सप्तपुरी में द्वारिकापुरी: दर्शन – स्पर्श से मनुष्य बड़े – बड़े पापों से मुक्त होकर मोक्ष पाता है

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saptapuree mein dvaarikaapuree: darshan – sparsh se manushy bade – bade paapon se mukt hokar moksh paata hai, भगवान कॄष्ण ने द्वारिकापुरी बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में अरबसागर के किनारे स्थित द्वारका एक प्रमुख तीर्थ है । पौराणिक काल में इसे द्वारावती के नाम से जाना जाता था ।

द्वारिकापुरी:

रामेश्वरम् , जगन्नाथपुरी और बदरीनाथ की तरह द्वारका भी चार धामों में से एक है । प्राचीन काल से अति पवित्र माने जाने वाले सात नगरों , जिन्हें पुरी कहते हैं , में भी द्वारका की गणना होती है । अन्य पुरियों के नाम हैं – अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची और अवंतिका ( उज्जैन ) । द्वारका में शंकराचार्य की गद्दी और शारदापीठ मठ है, इसलिए वह चारों धामों में पश्चिम का महत्त्वपूर्ण धाम माना जाता है। यह देश के पश्चिमी किनारे पर स्थित है, यह भारत का प्रवेश – द्वार माना जाता था । द्वारका का अर्थ भी छोटा – सा द्वार होता है । श्रीकृष्ण ने उत्तरावस्था में मथुरा से आकर द्वारका को अपनी राजधानी बनाया था । तीर्थस्थल का महत्त्व ‘ स्कंदपुराण ‘ में द्वारका के माहात्म्य पर प्रकाश डाला गया है । पुराण के अंतिम 44 अध्यायों में द्वारका का वर्णन है । यह नगरी जीव – जंतुओं तक के लिए मोक्ष – प्रदायिनी है । इसके दर्शन – स्पर्श से मनुष्य बड़े – बड़े पापों से मुक्त होकर मोक्ष पा जाता है ।

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द्वारिकापुरी की कथा 

द्वारका का महत्त्व भगवान श्रीकृष्ण के कारण है । कहते हैं कि इसे उन्होंने ही बसाया और यदुवंशियों की राजधानी बनाया । कृष्ण मथुरा में पैदा हुए, गोकुल में पले, परंतु बसने के लिए इतनी दूर द्वारका पहुंचे । कहते हैं, जब श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, तो उसके ससुर जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर सत्रह बार आक्रमण किया । यद्यपि वह हर बार पराजित हुआ, परंतु इससे मथुरावासियों को भी जन – धन की हानि उठानी पड़ी । तब मथुरावासियों ने श्रीकृष्ण से ऐसी जगह बसने के लिए कहा, जहां जरासंध के आक्रमण न हो सकें तथा लोग शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। मथुरा से बहुत दूर, समुद्रतट पर द्वारका पहले से ही एक प्रसिद्ध स्थान था। तब इसे ‘ कुशस्थली ‘ कहते थे ।

सप्तपुरी में द्वारिकापुरी

कृष्ण को यह जगह बहुत पसंद आई। उन्होंने मथुरा के लोगों के लिए कुशस्थली में ही नया नगर स्थापित किया और इसका नाम रखा – द्वारका। नगर के चारों ओर बहुत ऊंचा परकोटा बनाया गया, जिसमें चार दरवाजे थे। संभवत: इसीलिए इस नगर का नाम द्वारका अर्थात् द्वारों वाली नगरी रखा गया। किसी समय बड़ी वैभवशाली तथा स्वर्ण नगरी के नाम से विख्यात रह चुकी इस नगरी को प्राचीनकाल में समुद्र ने निगल लिया था, लेकिन श्रीकृष्ण का निवास स्थान नहीं डूबा। उसी स्थान पर श्रीकृष्ण के वंशज वज्रनाभ ने श्रीरणछोड़जी ( श्रीकृष्ण ) का मंदिर बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। वर्तमान द्वारका के दो भाग हैं। एक को गोमती द्वारका, और दूसरे को बेट द्वारका कहते हैं । गोमती द्वारका ही आमतौर पर द्वारका के नाम से प्रसिद्ध है। गोमती द्वारका की गणना चार धामों में होती है बेट द्वारका को पुरी कहते हैं ।

