जानिए, ज्योतिषीय सूत्र, ब्रह्माण्ड का स्वरूप और किन नक्षत्रों में गया धन वापस नहीं मिलता है और भी बहुत कुछ

1
3143

1- ब्रह्माण्ड के स्वरूप दर्शन

ब्रह्माण्ड के मध्य में आकाश है, उसमें सबसे ऊपर नक्षत्र कक्षा है, फिर क्रम से शनि, गुरु मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध तथा चंद्रमा है। चंद्र से नीचे क्रमश: सिद्ध विद्याधर और मेघ है।

Advertisment

2- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जब समस्त ग्रहादि मेष राशि के आदि में थ्ो, तब इस कल्प का प्रारम्भ हुआ था। काल गणना सृष्टि के आरम्भ से चली। उसी दिन सर्व प्रथम सूर्योदय हुआ था।

 

3- नवग्रह बीज मंत्रादि दर्शन

1- सूर्य- 1- ऊॅँ घ्रणि: सूर्य आदित्योम।।

 2- ऊॅँ हृॉ हृी्र हृीं हृौं स: सूर्याय नम:।।

2- चंद्र- 1- ऊॅँ सों सोमाय नम:।।

 2- ऊॅँ श्रीं श्रीं श्रीं श्रौं स: चंद्राय नम:।।

3- मंगल- ऊॅँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:।।

4- बुध- ऊॅँ ब्रां क्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।

5- गुरु-

1- ऊॅँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवै नम:।।

2- ऊॅँ ज्रां ज्रीं ज्रौं स: गुरवै नम:।।

6- शुक्र- ऊॅँ द्रां द्रीं दौं स: शुक्राय नम:।।

7- शनि- 1- ऊॅँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।।

 2- ऊॅँ खां खीं खौं स: शनैश्चराय नम:।।

8- राहू- ऊॅँ भ्रां भ्रीं भौं स: राहुवै नम:।।

9- केतु- ऊॅँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:।।

4- किन नक्षत्रों में गया हुआ धन वापस नहीं मिलता है

उ से आरम्भ होने वाले तीन नक्षत्र

19- उत्तराफल्गुनी- उत्तराषाढा- उ. भा.

पू से प्रारम्भ होने वाले तीन नक्षत्र

पू- फल्गुनी, पर्वाषाढ़ा, पू. भद्रपद

तथा विशाखा, अज यानी रोहिणी, कृतिका, मघा, आद्री, भारणी, अ»ल्ेषा व मूल उपरोक्त चौदह नक्षत्रों में गया, गाढ़ा, किसी को दिया, धरोहर रखा गया, चोरी गया धन, कभी लौटकर वापस नहीं मिलता है।

5- फलित ज्योतिष के प्रत्यक्ष अनुभव

1- फलित ग्रंथों में बृहत्पाराशरी के राजयोग शत प्रतिशत ठीक से मिलते हैं।

2- जन्म से छठे घर का चंद्रमा प्रमेह यानी प्रकार प्रमेह में से कोई भी, रखता है।

3- सप्तम भाव का मंगल अर्शरोग यानी खूनी बवासीर का सूचक है।

4- छठे भाव में सूर्य-शुक्र योग मूत्र कृच्छ रोग का कारक है।

5- अष्टम भाव में शुक्र- मंगल का योग उपदशं करता है।

6- लग्न का सूर्य प्राय: आधा सिर दर्द पीड़ा देते हैं।

7- सप्तम भावास्थ केतु पथरी, दर्द, गुदा आदि का शूलकारक है।

8- जन्म लग्नेश, शुभ युक्त या द्रष्ट केंद्र का त्रिकोण में मित्र त्रेत्रीय प्राय: आजीवन सुखी, मानयुक्त व प्रतापी बनाता है।

9- पंचमेश, दशमेश का सम्बन्ध प्रबल राजयोग करता है।

1०- पत्नी के सप्तम भाव में सूर्य की उपस्थिति- पति द्बारा अनादर पाना।

11- सप्तमेश का लग् न में बैठकर गुरु द्रष्ट होना विश्ोष उन्नति का सूचक है।

12- चंद्रमा से चौथ्ो शनि और बारहवे राहु होने पर जातक अविवासी व रहस्यमयी मानसिकता वाला होगा।

