माता कुष्मांडा मंदिर – मंदिर के जल से नेत्र विकार दूर होने की है मान्यता

0
651

कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में मां कुष्मांडा देवी का लगभग 1000 साल पुराना मंदिर है। लेकिन इस की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी।  मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन व भव्य मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में है। यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता है। माना जाता है कि मां की पूजा-अर्चना के पश्चात प्रतिमा से जल लेकर ग्रहण करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।

यह भी पढ़ें- शत्रु नाश करने का शक्तिशाली श्री दुर्गा मंत्र

Advertisment

इस जल को नेत्रों में लगाने से सारे नेत्र रोग दूर होते हैं। आज तक वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए कि ये जल कहां से आता है।

इकलौता मंदिर 

बताते हैं कि घाटमपुर स्थित ये मां कूष्मांडा का मंदिर इकलौता है। इतिहासकारों की माने तो मराठा शैली में बने मंदिर में स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं। कहा जाता है कि एक ग्वाले ने सपने में देवी के दर्शन कर उनके इस स्थान पर मौजूद होने की बात बतार्इ थी। जिसके बाद मंदिर का निर्माण 1890 में चंदनराम भुर्जी नाम के एक व्यवसायी ने करवाया था। इतिहासकारों के अनुसार वास्तव में पहली बार 1380 में स्थानीय राजा घाटमपुर दर्शन ने इसकी नींव रखी थी। देवी की मूर्ति खोजने वाले ग्वाले के नाम पर इस मंदिर को कुड़हा देवी मंदिर भी कहा जाता है।

यहां सिर्फ माली कराते हैं पूजा-अर्चना
माता कुष्मांडा देवी में पंडित पूजा नहीं कराते। यहां नवरात्र हो या अन्य दिन सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करते हैं। दसवीं पीढ़ी के पुजारी माली गंगाराम ने बताया कि हमारे परिवार से दसवीं पीढ़ी की संतान हैं, जो माता रानी के दरबार में पूजा पाठ करवाते हैं। सुबह स्नान ध्यान कर माता रानी के पट खोलना, पूजा-पाठ के साथ हवन करना प्रतिदिन का काम है। मनोकामना पूरी होने पर जो भक्तगण आते हैं, हवन पूजन करवाते हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here