द्वारका का मुख्य मंदिर

गोमती की ओर से 56 सीढ़ियां चढ़ने के बाद श्रीरणछोड़जी का मंदिर आता है। यही द्वारका का प्रमुख मंदिर है, जिसे द्वारकाधीश का मंदिर भी कहते हैं। शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ इस मंदिर को जगत – मंदिर के नाम से भी पुकारा जाता है। इस मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है – निज मंदिर, सभागृह और शिखर लगभग 30 मीटर ऊंचे इस 7 मंजिला मंदिर के आधारभवन में प्रधान देवता भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति प्रतिष्ठित है। 52 मीटर ऊंचे शिखर पर कपड़े की लंबी ध्वजा फहराती है। कहते हैं, इतनी बड़ी ध्वजा अन्यत्र कहीं नहीं फहराई जाती। मंदिर परकोटे के भीतर है, जिसमें चारों ओर चार द्वार हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक मार्ग बाजार की ओर से भी है। इसमें सीढ़ियां नहीं चढ़नी पड़ती। अधिकांश तीर्थयात्री भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए इसी मार्ग से प्रवेश करते हैं। मंदिर में हीरे – मोती जड़े चांदी के सिंहासन पर चिकने काले पत्थर से निर्मित एक मीटर से भी ऊंची भगवान श्रीकृष्ण की मनोहारी मूर्ति स्थापित है, जिसके आकर्षण से दर्शनार्थों मंत्र – मुग्ध रह जाते हैं । इस चतुर्भुजी मूर्ति के चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल पुष्प दर्शाए गए हैं। मूर्ति के मूल्यवान पीतांवर और आभूषण दूर से ही चमकते हैं। मंदिर की चौथी मंजिल में अंबाजी की मूर्ति है जन्माष्टमी पर यहां एक विशाल मेला लगता है। निकट ही तीर्थयात्री समुद्रतट पर पवित्र स्नान का आनंद लेते हैं। द्वारका की मूल मूर्ति बोडणा भक्त डाकोर ले गए। दूसरी मूर्ति लाडा ग्राम के पास एक वापी में मिली। वही मूर्ति अब मंदिर में विराजमान है।

मंदिर प्रांगण के दर्शनीय स्थल

  • गोमती नदी: मंदिर के सामने एक छोटी नदी की तरह जल से भरा स्थान है, जिसे गोमती कहा जाता है। प्रातः इसमें जल कम रहता है और स्नान सरलता से किया जा सकता है, परंतु दिन चढ़ने पर इसमें जल बढ़ जाता है और उस समय स्नान सावधानी से घाटों पर ही करना चाहिए। इसमें अनेक पक्के घाट हैं।
  • संगम घाट: जहां गोमती समुद्र से मिलती है उसे संगम स्थल कहते हैं और जहां पर यह घाट है, यहां संगम नारायण का मंदिर स्थित है।
  • निष्पाप सरोवर: यह पृथक् छोटा सरोवर है, जो घाट के पास स्थित है और खारे जल से भरा रहता है। यहां यात्री पिंडदान भी करते हैं। इसके पास सांवलिया जी व गोवर्धननाथ जी के मंदिर स्थित हैं।
  • जल कूप: सरोवर के पास ही पांच मीठे जल के कुएं भी हैं जिसके जल से यात्री आचमन करते है।
  • त्रिविक्रम मंदिर : मुख्य मंदिर के दक्षिण में स्थित ह।
  • प्रद्युम्न मंदिर : उत्तर में यह मंदिर है।
  • अनिरुद्धजी मूर्ति : प्रद्युम्न मंदिर के पास ही यह मूर्ति है ।
  • दुर्वासाजी मंदिर : पूर्व में यह छोटा मंदिर है।
  • कुशेश्वर शिव मंदिर : मंदिर के उत्तर में मोक्ष द्वार के पास स्थित है। मंदिर के नीचे तहखाने में कुशेश्वर शिवलिंग व पार्वती की मूर्तियां हैं ।
  • मंदिर में पश्चिम की ओर अंबाजी, दत्तात्रेय, लक्ष्मी नारायण, माता देवकी और माधव के मंदिर हैं ।
  • मंदिर के पूर्व में सत्यभामा, जाम्बवंती, राधा, लक्ष्मी – नारायण के साथ कोला भक्त का मंदिर भी है।
  • शंकराचार्य मठ: मंदिर के प्रांगण में ही शंकराचार्य जी का शारदा मठ भी स्थित है।
  • मंदिर परिक्रमा : ये गोमती के घाटों से प्रारंभ होकर निष्पाप सरोवर के पास से मंदिर में समाप्त होती है। इसके मध्य में अनेक देवी देवताओं के छोटे – बड़े मंदिर के दर्शन होते हैं।
  • शंकर मंदिर : कुछ दूर पर समुद्र के मध्य एक शिव मंदिर है, जिसमें जाने का रास्ता दोपहर तक खुला होता है, पर शाम होते ही समुद्र के बढ़ते जल के कारण ये बंद हो जाता है।
  • अन्य मंदिर : मंदिर से दो – तीन किलोमीटर की परिधि में राम – लक्ष्मण मंदिर, सीताबाड़ी, वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक आदि स्थापित है।