6- षोडश वर्ग चक्र विचार

सूर्य लग्न चक्र- आत्म विचार

चंद्र लग्न चक्र- मनोबल विचार

लग्न चक्र- देह विचार

होरा चक्र- सम्पदा विचार

द्रेष्काण चक्र- भ्रातृ सौख्य विचार

चर्तुथांश चक्र- भाग्य विचार या सुख विचार

पंचमांश चक्र- ज्ञान विचार

षष्ठांश चक्र- रिपुज्ञान विचार

सप्तमांश चक्र- पुत्र पौत्रादि ज्ञान विचार

अष्टमांश चक्र- आयु विचार

दशमांश चक्र- राज्य विचार

एकादशांश चक्र- लाभ विचार

द्बादशांश चक्र- पित्र सौख्य विचार

षोडशांश चक्र- वाहन सुख विचार

विशांश चक्र- उपासना ज्ञान विचार

चर्तुविशांश चक्र- विद्या विचार

सप्तविशांश चक्र- बलाबल ज्ञान विचार

त्रिशांश चक्र- अरिष्ट ज्ञान विचार

खवेदाशं चक्र- शुभा शुभ ज्ञान विचार

अक्षवेदांश चक्र- सर्व स्थिति ज्ञान विचार

 

7- फलित ज्योतिषीय सूत्र

– लग्ने राहु युते चन्द्रे मूर्ख प्रकृति कोपवान।

नीच भंग्ो राजयोग, महाराजो भवेन्नर:।

पुन:

नीचस्तु नीचाधिपतर्येदि स्यात्।

केंद्र स्थितौ नै नमुपैति भंगम।।

 

नीच ग्रह का राशि राशि स्वामी भी यदि नीच हो तो नीच भंग राज योग नहीं होगा।

– नीच ग्रह दशा काले नीच भंग विविर्दिश्ोन्।

नीच ग्रह की महादशा काल में नीच भंग का सुफल

– नीचेन युक्तस्तु च सुप्रसन्नो महोन्नचांश शुभं विदघ्यायात्।।

यदि नीच ग्रह के सााथ कोई ग्रह उच्च का अथव उच्च के शुभ नवांश का हो तो नीच भंगराज योग होता है।

– मेष्ो जातास्य भौमस्तु, गुरु, शुक्र समन्वित:।

दितीय भावे विद्यते, धनी योग भवति धुवम।।

8- नव ग्रह यंत्रादि दर्शन

 

10- मांगलिक दोष सूत्र 

1- व्यये च कुजदोष: कन्या मिथुन यो रविना

 द्बादश्ो भ्ौभदोषस्तु वृष तौलिक यो रवि ना।।

यदि व्यय भाव की राशि के स्वामी मंगल, बुध या शुक्र हो तो व्यय भाव में मंगल में मांगलिक दोष नहीं होता है।

2- तनु धनु मदमायुर्लाभ व्ययग: कुजस्तु दाम्पत्यम्

 विधटयीत तद् ग्रहेशो न विघटयति तुंग मित्रगे हे वा।।

यदि मंगल स्वर राशि में हो या एक्साल्टेड हो तो मंगली दोष नहीं होता है।

3- कुजजीवो समायुक्तों, युक्तो व कुजचंद्रमा

 न मंगली मंगल राहु योग।।

4- त्रिषट् एकादश्ो राहु, त्रिषट् एकादश्ो शनि:

 त्रिषट् एकादश्ो भौम: सर्व दोष विनाश कृत।।

5- भौमे: वक्रिणि नीच ग्रहे वाअर्कस्थ्ोअपि

 वा न कुज दोष:।।

यदि मंगल नीच ग्रह हो, वक्री हो, शत्रु राशिगत हो तो मंगली दोष नहीं लगेगा।

6- चतु: सप्तमे भौमो मेष कर्कटे निग्रह:।

 कुज दोषो न विद्यते।।

चोथ्ो या सातवे भाव में मेष अथवा कक्र राशि हो और उसमें कहीं मंगल हे तो मंगली दोष नहीं होता है।

प्रस्तुति

विष्णुकांत शास्त्री
विख्यात वैदिक ज्योतिषाचार्य और उपचार विधान विशेषज्ञ
38 अमानीगंज, अमीनाबाद लखनऊ

मोबाइल नम्बर- 99192०6484 व 9839186484

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here