ण होती है। इन 1० देवियों यानी दस महाविद्याओं के नाम निम्न उल्लेखित किए गए हैं-

देवी की ये स्वरूपा शक्तियाँ ही दस महाविद्याएँ हैं जिनके नाम  हैं-काली,तारा, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, कमला, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी और मातंगी।

गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा की पूजा का विधान होता है, यह गुप्त नवरात्रि आम तौर पर साधारण जन के लिए नहीं होते हैं। मुख्य रूप से इनका संबंध साधना और तंत्र के क्षेत्र से जुड़े लोगों से होता है। इन दिनों भी माता के विभिन्न रूपों की पूजा का विधान होता है। जैसे नवरात्रों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी साधक माता की विभिन्न तरह से पूजा करके उनसे शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्ति का वरदान मांगता है।

वैसे इन नवरात्रों में भी पूजन का स्वरूप सामान्य नवरात्रि की ही तरह होता है। जैसे चैत्र और शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा के नौं रूपों की पूजा नियम से की जाती है। उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी दस महाविद्याओं की साधना का बहुत महत्व होता है। गुप्त नवरात्र में माता की शक्ति पूजा और अराधना अधिक कठिन होती है और माता की पूजा गुप्त रूप से की जाती है। इसी कारण इन्हें गुप्त नवरात्रि की संज्ञा दी जाती है। इस पूजन में अखंड जोत प्रज्वलित की जाती है। प्रात:कल एवं संध्या समय देवी पूजन-अर्चन करना होता है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना करने वाले दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन कर व्रत पूर्ण होता है।

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि-विधान

गुप्त नवरात्रि में माता आद्य शक्ति के समक्ष शुभ समय पर घट स्थापना की जाती है। जिसमें जौ उगने के लिये रखे जाते हैं। इसकी एक ओर पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है। कलश स्थापना के बाद माता भगवती की अंखंड ज्योति जलाई जाती है। भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। उसके बाद श्री वरूण देव, श्री विष्णु देव आदि की पूजा की जाती है। शिव, सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह आदि की पूजा भी की जाती है। देवताओं की पूजा करने के बाद माता भगवती की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान प्रतिदिन उपवास रख कर दुर्गा सप्तशती और देवी का पाठ किया जाता है।

गुप्त नवरात्र और तंत्र साधना का सम्बन्ध

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं के पूजन को प्रमुखता दी जाती है। भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महा-विद्याएं हुई हैं। भगवान शिव की यह महाविद्याएं सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं। दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप कहे जाते हैं। प्रत्येक महाविद्या अद्बितीय रूप लिए हुए प्राणियों के सभी संकटों का हरण करने वाली होती हैं। इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है।

1- देवी काली- दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। तंत्र साधना में तांत्रिक देवी काली के रूप की उपासना किया करते हैं। जो प्रसन्न होती है तो साधक की सभी मनोकामनाओं को सहज ही पूरा कर देती हैं। इनकी उपासना से किसी भी बीमारी या अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। इस सिद्धि से दुष्ट आत्माओं से भी बचाव होता हैं।

2- देवी तारा- दस महाविद्याओं में से माता तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। माता तारा परारूपा हैं और महासुन्दरी कला-स्वरूपा हैं। देवी तारा सबकी मुक्ति का विधान रचती हैं। इनकी कृपा से हमे तीव्र बुद्धि और रचनात्मक शक्ति प्राप्त होती है।

3- त्रिपुरसुन्दरी/ माता ललिता- माता ललिता की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है।
4- माता भुवनेश्वरी – माता भुवनेश्वरी सृष्टि के ऐश्वयर की स्वामिनी हैं। भुवनेश्वरी माता सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं।
5- त्रिपुर भैरवी – माता त्रिपुर भैरवी तमोगुण और रजोगुण से परिपूर्ण हैं।
6- माता छिन्नमस्तिका – माता छिन्नमस्तिका को माता चितपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है।
7- माता धूमावती – माता धूमावती के दर्शन पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। माता धूमावती का रूप अत्यंत भयंकर हैं।
8- माता बगलामुखी – माता बगलामुखी स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है। जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।

9- देवी मातंगी – यह वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं। इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं।
1०- माता कमला – मां कमला सुख संपदा की प्रतीक हैं।

आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तीन जुलाई से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होगी। देवी के नौ रूपों की पूजा के साथ-साथ गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाएगी।

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