 आस – पास के तीर्थस्थल

  • बेट द्वारका स्थल : मुख्य मंदिर से 30 किलोमीटर दूर समुद्र के पार एक छोटे द्वीप में यह स्थान स्थित है। यह प्राचीन द्वारका कहलाता है, जो समुद्र में डूब चुकी थी, पर अब खनन आदि के द्वारा अनेक पवित्र स्थान पुनः निकल आए हैं। इसमें कुछ निम्न हैं
  • श्रीकृष्ण महल : यह एक विशाल महलनुमा स्थल है , जिसमें दो , तीन य पांच मंजिलें हैं । यहां पर अनेक देवी देवताओं के मंदिर और प्राचीन स्थल स्थित हैं । यहां पर प्रद्युम्न मंदिर, रणछोड़ मंदिर, त्रिविक्रम मंदिर, देवकी मंदिर, माधव मंदिर, पुरुषोत्तम मंदिर, अंबा मंदिर , गरुड़ मंदिर आदि हैं । इसके समीप सत्यभामा व जाम्बवती के महल हैं, जहां साक्षी गोपाल, रुक्मिणी जी, राधिका, जाम्बवती व लक्ष्मी – नारायण के मंदिर हैं इसके अतिरिक्त आस – पास मंदिरों का विशाल समूह स्थित है।
  • नागेश्वर ज्योतिर्लिंग : मुख्य मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर पर यह प्रसिद्ध ज्योतिलिंग मंदिर स्थित हैं। वर्णन नागेश्वर में देखें ।
  • गोपी तालाब, नागनाथ मंदिर तथा अन्य स्थान नागेश्वर में देखें।

यात्रा मार्ग

द्वारका से बेट द्वारका जाने हेतु समय का ध्यान रखना विशेष अपेक्षित है । शाम 4 बजे के बाद स्टीमर नहीं जाते। रोशनी रहते – रहते ही वहां से यात्रियों को लौटाया जाता है अत : सुनियोजित कार्यक्रम न रखने पर दिक्कत हो सकती है। द्वारका की यात्रा अहमदावाद या आस – पास के बड़े स्टेशनों से रेल या बस द्वारा मार्ग के स्थानों को देखते हुए भी आनंदपूर्वक की जा सकती है। बीच में पड़ने वाले स्थान हैं – राजकोट, गोंडल, जूनागढ़, गिरनार, वीरावल, सोमनाथ, पोरबंदर, द्वारका। दूसरे रास्ते से लौटते हुए जामनगर, आनंद, डौदा, सूरत आदि स्थल देखते हुए भी बड़े जंक्शन से गाड़ी पकड़ी जा सकती है। गुजरात में दिल्ली जैसी ठंड नहीं पड़ती। गुजरात के समुद्र आक्रामक हैं, अत : उनमें उतरना ठीक नहीं। समीप लिखे आगाह संकेतों का गंभीरता से पालन करना हितकर रहता है। द्वारका से मुंबई ( 1007 किलोमीटर ), दिल्ली ( 1364 किलोमीटर ), माउंट आबू ( 691 किलोमीटर ), अहमदाबाद ( 450 किलोमीटर ) व अन्य प्रमुख स्थानों पर सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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Durga Shaptshati

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