शनि सिंगनापुर: घरों में आज भी दरवाजे पर नहीं लगते ताले

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shani singanaapur: gharon mein aaj bhee daravaaje na lagate taaleशनि सिंगनापुर: शनि महाराज का भारत में एक मात्र प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के सिंगनापुर ग्राम या सोनाई ग्राम, अहमदनगर जिला में अवस्थित है। यहां के निवासियों के घरों में आज भी दरवाजे न होकर केवल फ्रेम ही होता है और यहां चोरी की घटनाएं नहीं होती हैं।

ग्रामवासियों के अनुसार यहां जागृत देवस्थान है और यहां चोरी आदि करने वाले को शनि महाराज उचित दंड देंगे। इस स्थान व ग्राम में एक स्कूल भी है और अन्य सभी सुविधाएं शासन द्वारा दी जाती हैं। पहले ये स्थान जब लेखक ने देखा था तो मात्र एक साधारण ग्राम ही था और उसके मध्य में शनि का मंदिर व छोटे – छोटे अन्य मंदिर व दुकानें आदि ही थीं। वर्तमान में एक भव्य व सुंदर बड़ा द्वार निर्मित हो गया है और इसके आसपास अतिथिगृह भी खुल गए हैं। अधिक भीड़ होने के कारण द्वार के समक्ष रेलिंग लगी है तथा ऊपर से छाया हेतु प्लास्टिक की चादर भी लगी है। शनि का दोष मानव को कष्ट देता रहता है, अत : यात्री यहां पूजा – अर्चना कर अपने कष्टों का निवारण पाते हैं। जिसकी जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष होता है, उसका सबसे उत्तम निवारण इसी स्थान पर किया जाता है।

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शनि सिंगनापुर की धार्मिक पृष्ठभूमि

शनि शिंगणापुर के इतिहास संबंधी गाथा अत्यंत रोचक, अद्भुत व रोमांचक है। शनिदेव के स्वयंभू प्रकट होने संबंधी कई कथाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि यहां पास ही एक पानस नाम का नाला बहता है। लगभग पौने दो सौ वर्ष पहले इस इलाके में मूसलाधार बारिश हुई थी। उसी समय नदी में बाढ़ आ गई जिसमें एक काले पत्थर की मूर्ति बहकर आ गई और बेर के पेड़ के साथ अटक कर रुक गई।पानी उतरने पर गांव के लोग अपने मवेशी चराने के लिए निकल पड़े तो उन्हें काले रंग की एक बड़ी शिला दिखाई दी। गांव वालों ने छड़ी से शिला को छूकर देखा, तो उसके स्पर्श से शिला में से रक्त बहने लगा तथा उसमें एक बड़ा सा छेद भी हो गया। शिला में से रक्त आता देख ग्रामीण डर गए और अपने मवेशी वहीं छोड़ कर भाग खड़े हुए। गांव पहुंच कर जब उन्होंने सारी घटना बताई तो इस चमत्कार को देखने के लिए लोगों का भारी जमघट लग गया। कहा जाता है कि उसी रात एक व्यक्ति को शनिदेव ने स्वप्र में दर्शन दिए और कहा मैं तुम्हारे गांव में प्रकट हुआ हूं, मुझे गांव में स्थापित करो।अगले दिन उस व्यक्ति ने यह बात गांव वालों को बताई तो एक बैलगाड़ी लेकर वे मूर्ति लेने पहुंचे। सभी ने मिलकर भारी-भरकम मूर्ति को बैलगाड़ी पर रखने का प्रयास किया परन्तु मूर्ति टस से मस न हुई। कोशिशें व्यर्थ होने पर वे सब गांव लौट आए। उसी व्यक्ति को शनिदेव ने अगली रात पुन: दर्शन देकर कहा कि जो रिश्ते में सगे मामा-भांजा हों, वे ही मुझे उठाकर बेर की डाली पर रखकर लाएंगे तभी मैं गांव में आऊंगा। अगले दिन यही उपक्रम किया गया। सपने की बात सच निकली। मूर्ति को आसानी से गांव में लाकर स्थापित कर दिया गया।

तीर्थस्थल का विवरण

एक बड़े साढ़े पांच फीट ऊंचे काले पत्थर के शनि महाराज एक प्लेटफार्म पर खुली हवा में विराजमान हैं। इस प्लेटफार्म के चारों ओर रेलिंग लगी है। केवल एक स्थान से चढ़ा व उतरा जाता है। इसी के पास एक ओर एक बड़ा त्रिशूल स्थित है, जबकि दूसरी ओर एक नंदी की मूर्ति स्थित है। इसके समक्ष ही एक छोटा शिव मंदिर है तथा पास में ही हनुमान मंदिर भी है। यहां यात्री पुरुष ही तेल चढ़ा सकते हैं, महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। वे केवल दूर से शनि महाराज को प्रणाम कर सकती हैं। यहां प्रतिदिन तीस – चालीस हजार यात्री आते हैं और अमावस्या या विशेष पर्व पर इनकी संख्या लाखों तक हो जाती है।

पूजा – अर्चना विधि

जैसे ही आप वहां पहुंचते हैं, दुकानदार तुरंत ही आपको  पीली या गेरुआ रंग की धोती देकर स्नान हेतु कहते हैं। क्योंकि आप अपने कपड़ों में पूजा – अर्चना नहीं  कर सकेंगे। गर्मी हो या सर्दी, यात्री तुरंत बिना हिचक स्नान करके पीली धोती पहन लेते हैं। इसके पश्चात् अपनी श्रद्धानुसार पूजन – सामग्री क्रय करते हैं। जिसमें तेल, राई, काला तिल, काली उड़द, काला कपड़ा आदि होता है और साथ ही आक की पत्ती व पुष्प होते हैं। ये सामग्री केवल पुरुष यात्री लेकर शनि महाराज प्लेटफार्म चढ़कर स्वयं समर्पित करके पूजा करते हैं। एक पुजारी भी आपकी सहायता हेतु मंत्र जाप करवा देता है। यहा प्रसाद नहीं चढ़ता है।

दर्शनीय स्थल

इस प्रांगण में कुछ छोटे – बड़े शिव, हनुमान व अन्य देवताओं के मंदिर हैं, जहां पुरुष और महिलाएं साथ – साथ पूजा – अर्चना कर सकते हैं। कुछ मंदिरों में पुजारी प्रसाद आदि चढ़ाकर विशेष पूजा – अर्चना करवाते हैं। यहां पर छोटी – छोटी अनेक दुकानें हैं, जहां सोने से संबंधित सभी सामग्री क्रय हेतु उपलब्ध होती है। यहां लोहे की अंगूठी जो घोड़े की नाल से बनी होती है, घोड़े की नाल, कपड़े की शनि मूर्ति तथा पीतल, अष्ट – धातु की अनेक वस्तुएं मिलती हैं, जिसे यात्री क्रय करके अपने घर ले जाते हैं।

यात्रा मार्ग

रेल मार्ग द्वारा मुंबई मुख्य लाइन पर पड़ने वाले मनमाड या नासिक स्टेशन पर उतर सकते हैं, जहां से ये सरलता से शनिधाम जा सकते हैं। अहमदनगर पर उतर कर भी यहां जा सकते हैं, जहां से इसकी दूरी मात्र 30 किलोमीटर है। यहां आने वाले यात्री   -नासिक पंचवटी त्रयम्बकेश्वर शनि सिंगनापुर भ्रमण एक साथ कर लेते हैं ।

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