पावन सप्त सरिता में गोदावरी: महापुण्यदायी

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1898
paavan sapt sarita mein godaavaree: mahaapunyadaayee

paavan sapt sarita mein godaavaree: mahaapunyadaayeeगोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठन जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे पुराण दक्षिणी गंगा भी कहते हैं। इसका काफी भाग दक्षिण भारत में है। इसकी कुल लंबाई 1465 किलोमीटर है, जिसका 48.6 % महाराष्ट्र , 20.7 % मध्य प्रदेश, 14 % कर्नाटक, 5.5 % उड़ीसा और 23.8 % आंध्र प्रदेश में पड़ता है। इसमें जो मुख्य नदियां आकर मिलती हैं, वे हैं – पूर्णा, कदम, प्रांहिता, सबरी, इंद्रावती, मुजीरा, सिंधुकाना, मनेर, प्रवर आदि। इसके मुहानों में काफी खेती होती है और इस पर कई महत्त्वपूर्ण बांध भी बने हैं।

मुख्य धाराएँ
गोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं-

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  • गौतमी
  • वसिष्ठा
  • कौशिकी
  • आत्रेयी
  • वृद्धगौतमी
  • तुल्या
  • भारद्वाजी

भारत की पवित्रतम् नदियों में गोदावरी का प्रमुख स्थान है। ब्रह्मपुराण ‘ में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। महर्षि गौतम ने शंकर की कृपा से किस प्रकार पृथ्वी पर गोदावरी को अवतरित किया, साथ ही आसपास के तीर्थस्थलों का भी वर्णन है। ‘ ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक कथा है, तदनुसार एक ब्राह्मणी ही तप – योग करते – करते गोदावरी बन गई। पौराणिक समय में इसके मुहाने बड़े समृद्ध थे, जिनके अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं। इसका उद्गम सह्याद्रि ( पश्चिमी घाट ) से है। यह स्थल महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यंबक के ब्रह्मगिरि कुंड में है। हलायुधकोश ‘ में इसकी व्याख्या इस प्रकार दी गई है- ‘ गां जलं स्वर्ग वा ददातीति गोदा ‘ अर्थात् पृथ्वी पर जल देने वाली गोदावरी।

कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द गोदे से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम ‘ गोदावरी ‘ पड़ा। गौतम से संबंध जुड़ जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धाराएं वसिष्ठा , कौशिकी, वृद्ध गौतमी, गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध हैं। पुराणों में इनका वर्णन मिलता है। इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है-

सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशनः।

महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके गच्छति॥

 

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