राजा जनक के महल में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। वह धनुष बहुत ही भारी था, अनेकानेक वीर मिलकर भी उस शिव धनुष को नहीं उठा सकते थे। उस शिव धनुष के नीचे मिट्टी का ढेर बन गया था, जिसका कारण यह था कि उस धनुष को कोई उठा नहीं पाता था, जिसकी वजह से उसकी नीचे से सफाई नहीं हो पाती थी। एक समय जनक नंदनी माता सीता ने महल में रखे उस धनुष के नीचे मिट्टी देखी तो उन्होंने धनुष को उठाकर दूसरे स्थान पर रखकर सफाई कर दी। जब वहां जनक जी पहुंचे और उन्होंने धनुष को दूसरे स्थान पर रखा देता तो वे ये सोचकर चिंतित हो गए।
आखिर भगवान शिव का धनुष किसने उठाकर दूसरे स्थान पर रखा है? इस बात को लेकर राजा जनक आश्चर्य चकित भी थे कि आखिर जिस धनुष को बहुतेरे वीर मिलकर नहीं उठा सकते थे, उसका स्थान परिवर्तन कैसे हुआ? उन्होंने दरबारियों को बुलाकर इस पर विचार किया, लेकिन कोई भी इस बात का उत्तर नहीं दे सका। इसी समय जनक नंदनी माता सीता वहां आयीं और पिता जनक से चिंता कारण पूछा तो जनक जी ने उन्हें यह बात बताई और कहा कि मेरी अनुपस्थिति में किसी ने धनुष का स्थान परिवर्तन किया है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे दरबार में ऐसा कौन महावीर है, जो शिव धनुष उठा सकता है।
इस पर जनक नंदनी सीता जी मुस्काई और कहा कि पिता जी मैं सफाई कर रही थी, धनुष के आस-पास धूल थी, इसलिए उसे उठाकर दूसरे स्थान पर रख दिया था। इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है। सीता के वचनों को सुनकर जनक जी के आश्चर्य की सीमा न रही। तब सीता जी ने धनुष को पूर्व के स्थान पर रख दिया। जनक जी ने तभी निर्णय कर लिया कि जो यह शिव का धनुष उठाएगा, वही बलवान उनकी तेजस्वी पुत्री सीता का वर होगा। उसी के साथ ही सीता का विवाह होगा।
इसे लेकर एक अन्य कथा कही जाती है, जिसके अनुसार जब शिव धनुष का स्थान परिवर्तित हुआ तो इसका पता परशुराम जी को लग गया, वे आए और उन्होंने राजा जनक को सलाह दी थी, हे राजा जनक तुम अपनी पुत्री का विवाह उसी से करना, जो शिव धनुष को उठा सके, क्योंकि वहीं इसके योग्य होगा।